शिवकांत शर्मा। अमेरिकी राष्ट्रपति के लिए चुनावों में उम्मीदवारों के बीच लगभग 65 वर्षों से होती आ रही टीवी बहसों में पिछले मंगलवार को उपराष्ट्रपति कमला हैरिस और पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के बीच हुई बहस शायद सबसे महत्वपूर्ण थी। इससे पिछली बहस में कमजोर पड़ने के कारण राष्ट्रपति बाइडन को चुनावी दौड़ से हटना पड़ा था। चुनावी बहसों के इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ था। इस बार की बहस अमेरिका के इतिहास में पहली बार उम्मीदवार चुनी गईं भारत और अफ्रीकावंशी महिला और पूर्व राष्ट्रपति के बीच हो रही थी, जिससे अमेरिका के लोकतंत्र और विदेश नीति की दिशा तय होने वाली थी।

आमराय यह है कि बहस में कमला हैरिस विजयी रहीं, क्योंकि बहस के तुरंत बाद के एक सर्वेक्षण में लगभग दो तिहाई दर्शकों ने कमला हैरिस के प्रदर्शन को बेहतर बताया। अमेरिकी चुनाव पर सट्टा लगाने वाले पालीमार्केट सट्टा बाजार में भी कमला हैरिस की जीत के भाव में तीन अंकों की तेजी दर्ज हुई। अपने प्रदर्शन से उत्साहित कमला हैरिस ने ट्रंप को एक और टीवी बहस की चुनौती दे डाली। ट्रंप ने उसका सीधा जवाब न देते हुए बहस संचालकों की तटस्थता पर सवाल उठाए, जो इसका संकेत है कि स्वयं वह भी अपने प्रदर्शन से संतुष्ट नहीं, परंतु अहं के चलते ट्रंप अपने चिरपरिचित अंदाज में अपनी ही जीत के दावे करते फिर रहे हैं। विडंबना यह रही कि बहस देश और विदेश की नीतियों पर केंद्रित न रहकर निजी छींटाकशी, व्यक्तिगत हमलों और मिथ्या प्रचार में बदल गई। बहस की शुरुआत कमला हैरिस ने मंच पर डोनाल्ड ट्रंप के पास जाकर उनसे हाथ मिलाकर की।

पहला सवाल अर्थव्यवस्था और महंगाई पर था। कमला हैरिस से पूछा गया कि पिछले चार वर्षों के बाइडन-हैरिस शासन में अमेरिका के आम नागरिक की जिंदगी बेहतर हुई है या खराब? इसका जवाब देते समय वह थोड़ा लड़खड़ाईं। परिवारों और छोटे कारोबारों के लिए टैक्स राहत की भावी योजनाएं गिनाते हुए वह बात पलट गईं और राष्ट्रपति ट्रंप की अमीरों को टैक्स राहत देने और 20 प्रतिशत बिक्री कर लगाकर आम लोगों की जिंदगी दूभर बनाने वाली नीतियों की आलोचना करने लगीं। आलोचना के जवाब में ट्रंप ने कमला हैरिस के कार्यकाल में महंगाई और अवैध आप्रवासन के अतिरंजनापूर्ण दावे किए, जिसके बाद छींटाकशी, व्यक्तिगत हमलों और मिथ्या दावों का दौर शुरू हुआ और बहस का स्तर गिरता चला गया। ट्रंप ने हैरिस को मार्क्सवादी, चरमपंथी और मिथ्यावादी बताया और कहा कि हंगरी के राष्ट्रपति विक्टर ओर्बान जैसे दबंग नेता और पुतिन, चीन और उत्तरी कोरिया जैसे देश भी उनका लोहा मानते हैं। कमला हैरिस ने ट्रंप पर चल रहे केस गिनाते हुए उन्हें दंगे उकसाने वाला और लोकतंत्र के लिए खतरा बताया। उन्होंने कहा कि दुनिया उनकी कमजोरी पर हंसती है और पुतिन तो उनको ‘हजम’ कर सकते हैं।

