विजय क्रांति : हाल में न्यूयार्क टाइम्स में छपी खबर ने भारतीय राजनीति में भूचाल ला दिया। अखबार के अनुसार अमेरिकी उद्योगपति नेवेल राय सिंघम अमेरिका, ब्रिटेन, दक्षिण अफ्रीका और ब्राजील जैसे कई देशों के अलावा भारत में भी चीन सरकार और चीनी कम्युनिस्ट पार्टी का प्रोपेगंडा अभियान चलाता है। न्यूयार्क टाइम्स की इस खोजी रिपोर्ट में बताया गया है कि सिंघम ने करोड़ों डालर खर्च करके जिन समाचार माध्यमों का इस्तेमाल किया उनमें भारत में सक्रिय एक समाचार वेबसाइट ‘न्यूजक्लिक’ भी शामिल है।

इससे पहले भारतीय सुरक्षा एजेंसियों ने भी 2021 में न्यूजक्लिक पर चीन समर्थन और भारतीय हितों के विरुद्ध दुष्प्रचार के मामले में शिकंजा कसा था। तब कांग्रेस समेत कई विपक्षी दलों ने उस कार्रवाई को मोदी सरकार के खिलाफ समाचार माध्यमों की आजादी का गला घोंटने और लोकतंत्र को बर्बाद करने के नाम पर जमकर अभियान चलाया था।

अब भारतीय एजेंसियों के उसी आरोप की पुष्टि न्यूयार्क टाइम्स ने की है। यह वही अखबार है जो मोदी सरकार को अक्सर निशाने पर लेता रहता है। ऐसे में स्वाभाविक था कि न्यूयार्क टाइम्स की रिपोर्ट पर भाजपा और मोदी सरकार के कई मंत्रियों ने संसद के भीतर और बाहर कांग्रेस पर हमला बोल दिया। न्यूयार्क टाइम्स के अनुसार सिंघम एक अमेरिकी कारोबारी है, जिसका अमेरिका के वामपंथी और माओवादी संगठनों के साथ सक्रिय जुड़ाव रहा है।

चीनी दूतावास द्वारा राजीव गांधी फाउंडेशन को मोटा पैसा दिए जाने और डोकलाम विवाद के दौरान राहुल गांधी द्वारा चीनी राजदूत से मुलाकात के आरोपों से कांग्रेस पहले ही घिरी हुई है। न्यूजक्लिक प्रकरण ने उसके लिए और मुश्किलें पैदा कर दी हैं। इसलिए हैरानी की बात नहीं कि यह मामला सामने आते ही केंद्रीय सूचना और प्रसारण मंत्री अनुराग ठाकुर ने कहा कि चीन सरकार, न्यूजक्लिक और कांग्रेस पार्टी एक ही गर्भनाल से जुड़े हुए हैं। भाजपा सांसद निशिकांत दुबे ने कहा कि न्यूजक्लिक ने विदेश से मिले 38 करोड़ रुपये से देश को बदनाम करने का अभियान चलाया और वह भारत विरोधी टुकड़े-टुकड़े गैंग का ही हिस्सा है। इस विवाद का दुर्भाग्यपूर्ण पहलू यह रहा कि देश की छवि बिगाड़ने, भारत में चीन के समर्थन में माहौल बनाने और भारतीय लोकतंत्र को कमजोर करने के लिए चीन सरकार द्वारा चलाए जा रहे कुत्सित अभियान का अधिक आवश्यक मुद्दा विमर्श के केंद्र से बाहर हो गया।

न्यूयार्क टाइम्स की रिपोर्ट में यह सामने आया कि चीन सरकार विश्व भर में चीन विरोधी भावनाओं से ध्यान हटाने और चीन समर्थक माहौल तैयार करने के लिए कई स्वयंसेवी संगठनों और मीडिया संस्थानों तथा पत्रकारों पर अरबों डालर खर्च कर रही है। इससे पहले 2021 में भारतीय न्यायविदों, पत्रकारों और शोधार्थियों के संगठन ‘ला एंड सोसायटी’ ने भारत में चीन सरकार द्वारा चलाए जा रहे प्रोपेगंडा अभियान के कई पहलुओं का विस्तृत अध्ययन कर ‘मैपिंग चाइनीज फुटप्रिंट एंड इन्फ्लुएंस आपरेशंस इन इंडिया’ शीर्षक से रिपोर्ट जारी की थी। उसमें व्यापार, राजनीति और जासूसी जैसे क्षेत्रों के अलावा सिनेमा, मीडिया, थिंक टैंक और विश्वविद्यालयों में चीन की गहरी घुसपैठ का लेखाजोखा दिया गया था। उस रिपोर्ट के अनुसार चीन की सरकार दीमक की तरह लगभग पूरी भारतीय व्यवस्था के भीतर घुसने का अभियान छेड़ चुकी है और यदि सरकार एवं समाज ने समय रहते समुचित कदम नहीं उठाए तो पूरी व्यवस्था भरभराकर गिर जाएगी। उस पर चीनी प्रभुत्व बढ़ जाएगा।

