संजय गुप्त। राहुल गांधी ने अपनी अमेरिका यात्रा के दौरान जो बयान दिए, उन्हें लेकर भारत में विवाद होना ही था और वह हुआ भी। उनके इस बयान पर सबसे अधिक आपत्ति जताई गई कि भारत में लड़ाई इसकी है कि सिख पगड़ी, कड़ा धारण कर पाएंगे या नहीं और गुरुद्वारा जा सकेंगे या नहीं? उन्होंने यह बात अपने कार्यक्रम में उपस्थित एक सिख पत्रकार भलिंदर सिंह विरमानी का नाम पूछने के बाद कही। भाजपा नेताओं ने तो इसका जोरदार विरोध किया ही, खुद भलिंदर सिंह और अन्य सिखों ने भी उस पर आपत्ति जताई। यह इसीलिए जताई, क्योंकि यह बयान वास्तव में उकसावे और अपने राजनीतिक स्वार्थ के लिए लोगों को लड़ाने-भिड़ाने वाला है। भारत में वैसा कुछ भी नहीं है, जिसकी आशंका राहुल गांधी जता रहे हैं। क्या कोई और यहां तक कि सिख यह कह सकते हैं कि किसी सिख को पगड़ी, कड़ा धारण करने या फिर गुरुद्वारे जाने से रोका जा रहा है या फिर ऐसा कुछ होने की आशंका दिख रही है।

राहुल गांधी का सिखों को लेकर दिया गया बयान कितना भड़काऊ है, इसे इससे समझा जा सकता है कि खालिस्तानी आतंकी गुरपतवंत सिंह पन्नू ने उनके कहे को सही करार दिया। एक तरह से राहुल ने खालिस्तानी आतंकियों का ही काम आसान किया। यह तय है कि अब वे उनके बयान का सहारा लेकर भारत के खिलाफ और अधिक दुष्प्रचार करेंगे, लेकिन राहुल गांधी के रवैये से यह साफ है कि उन पर इसका कोई फर्क नहीं पड़ रहा है और वह इस पर गौर करने को तैयार नहीं कि इंदिरा गांधी की हत्या के बाद दिल्ली और देश के कुछ अन्य शहरों में सिखों के खिलाफ जो भीषण दंगे हुए, उन्हें रोकने के लिए तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने कुछ नहीं किया था और उलटे यह कहा था कि जब कोई बड़ा पेड़ गिरता है तो धरती हिलती है।

वास्तव में यही वह दौर था, जब सिख अपनी सुरक्षा को लेकर आशंकित थे। राहुल इसका संज्ञान लेने को भी तैयार नहीं दिख रहे कि इंदिरा गांधी ने भिंडरांवाले को खड़ा करने का जो काम किया, उसके देश को भयावह नतीजे भोगने पड़े। वह पंजाब के संदर्भ में इंदिरा गांधी की ऐतिहासिक भूलों की अनदेखी ही नहीं कर रहे हैं, बल्कि खालिस्तानियों को रास आने वाले बयान भी दे रहे हैं। कांग्रेस ने अमेरिका में राहुल गांधी की ओर से सिखों को लेकर दिए गए बयान को सही साबित करने के लिए पंजाब के अपने नेताओं प्रताप सिंह बाजवा और चरणजीत सिंह चन्नी को जिस तरह मैदान में उतारा, उससे यही पता चलता है कि राहुल के नेतृत्व में पार्टी यह दर्शना चाहती है कि उसे कांग्रेस की ऐतिहासिक भूलों से मतलब नहीं। शायद इसीलिए इन दोनों नेताओं से यह भी कहलवाया गया कि आपरेशन ब्लूस्टार में भाजपा और आरएसएस का हाथ था। यह केवल खतरनाक नैरेटिव खड़ा करने वाला ही नहीं, बल्कि लोगों को बरगलाने वाला भी झूठ है, लेकिन शायद राहुल गांधी कांग्रेस को अलग राह पर ले जाने के लिए छल-कपट का सहारा लेने में भी संकोच नहीं कर रहे हैं। हैरानी नहीं कि इसी कारण अमेरिका में उन्होंने यह भी कहा कि भारत में तमिल, तेलुगु आदि भाषियों से यह कहा जा रहा है कि उनकी भाषा, संस्कृति और खानपान कमतर है।

