कांग्रेस की मुसीबत बने बड़बोले नेता, लगातार दे रहे किरकिरी कराने वाले बयान
सैम पित्रोदा ने राम मंदिर को भारत के विचार के प्रतिकूल भी बताया। ध्यान रहे कांग्रेस नेता और खासकर गांधी परिवार ने राम मंदिर के प्राण प्रतिष्ठा समारोह का बहिष्कार किया था। इस परिवार के सदस्य अभी तक अयोध्या नहीं गए हैं और जब द्रमुक के नेताओं ने सनातन धर्म को मिटाने की बातें की थीं उन्होंने चुप रहना ही बेहतर समझा था।
संजय गुप्त। कांग्रेसी नेता किस तरह अपने बेतुके बयानों से कांग्रेस का ही नुकसान करने में लगे हुए हैं, इसका ताजा उदाहरण हैं महाराष्ट्र कांग्रेस अध्यक्ष नाना पटोले। उन्होंने कहा कि विपक्षी गठबंधन सत्ता में आया तो राम मंदिर का शुद्धिकरण किया जाएगा। उनके इस बयान पर भाजपा कांग्रेस पर हमलावर ही थी कि मणिशंकर अय्यर एक वीडियो में अपना पाकिस्तान प्रेम व्यक्त करते और यह कहते दिखे कि उसे सम्मान देना चाहिए और उससे बात की जानी चाहिए, क्योंकि उसके पास परणाणु बम है। उन्होंने यह भी शिकायत की कि बीते दस वर्षों में पाकिस्तान को कोई इज्जत नहीं दी गई। वह पहले भी कांग्रेस के लिए मुसबीत बन चुके हैं।
नाना पटोले और मणिशंकर अय्यर के पहले इंडियन ओवरसीज कांग्रेस के अध्यक्ष सैम पित्रोदा ने कांग्रेस के लिए मुसीबत खड़ी की थी। उन्होंने भारत की आबादी की विविधता को विदेशी नस्लों से जोड़ कर यह बताया कि देश के विभिन्न क्षेत्रों में रहने वाले लोग कैसे अलग- अलग देशों जैसे दिखते हैं। उनके हिसाब से दक्षिण भारत के लोग अफ्रीकियों, पूरब के चीनियों, पश्चिम के अरबों और उत्तर भारत के श्वेतों जैसे दिखते हैं। वह एक तरह से भारत में विभाजन पैदा करने वाले उस आर्य-अनार्य सिद्धांत को भी हवा देते देखे, जिसे कुछ विदेशियों और वामपंथियों ने गढ़ा है। उनकी टिप्पणी में नस्ली सोच भी नजर आई। अमेरिका में रहने के नाते उन्हें यह अच्छे से पता होना चाहिए कि पूरे विश्व में नस्ली टिप्पणियों के लिए कहीं कोई जगह नहीं है। पिछली सदी में जब नस्ल के आधार पर समाज को बांटा जाता था, तब न जाने कितने ही गृहयुद्ध और युद्ध हुए और उनका दुष्परिणाम पूरे विश्व ने भुगता। न जाने कितने ही देश बिखर गए और करोड़ों लोगों को पीड़ा उठानी पड़ी।
जब कांग्रेस सैम पित्रोदा का बचाव करने की स्थिति में नहीं रही तो उन्होंने इस्तीफा दे दिया, जिसे पार्टी ने तत्काल स्वीकार कर लिया, लेकिन यह कहना कठिन है कि इतने मात्र से वह राजनीतिक नुकसान से बच जाएगी। ध्यान रहे इसके पहले चुनाव के दौरान ही वह भारत में अमेरिका की तरह विरासत टैक्स लगाने की पैरवी कर कांग्रेस के लिए कठिनाई खड़ी कर चुके हैं। कांग्रेस को उनके इस बयान से भी किनारा करना पड़ा था। इसके पहले 2019 में भी उन्होंने सिख विरोधी दंगों पर हुआ तो हुआ... वाली टिप्पणी करके कांग्रेस को उसी तरह नुकसान पहुंचाया था, जैसे 2014 में मणिशंकर अय्यर ने मोदी को कांग्रेस के दफ्तर में चाय की दुकान खोलने लायक बताकर पहुंचाया था। चूंकि सैम पित्रोदा राहुल गांधी के सलाहकार भी रहे हैं, अत: यह माना गया कि यदि कांग्रेस सत्ता में आई तो वह विरासत टैक्स वाले सुझाव पर अमल कर सकती है।
