स्याह भविष्य की ओर कांग्रेस, न खुद का और न ही आइएनडीआइए का दिखा पा रही दम-खम
अंतरिम बजट पेश करते समय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने संप्रग शासन और मोदी सरकार के कार्यकाल में अर्थव्यवस्था की तुलनात्मक स्थिति बताने वाले जिस श्वेत पत्र को लाने का वादा किया था वह सामने आ गया। इस श्वेत पत्र से यही स्पष्ट हुआ कि मोदी सरकार ने मनमोहन सरकार की तुलना में कहीं अधिक काम किया और देश की अर्थव्यवस्था को भी बेहतर तरीके से संभाला।
संजय गुप्त। अंतरिम बजट पेश करते समय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने संप्रग शासन और मोदी सरकार के कार्यकाल में अर्थव्यवस्था की तुलनात्मक स्थिति बताने वाले जिस श्वेत पत्र को लाने का वादा किया था, वह सामने आ गया। इस श्वेत पत्र से यही स्पष्ट हुआ कि मोदी सरकार ने मनमोहन सरकार की तुलना में कहीं अधिक काम किया और देश की अर्थव्यवस्था को भी बेहतर तरीके से संभाला।
बतौर उदाहरण मनमोहन सरकार के समय मुद्रास्फीति की दर आठ प्रतिशत रही तो मोदी सरकार के शासन में पांच प्रतिशत। मनमोहन सरकार के समय विदेशी पूंजी निवेश जहां 305 अरब डालर रहा, वहीं मोदी सरकार के समय करीब 600 अरब डालर। मोदी सरकार के समय अर्थव्यवस्था की मजबूती का अनुमान इससे भी लगाया जा सकता है कि उसने जीडीपी का 3.2 प्रतिशत पूंजीगत व्यय किया, जबकि मनमोहन सरकार 1.7 प्रतिशत ही कर सकी थी।
श्वेत पत्र में संप्रग सरकार के समय के कई घोटालों का भी उल्लेख है। इनमें से प्रमुख हैं कोयला घोटाला, 2जी स्पेक्ट्रम घोटाला, आदर्श बिल्डिंग घोटाला, एंट्रिक्स-देवास घोटाला। इनके साथ कई रक्षा सौदे घोटाले भी हैं और वे बैंक घोटाले भी, जो सामने तो आए मोदी सरकार के समय, लेकिन जिनकी नींव पड़ी थी संप्रग शासन के समय।श्वेत पत्र के जरिये मोदी सरकार ने अपने कार्यों का विस्तार से जो उल्लेख किया, वह उसका अधिकार है। श्वेत पत्र के जरिये मोदी सरकार ने एक तरह से अपने दस साल का रिपोर्ट कार्ड देश की जनता के सामने रखा। मोदी सरकार की ओर से दस साल में किए गए कार्यों पर अंतरराष्ट्रीय संस्थाएं भी मुहर लगा रही हैं। वे यह मान रही हैं कि भारत इस समय तेजी से प्रगति कर रहा है। यह प्रगति हाईवे, रेल नेटवर्क, हवाईअड्डों और मेडिकल कालेजों के निर्माण के रूप में दिख भी रही है।
मनमोहन सरकार के समय और खासकर उसके दूसरे कार्यकाल में आर्थिक परिदृश्य निराशाजनक था। तब नीतिगत पंगुता की चर्चा होती थी और वित्तीय अस्थिरता के बादल मंडराते दिखते थे। बैंकों की हालत खस्ता थी और विदेशी निवेशकों का भारत से मन उचट रहा था। इसी कारण वित्त मंत्री ने कहा कि उनकी सरकार को ध्वस्त अर्थव्यवस्था मिली थी, जिसे पटरी पर लाने में नाकों चने चबाने पड़े।