पिछले कुछ समय में चीनी कंपनियों ने भारत में अपने विस्तार की एक सुनियोजित रणनीति पर काम किया है। इसमें समाचार, विचार और मनोरंजन जैसे उन माध्यमों में अपनी पैठ गहरी करने का प्रयास किया है जो आमजन की धारणा को प्रभावित करने और जनमत निर्माण में अहम भूमिका निभाते हैं। इसी कड़ी में एक चीनी मोबाइल कंपनी ने फिल्मों एवं संगीत से जुड़ी कंपनी हंगामा में करीब 200 करोड़ रुपये निवेश किए। म्यूजिक स्ट्रीमिंग प्लेटफार्म गाना और एंटरटेनमेंट एप एमएक्स प्लेयर में भी चीनी कंपनी टेनसेंट का भारी-भरकम निवेश है। आनलाइन वीडियो मार्केटिंग से जुड़ी विडूली में चीनी कंपनी अलीबाबा का काफी निवेश है। ला एंड सोसायटी की रिपोर्ट के अनुसार भारत के प्रमुख समाचार कंटेंट प्लेटफार्म डेली हंट में करीब 200 करोड़ और न्यूज डाग में 400 करोड़ का चीनी निवेश है। अलीबाबा के नियंत्रण वाले यूसी न्यूज पर भारत में प्रतिबंध लगाए जाने के समय तक करीब 13 करोड़ उपभोक्ता हो गए थे।

चीनी निवेश वाली देसी कंपनियां कम से कम 13 भारतीय भाषाओं में मीडिया संस्थान चलाती हैं। भारत की प्रमुख समाचार एजेंसियों में भी चीन का खासा प्रभाव है। स्मरण रहे कि गलवन में चीनी हमले के तुरंत बाद एक एजेंसी ने चीनी राजदूत का लंबा साक्षात्कार चलाया था। उसमें राजदूत ने चीनी पक्ष को सही ठहराया था। एक अन्य एजेंसी का तो चीन की सरकारी समाचार एजेंसी शिन्हुआ के साथ वर्षों पुराना अनुबंध है। हालांकि इंटरनेट के माध्यम से कुकुरमुत्ते की तरह उग आए कथित समाचार संस्थानों और स्वतंत्र एवं निष्पक्ष पत्रकारिता की आड़ में काम करने वालों में किस प्रकार चीनी रेवड़ियां बांटी जा रही हैं, न्यूजक्लिक मामला उसकी जीती-जागती मिसाल है।

अभी इस दलदल में न जाने कितने नाम और सामने आने हैं। रिपोर्ट के अनुसार चीन सरकार अपने हमदर्द पत्रकारों के माध्यम से भारतीय पत्रकारों के कई समूहों को चीन और तिब्बत की सैर करा चुकी है। वहीं, कई भारतीय अखबार विज्ञापन की आड़ में चीनी दूतावास की ओर से जारी किए गए विशिष्ट परिशिष्ट प्रकाशित करते रहते हैं। दिखने में ये अखबार के सामान्य पन्ने लगते हैं, लेकिन यह सीधा-सीधा चीनी सरकार का प्रोपेगंडा होता है। कुल मिलाकर, भारतीय मीडिया में चीन की मजबूत होती पकड़ के ये उदाहरण चिंतित करने वाले हैं। कुछ समय पहले ही एक भारतीय पत्रकार राजीव शर्मा द्वारा पत्रकारिता की आड़ में चीन के लिए जासूसी का मामला सामने आया था और अब इस अध्याय में न्यूजक्लिक का नाम भी जुड़ गया है।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार और सेंटर फार हिमालयन एशिया स्टडीज एंड एंगेजमेंट के चेयरमैन हैं)