डा. सुरजीत सिंह : केंद्र सरकार व्यक्तिगत डाटा संरक्षण विधेयक, 2022 को संसद के आगामी बजट सत्र में पेश करने जा रही है। केंद्रीय इलेक्ट्रानिक्स एवं सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय द्वारा तैयार यह विधेयक डिजिटल नागरिकों के अधिकारों, कर्तव्यों और एकत्रित डाटा के वैध उपयोग के दायित्व को समेटे हुए है। आज के दौर में इंटरनेट कनेक्टिविटी देश को डिजिटल रूप से सशक्त बना रही है, जिसका श्रेय 2015 से भारत में शुरू हुए डिजिटल इंडिया कार्यक्रम को जाता है। इस कार्यक्रम ने ग्रामीण भारत सहित पूरे देश में हाई-स्पीड इंटरनेट नेटवर्क को बढ़ावा दिया है। आज इंटरनेट की पहुंच शहरी क्षेत्र में 84 प्रतिशत एवं ग्रामीण क्षेत्र में 74 प्रतिशत तक हो गई है। आप्टिकल फाइबर नेटवर्क के तहत 1.25 लाख से अधिक ग्राम पंचायतों को जोड़ा जा चुका है। कंप्यूटर और इंटरनेट के माध्यम से ई-गवर्नेंस, शिक्षा, स्वास्थ्य, टेलीमेडिसिन और मनोरंजन आदि सभी क्षेत्रों का विस्तार बढ़ता जा रहा है।

आज लोग मोबाइल के अलावा क्रेडिट कार्ड, बैंक अकाउंट, एप का इस्तेमाल या आनलाइन सामान खरीदते समय अपनी अनेक प्रकार की जानकारियां संबंधित कंपनियों को उपलब्ध करवाते हैं। कंपनियां लोगों की निजी जानकारी को गोपनीय न रखकर बड़ी कीमत पर अंतरराष्ट्रीय बाजारों में बेच देती हैं। वर्तमान में सबसे महंगी बिकने वाली वस्तु डाटा ही है। खरीदे गए निजी डाटा का कंपनियों द्वारा व्यावसायिक इस्तेमाल किया जाता है। इस संबंध में भारत में कानून न होने का लाभ इन कंपनियों द्वारा लिया जाता रहा है।

डाटा चोरी होने के साथ-साथ साइबर अपराधों का विस्तार भी बढ़ता जा रहा है। एक अनुमान के अनुसार डार्क वेब के पास कम से कम 15 करोड़ लोगों के क्रेडिट कार्ड का डाटा उपलब्ध है। प्रश्न यह है कि भारत जिस तेजी से डिजिटलीकरण के रास्ते पर बढ़ रहा है, उसे देखते हुए प्रश्न है कि लोगों के व्यक्तिगत डाटा की गोपनीयता को कैसे बनाए रखा जाए? बदलती तकनीक के दौर में लोगों की डिजिटल जानकारी के विषय में किस प्रकार जागरूक किया जाए? सुप्रीम कोर्ट भी मानता है कि लोगों के निजी डाटा को सार्वजनिक करना उनके मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है। व्यक्तिगत डाटा संरक्षण विधेयक लोगों के हितों की रक्षा के लिए उनके निजी डाटा को सुरक्षा प्रदान करता है। विधेयक में सार्वजनिक और निजी कंपनियों द्वारा एकत्रित व्यक्तिगत डाटा के प्रबंधन, संग्रहण, भंडारण और प्रसंस्करण पर विस्तार से दिशानिर्देश के साथ-साथ जुर्माना और मुआवजा आदि का प्रविधान किया गया है।