श्वेत पत्र पेश किए जाने की चर्चा होते ही कांग्रेस के कान खड़े होना स्वाभाविक था, क्योंकि संप्रग सरकार की कमान उसके ही हाथ में थी। कांग्रेस चाहकर भी संप्रग सरकार की असफलताओं से पल्ला नहीं झाड़ सकती। वह इसकी भी अनदेखी नहीं कर सकती कि घपले-घोटालों के दौर में मनमोहन सिंह ने किस तरह कहा था कि गठबंधन सरकार की अपनी कुछ मजबूरियां होती हैं। इस पर हैरानी नहीं कि कांग्रेस मोदी सरकार के श्वेत पत्र के जवाब में एक स्याह पत्र यानी ब्लैक पेपर लेकर आ गई। इस स्याह पत्र के जरिये उसने मोदी सरकार को हर मोर्चे पर विफल साबित करने की कोशिश की। वह ऐसी कोशिश पहले भी करती रही है। इस स्याह पत्र की मानें तो मोदी का दस साल का कार्यकाल अन्याय का काल रहा। इसके बाद भी कांग्रेस यह नहीं कह सकी कि संप्रग शासन में बेहतर काम हुए और अर्थव्यवस्था सही तरह संचालित होती रही। वह ऐसा इसलिए नहीं कह सकी, क्योंकि तब उसके पास इसका कोई जवाब नहीं होता कि यदि सब कुछ ठीक था तो फिर 2014 में कांग्रेस को इतनी बुरी पराजय का सामना क्यों करना पड़ा था। कांग्रेस को 2019 में भी करारी हार का सामना करना पड़ा।
कांग्रेस न तो अपनी गलतियों को स्वीकार करने को तैयार है और न ही यह समझने को कि निराधार आरोपों के जरिये वह मोदी सरकार को कठघरे में नहीं खड़ा कर सकती। कांग्रेस ने 2019 के चुनावों में मोदी सरकार पर घपले-घोटालों के तमाम आरोप लगाए थे, लेकिन वे निराधार थे और इसीलिए जनता का उन पर असर नहीं पड़ा। कांग्रेस अब भी उसी तरह के आरोपों का सहारा ले रही है, जिस तरह के वह 2019 के चुनावों के समय उछाल रही थी। अब वह जात-पांत की राजनीति करने के साथ देश को उत्तर-दक्षिण में विभाजित करने की भी कोशिश कर रही है। उत्तर-दक्षिण विभाजन को हवा देने और क्षेत्रवाद की राजनीति को धार देने की कोशिश में ही बीते दिनों कर्नाटक सरकार ने दिल्ली आकर प्रदर्शन किया और यह आरोप उछाला कि उसे वांछित अनुदान नहीं दिया जा रहा है। उसने हमारा टैक्स और हमारा पैसा का जुमला भी उछाला। हालांकि वित्त मंत्री ने यह स्पष्ट किया कि केंद्रीय अनुदान वित्त आयोग की सिफारिश के तहत मिलता है, लेकिन संकीर्ण राजनीतिक कारणों से कांग्रेस के नेता यही बताने की कोशिश कर रहे हैं कि दक्षिण के राज्यों के साथ अन्याय हो रहा है। इसी कोशिश पर प्रधानमंत्री को यह कहना पड़ा कि कांग्रेस देश को बांटने का खतरनाक खेल खेल रही है।
आगामी लोकसभा चुनाव में कांग्रेस भाजपा को कड़ी टक्कर देने का चाहे जितना दम भरे, सच यह है कि वह न तो अपना दम-खम दिखा पा रही है और न ही आइएनडीआइए का। नीतीश कुमार इस गठबंधन से अलग हो चुके हैं और माना जा रहा है कि चौधरी चरण सिंह को भारत रत्न देने की घोषणा के चलते पश्चिमी उत्तर प्रदेश में असर रखने वाला राष्ट्रीय लोक दल भी भाजपा के साथ आ जाएगा। चंद्रबाबू नायडू और सुखबीर बादल भी फिर से भाजपा से जुड़ने की कोशिश करते दिख रहे हैं। इसके भी आसार हैं कि ओडिशा में बीजद और भाजपा में तालमेल हो सकता है। इन स्थितियों में कांग्रेस का भविष्य और भी स्याह दिखता है, क्योंकि बंगाल में ममता बनर्जी अकेले चुनाव लड़ने की घोषणा कर चुकी हैं और पंजाब में आम आदमी पार्टी से तालमेल की संभावना खत्म होती दिख रही है। इस सबके बीच राहुल गांधी की न्याय यात्रा कोई असर नहीं दिखा रही है। इसमें संदेह है कि स्याह पत्र से उसका कोई भला होने वाला है, क्योंकि इसमें जो आरोप लगाए गए हैं, वे हकीकत से मेल नहीं खाते। कांग्रेस की समस्या केवल यह नहीं कि आइएनडीआइए बिखर रहा है, बल्कि यह भी है कि वह कोई वैकल्पिक नैरेटिव नहीं खड़ा कर पा रही है।
(लेखक दैनिक जागरण के प्रधान संपादक हैं)