राहुल गांधी ने अमेरिका में अपने चिरपरिचित अंदाज में यह भी कहा कि चीन ने भारत की सैकड़ों किलोमीटर जमीन पर कब्जा किया हुआ है और प्रधानमंत्री मोदी उससे निपट नहीं पा रहे हैं। वह यह बात न जाने कबसे दोहरा रहे हैं। साफ है कि वह यह भूलना पंसद कर रहे हैं कि चीन ने भारत की भूमि पर उस समय कब्जा किया था, जब कांग्रेस सत्ता में थी। चीन के प्रति जवाहरलाल नेहरू की नरम नीति के नतीजों की अनदेखी कर राहुल गांधी यही रेखांकित कर रहे हैं कि नेहरूजी ने जो भारी भूल की, उससे उन्हें कोई मतलब ही नहीं।

राहुल ने अमेरिका में यह भी कहा कि जब स्थितियां अनुकूल होंगी तो आरक्षण खत्म कर दिया जाएगा। जब इसका विरोध हुआ तो उन्होंने कहा कि वह तो आरक्षण को 50 प्रतिशत से अधिक करना चाहते हैं। इससे यदि कुछ साफ होता है तो यही कि राहुल इस तथ्य को ओझल करना चाहते हैं कि कांग्रेस किस तरह नीतिगत स्तर पर सदैव आरक्षण के खिलाफ रही। सब जानते हैं कि जब वीपी सिंह ने मंडल आयोग की सिफारिशों को लागू किया था तो राजीव गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस ने इसका खुलकर विरोध किया था। आज राहुल गांधी यह सब भूलकर खुद को आरक्षण का सबसे बड़ा पैरोकार साबित करने में लगे हुए हैं। वह कांग्रेस की ऐतिहासिक भूलों के साथ-साथ पार्टी की पुरानी नीतियों से भी किनारा कर रहे हैं। इसका प्रमाण केवल आरक्षण बढ़ाने की उनकी मांग ही नहीं, जातिगत गणना कराने का उनका वादा भी है। ध्यान रहे कि कांग्रेस ने किस तरह सत्ता में रहते समय जातिगत जनगणना कराने से बार-बार इन्कार किया। आज राहुल गांधी जातिगत जनगणना पर जोर देते समय यह बताने को तैयार नहीं कि आखिर कांग्रेस सत्ता में रहते समय जातिगत जनगणना कराने से क्यों इन्कार करती रही? स्पष्ट है कि वह कांग्रेस को बदलने में लगे हुए हैं और इस क्रम में नेहरू, इंदिरा और राजीव गांधी की रीति-नीति से भी पल्ला झाड़ रहे हैं। राहुल इसकी कहीं कोई परवाह करते नहीं दिख रहे कि कांग्रेस को नया रूप-स्वरूप देने की उनकी कोशिश पार्टी के पुराने नेताओं को रास आ रही है या नहीं?

भाजपा कांग्रेस की ऐतिहासिक भूलों के आधार पर राहुल गांधी को घेरने की हर संभव कोशिश तो कर रही है, लेकिन वह यही दिखा रहे हैं कि इससे उनकी सेहत पर कोई फर्क नहीं पड़ रहा है। राहुल गांधी का रवैया ऐसा है, मानो वह यह कहना चाहते हों कि नेहरू, इंदिरा और राजीव गांधी की कांग्रेस से उनका कोई नाता नहीं और इन नेताओं ने जो कुछ अच्छा-बुरा किया, उससे उन्हें कोई मतलब नहीं। राहुल गांधी के इस रुख का सामना कांग्रेस किस तरह करेगी, यह तो वही जाने, लेकिन भाजपा को यह समझ लेना चाहिए कि वह कांग्रेस की गलतियों और उसकी नीतियों का जिक्र करके राहुल को घेरने में कामयाब नहीं होने वाली। स्पष्ट है कि उसे अपनी रणनीति पर नए सिरे से विचार करना होगा।

[लेखक दैनिक जागरण के प्रधान संपादक हैं]