इसके कानून बन जाने से कोई भी बाहरी कंपनी कानून एवं सरकार के दायरे से भी बाहर नहीं होगी। कंपनियां लोगों के निजी डाटा को संबंधित व्यक्ति की अनुमति के बिना न तो सार्वजनिक कर पाएंगी और न ही उन्हें अपने लाभ के लिए बेच सकेंगी। हर डिजिटल नागरिक को सारी जानकारी स्पष्ट और आसान भाषा में देना प्रत्येक कंपनी के लिए अनिवार्य होगा। उपभोक्ता को यह अधिकार होगा कि जब कभी उसे लगे कि कंपनियां उसके डाटा का गलत इस्तेमाल कर रही हैं तो वह किसी भी समय अपनी शिकायत दर्ज कर अपनी निजी जानकारी को वापस ले सकता है अथवा उसे उस प्लेटफार्म से हटवा भी सकता है। देश के नागरिकों का संवेदनशील डाटा भारत की कानूनी सीमाओं के अंतर्गत ही रहेगा। संवेदनशील डाटा को छोड़कर यदि कंपनी किसी अन्य डाटा को देश से बाहर लेकर जाना चाहती है तो उसके लिए सरकार की शर्तों एवं जिम्मेदारियों को मानना अनिवार्य होगा। कोई भी कंपनी अनजाने में या जानबूझकर या यह कहकर कि डाटा हैक हो गया है, अपनी जिम्मेदारी से बच नहीं सकती। बच्चों के संबंध में डाटा एकत्र करने की इजाजत नहीं होगी। यदि कोई व्यक्ति या कंपनी गलत जानकारी देती है तो उसके लिए सजा और जुर्माने का भी प्रविधान किया गया है।

विधेयक के कानून का रूप लेने के बाद देश के समक्ष सबसे बड़ी चुनौती व्यक्तिगत डाटा की सुरक्षा और जिम्मेदार डाटा प्रबंधन प्रथाओं को स्थापित करने की भी होगी, क्योंकि सूचनाओं की गोपनीयता के लिए यह आवश्यक है कि प्रत्येक हितधारक को सूचना के संरक्षण में अपनी भूमिका और जिम्मेदारी के बारे में पता हो। इसके लिए लोगों को डाटा की निजता के प्रति जागरूक करना होगा। असीमित समय तक डाटा को सुरक्षित रखने के लिए अधिक डाटा केंद्रों की आवश्यकता होगी। क्लाउड आइटी के अनुसार अमेरिका में 2701, जर्मनी में 487, ब्रिटेन में 456 और चीन में 443 डाटा केंद्र हैं। तकनीक के मामले में आगे रहने वाले जापान में इनकी संख्या 207 है, जबकि भारत में इनकी संख्या मात्र 138 है। लिहाजा आने वाले वर्षों में डाटा केंद्रों की संख्या को भी बढ़ाना होगा।

व्यक्तिगत डाटा संरक्षण बिल से डाटा के स्तर पर अधिक पारदर्शिता और जवाबदेही बढ़ेगी। इसके साथ ही देश विरोधी गतिविधियों को रोकने में मदद मिलेगी। हालांकि बदलती तकनीक के साथ विधेयक सामंजस्य स्थापित कर सके, इसके लिए इसमें भी समय-समय पर समीक्षा का प्रविधान किया जाना चाहिए। उम्मीद की जा रही है कि सरकार बजट सत्र में डिजिटल इंडिया बिल भी पेश कर सकती है, जो आइटी बिल, 2000 को प्रतिस्थापित करेगा। इससे इंटरनेट मीडिया प्लेटफार्म, ओटीटी प्लेटफार्म और ई-कामर्स वेबसाइट्स आदि को विनियमित किया जाएगा। साइबर अपराध, ब्लाक चेन, ओटीटी कंटेंट, महिला एवं बच्चों से संबंधित अपराधों आदि को रोकने की दिशा में इसे एक बड़ा कदम माना जा रहा है। उम्मीद है कि ये दोनों विधेयक आने वाले समय में भारत को विश्व में एक मजबूत आर्थिक शक्ति बनने में मदद करेंगे।

(लेखक अर्थशास्त्र के प्रोफेसर हैं)