डॉ. जयंतीलाल भंडारी। देश में घटती हुई घरेलू बचत के खतरे को भांपते हुए पिछले दिनों केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने रिजर्व बैंक के निदेशक मंडल की बैठक में कहा कि बैंकों द्वारा ऐसी आकर्षक ब्याज योजनाएं लाई जानी चाहिए, जिससे उनमें जमा राशि में तेज इजाफा हो सके। चूंकि केंद्र सरकार अपने राजकोषीय घाटे को पाटने के लिए लघु बचत योजनाओं के तहत संग्रह राशि का भी उपयोग करती है, इसलिए घरेलू बचत में लगातार कमी आना चिंताजनक है।

घरेलू बचत किसी व्यक्ति की आय की वह शेष राशि है, जो उपभोग आवश्यकताओं और विभिन्न वित्तीय देनदारियों के भुगतान के बाद बचती है। इस घरेलू बचत को बैंक और गैर बैंक जमा, जीवन बीमा, राष्ट्रीय बचत प्रमाणपत्र (एनएससी), लोक भविष्य निधि (पीपीएफ), किसान विकास पत्र, सुकन्या समृद्धि, पेंशन निधि तथा अन्य वित्तीय योजनाओं में निवेश किया जाता है।

यदि हम देश में घरेलू बचत संबंधी आंकड़ों को देखें तो पाते हैं कि जो घरेलू बचत वित्त वर्ष 2006-07 में सकल घरेलू उत्पाद यानी जीडीपी का 18 प्रतिशत थी, वह प्रतिवर्ष घटते हुए 2022-23 में जीडीपी के 5.2 प्रतिशत के स्तर पर आ गई। यह पिछले पांच दशक में सबसे कम स्तर पर है।

घरेलू बचत में कमी आने का प्रमाण गत दिनों पेश आम बजट भी दे रहा है। चालू वित्त वर्ष 2024-25 के अंतरिम बजट में 14.77 लाख करोड़ रुपये घरेलू बचत से प्राप्त होने का अनुमान लगाया गया था, लेकिन 2024-25 के पूर्ण बजट में लघु बचतों से प्राप्ति के अनुमान को घटाकर 14.20 लाख करोड़ रुपये कर दिया गया है।

देश में लोग कमाई का एक हिस्सा भविष्य के लिए घरेलू बचत के रूप में बचाकर रखते रहे हैं, लेकिन अब इस बचत की प्रवृत्ति में बड़ा बदलाव दिखाई दे रहा है। लोग आवास, वाहन, शिक्षा तथा अच्छे जीवन के लिए विभिन्न प्रकार के कर्ज लगातार ले रहे हैं। जहां परिवारों की वित्तीय देनदारियां बढ़ने से घरेलू बचत सीधे तौर पर कम हुई है, वहीं आय के एक हिस्से का इस्तेमाल विभिन्न प्रकार के ऋणों के ब्याज के भुगतान के लिए भी किए जाने से घरेलू बचत कम हुई है।

देश में इस समय लघु बचत योजनाओं के तहत 40 करोड़ से अधिक बचतकर्ता हैं। विभिन्न लघु बचत योजनाओं में तुलनात्मक रूप से कम ब्याज मिलने के कारण भी उनके द्वारा इनमें निवेश में कमी आई है। देश में बदली हुई आयकर व्यवस्था के कारण भी आयकरदाताओं द्वारा की जाने वाली घरेलू बचत में कमी आ रही है। इस समय देश में आयकर भुगतान की पुरानी और नई दो कर व्यवस्था हैं। जहां पुरानी कर व्यवस्था में बचत और निवेश के लिए प्रोत्साहन हैं, वहीं नई कर व्यवस्था में बचत के वैसे प्रोत्साहन नहीं हैं।