बहस में एक वक्ता के बोलते समय दूसरे का माइक बंद रखा गया था। इसलिए एक-दूसरे को टोकना तो संभव नहीं था, पर हैरिस ने ट्रंप का संतुलन बिगाड़ने के लिए अपनी भाव-भंगिमाओं का बखूबी इस्तेमाल किया। ट्रंप को सबसे अधिक ताव तब आया, जब हैरिस ने उनकी रैलियों पर कटाक्ष किया। उसके बाद वह अवैध आप्रवासी पालतू कुत्ते-बिल्ली मारकर खा रहे हैं और अस्पतालों में गर्भपात के नाम पर नवजात शिशुओं को मारा जा रहा है, जैसे बेसिर-पैर के दावे करने लगे। हैरिस ने भी ट्रंप द्वारा गर्भपात पर बैन लगाने और 20 प्रतिशत बिक्री कर लगाने जैसे मिथ्या दावे किए। ट्रंप की पिछले दस साल की राजनीति का अध्ययन करने से स्पष्ट है कि उनके जनाधार पर बहस में हार का खास असर नहीं पड़ता। हैरिस हारतीं तो उनकी मुश्किलें बढ़ सकती थीं। उनकी बढ़त उनके जनाधार को मजबूत करेगी, जिसके सहारे वह ट्रंप को कड़ी टक्कर दे पाएंगी, लेकिन इससे चुनाव में उनकी जीत पक्की हो गई हो, ऐसा नहीं है। जनमत सूचकांक बताते हैं कि हैरिस की इस जीत के बाद भी टक्कर कांटे की बनी हुई है। उत्तर और दक्षिण के जिन सात राज्यों में हार-जीत निर्णायक है, उनमें से विस्कोंसिन, मिशिगन और नवाडा में हैरिस आगे हैं जबकि एरिजोना और जार्जिया में ट्रंप। अंतर इतना मामूली है कि दोनों में से कोई भी जीत सकता है। इनमें सबसे बड़ा राज्य पेंसिलवेनिया है, जहां टीवी बहस हुई थी। यहां दोनों उम्मीदवार बराबरी पर चल रहे हैं।

जीत-हार इस बात पर निर्भर करेगी कि कौन अपने कितने अधिक समर्थकों से वोट डलवा सकता है। अमेरिका के राष्ट्रपतीय चुनावों की प्रक्रिया काफी पेचीदा है। 50 राज्यों के अपने-अपने चुनावी नियम हैं। कुछ राज्यों में अग्रिम मतदान शुरू हो चुका है और अन्य में शुरू होने वाला है। ऐसे में अपने समर्थकों का मतदान सुनिश्चित करा पाना आसान काम नहीं है। 2016 में हिलेरी क्लिंटन अपने समर्थकों से पर्याप्त संख्या में वोट नहीं डलवा पाईं थीं, इसलिए हार गईं थीं। टीवी बहस में हैरिस के प्रदर्शन से आशा बंधी है कि वह अनिश्चय की स्थिति में फंसे मतदाताओं को लुभाने के साथ-साथ डेमोक्रेटिक पार्टी के समर्थकों को भी वोट डालने के लिए उत्साहित कर पाएंगी। उनका समर्थन रिपब्लिकन पार्टी के उन दिग्गज नेताओं ने भी कर दिया है, जो ट्रंप की नीतियों से नाराज हैं। इनमें पूर्व राष्ट्रपति बुश, उपराष्ट्रपति डिक चेनी, उनकी बेटी लिज चेनी और सीनेट के पूर्व नेता मिच मकानल शामिल हैं। मशहूर गायिका टेलर स्विफ्ट भी हैरिस के पक्ष में आ गई हैं। उनके प्रशंसकों की संख्या 25 करोड़ से भी अधिक है। इसलिए कुछ दिनों पहले उनके समर्थन का दावा ट्रंप ने भी किया था, जो गलत निकला।

समर्थकों में उत्साह जगाने के साथ ही अनिश्चय में फंसे मतदाताओं को लुभाने के लिए अगले सात हफ्तों में विज्ञापनों की जंग लड़ी जाएगी। इसमें तथ्यों की कम और भारत के आम चुनावों जैसी-संविधान खतरे में है या मंगलसूत्र छीन लिए जाएंगे सरीखी मिथ्या बातें अधिक होंगी। इस चुनाव को लेकर सबसे बड़ी आशंका इसकी है कि कांटे की टक्कर होने और ट्रंप समर्थक सरकारों द्वारा कई राज्यों के चुनाव नियमों में किए गए परिवर्तनों के कारण समय पर परिणामों की घोषणा हो पाएगी या नहीं? होने पर भी क्या उन्हें स्वीकार किया जाएगा और क्या समय पर सत्ता का शांतिपूर्ण हस्तांतरण हो पाएगा?

(लेखक बीबीसी हिंदी के पूर्व संपादक हैं)