इस आशंका को इससे भी बल मिला, क्योंकि राहुल गांधी संपति का सर्वे कराने की बात बार-बार कर रहे हैं। इसी कारण भाजपा विरासत टैक्स पर कांग्रेस को घेरते हुए उसके खिलाफ एक विमर्श खड़ा करने में सफल रही। सैम पित्रोदा ने राम मंदिर को भारत के विचार के प्रतिकूल भी बताया। ध्यान रहे कांग्रेस नेता और खासकर गांधी परिवार ने राम मंदिर के प्राण प्रतिष्ठा समारोह का बहिष्कार किया था। इस परिवार के सदस्य अभी तक अयोध्या नहीं गए हैं और जब द्रमुक के नेताओं ने सनातन धर्म को मिटाने की बातें की थीं, उन्होंने चुप रहना ही बेहतर समझा था। इससे यही संदेश निकला कि वह अल्पसंख्यकों और खासकर मुसलमानों के तुष्टिकरण के लिए ऐसा कर रही है। इसका संकेत तब भी मिला, जब उसने घोषणा पत्र में पर्सनल कानूनों में हस्तक्षेप न करने का वादा किया।
इसकी भी अनदेखी नहीं की जा सकती कि कांग्रेस ने मुस्लिम समाज को आरक्षण देने के लिए किस तरह रंगनाथ मिश्र आयोग और सच्चर समिति का गठन किया। इन दोनों ने मुस्लिम आरक्षण का आधार तैयार करने का ही काम किया। रंगनाथ मिश्र आयोग ने तो यहां तक पैरवी की थी कि उन मतांतरित दलितों को भी अनुसूचित जाति का दर्जा दिया जाना चाहिए, जिन्होंने इस्लाम या ईसाइयत को ग्रहण कर लिया है। यह एक खतरनाक सुझाव था औऱ तुष्टिकरण की पराकाष्ठा भी। कांग्रेस तुष्टिकरण का खेल पहले भी खेलती रही है। सबसे शर्मनाक उदाहरण शाहबानो का मामला था।
तुष्टिकरण के चलते ही आपातकाल के दौरन संविधान में सेक्युलर शब्द जोड़ा गया और इसके बाद सेक्युलरिज्म के नाम पर अल्पसंख्यकपरस्ती का जो सिलसिला शुरू हुआ, वह आज तक कायम है। इसी के तहत कर्नाटक की कांग्रेस सरकार ने समस्त मुस्लिम समाज को पिछड़ा मानकर ओबीसी आरक्षण दे दिया। इस पर राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आय़ोग ने आपत्ति भी जताई, लेकिन कांग्रेस यह कहने को तैयार नहीं कि वह इस तरह मजहब के आधार पर आरक्षण के पक्ष में नहीं। इस पर हैरानी नहीं कि भाजपा ने मजहब आधारित आरक्षण को एक मुद्दा बना लिया है। कांग्रेस के इतिहास में जाकर देखा जाए तो उसने वोट बैंक की राजनीति के लिए जाने- अनजाने कई बार समाज में खाईयां बनाने की कोशिश की है। इसी कारण उसका राजनीतिक रूप से पतन हुआ, लेकिन वह सबक नहीं सीख रही है।
बात केवल नाना पटोले, मणिशंकर अय्यर और सैम पित्रोदा की ही नहीं है। कांग्रेस के कुछ और नेता भी पार्टी की किरकिरी कराने वाले बयान देते चले आ रहे हैं, जैसे महाराष्ट्र कांग्रेस के नेता विजय वडेट्टीवार ने मुंबई हमले के दौरान जान गंवाने वाले पुलिस अधिकारी हेमंत करकरे के बारे में यह कह दिया कि वह पाकिस्तान आतंकी अजमल कसाब नहीं, बल्कि आरएसएस की विचारधारा वाले पुलिस अफसर की गोली का निशाना बने थे। जब इस बात का विरोध हुआ तो शशि थरुर ने आगे आकर यह मांग कर दी कि विजय वडेट्टीवार के आरोपों की जांच होनी चाहिए। क्या उन्हें नहीं पता कि जब इस मामले की जांच हुई थी, तब केंद्र और महाराष्ट्र में कांग्रेस की सरकार थी? उस दौरान वह खुद मनमोहन सरकार में मंत्री भी थे। बीते दिनों ही पंजाब कांग्रेस के नेता एवं पूर्व मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी ने पुंछ हमले को भाजपा की नौटंकी बता दिया। इससे तो यही पता चलता है कि कांग्रेस के नेता जो मन में आ रहा है, वह बोल दे रहा है। ऐसा शायद इसीलिए है, क्योंकि यही काम राहुल गांधी भी कर रहे हैं।
[लेखक दैनिक जागरण के प्रधान संपादक हैं]