इस समय ज्यादातर आयकरदाता नई कर व्यवस्था अपना रहे हैं। इस वर्ष 31 जुलाई तक आयकर आकलन वित्त वर्ष 2024-25 के लिए दाखिल किए गए कुल 7.28 करोड़ आइटीआर में से लगभग 72 प्रतिशत करदाताओं ने नई कर व्यवस्था को चुना है। नई कर व्यवस्था से बचत एवं निवेश की जगह उपभोग खर्च बढ़ाने की प्रवृत्ति को अधिक प्रोत्साहन मिल रहा है।

घरेलू बचत में कमी का एक अन्य कारण देश में महिलाओं द्वारा अपने पास आने वाले धन का उपयुक्त निवेश नहीं किया जाना भी है। राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (एनएसओ) के मुताबिक बैकों में कुल व्यक्तिगत खातों में से हर तीसरा खाता किसी महिला के नाम पर है, लेकिन बैंकों में जमा कुल राशि में से सिर्फ 20 प्रतिशत ही महिलाओं के खातों में जमा है।

ऐसा नहीं है कि देश में लोगों की आय में कमी आई है। वस्तुतः भारत में प्रति व्यक्ति आय तेजी से बढ़ रही है। 10 वर्ष पहले वित्त वर्ष 2014-15 में जो प्रति व्यक्ति आय 86,647 रुपये थी, वह 2023-24 में करीब 2.28 लाख रुपये के स्तर पर पहुंच गई। दरअसल अब लोग बड़ी संख्या में अपनी बचत को ऐसी जगहों पर निवेश कर रहे हैं, जहां उनको ज्यादा ब्याज और रिटर्न मिल रहा है।

इसके लिए लोग अपनी बचत का बड़ा हिस्सा शेयर बाजार के जरिये कंपनियों के शेयर, म्यूचुअल फंड, रियल एस्टेट, सोने एवं बहुमूल्य धातुओं में निवेश कर रहे हैं। इनमें घरेलू बचत की योजनाओं की तुलना में अधिक रिटर्न मिल रहा है।

इसके अलावा महंगे वाहनों और विलासिता के सामानों की खरीदी पर अब लोग ज्यादा खर्च कर रहे हैं। यही कारण है कि 10 वर्ष पहले जो सेंसेक्स 25 हजार से स्तर पर था, आज वह 80 हजार के ऊपर है। भारत का शेयर बाजार इस समय दुनिया का चौथा सबसे बड़ा शेयर बाजार हो गया है। डीमैट खातों की संख्या बढ़कर 16.2 करोड़ हो गई है।

घरेलू बचत व्यक्ति की आर्थिक मुश्किलों में सबसे पहला और विश्वसनीय वित्तीय साथी माना जाता है। ऐसे में घरेलू बचत के घटने की स्थिति चिंताजनक है, लेकिन यह किसी वित्तीय संकट की आहट नहीं। रिजर्व बैंक के मुताबिक देश में परिवारों की वित्तीय देनदारियों में वृद्धि के बावजूद उनकी बैलेंस शीट बेहतर बनी हुई है। मार्च 2023 के अंत में परिवारों की वित्तीय संपत्तियां उनकी देनदारियों की तुलना में 2.7 गुना अधिक थीं।

भारतीय परिवारों का आय के प्रतिशत के रूप में ब्याज का भुगतान मार्च 2021 में 6.9 से घटकर मार्च 2023 में 6.7 प्रतिशत रह गया, जो वैश्विक स्तर पर भी सराहनीय है। उम्मीद करें कि सभी बैंक जमा प्राप्त करने के नए उपाय खोजेंगे, अपनी बचत योजनाओं को आकर्षक बनाएंगे और घरेलू बचत योजनाओं के लिए ब्याज दरों में उपयुक्त वृद्धि करेंगे। ऐसे रणनीतिक प्रयासों से घटती हुई घरेलू बचत में वृद्धि की जा सकेगी। इससे अर्थव्यवस्था के लिए भी अधिक निवेश का प्रबंधन किया जा सकेगा।

(लेखक एक्रोपोलिस इंस्टीट्यूट आफ मैनेजमेंट स्टडीज एंड रिसर्च, इंदौर के निदेशक हैं)