राजेश कुमार यादव। आज की तिथि-14 सितंबर 2024, एक महत्वपूर्ण ऐतिहासिक घटना की 75वीं वर्षगांठ है। यह वह दिन है, जब 1949 में संविधान सभा ने हिंदी को देवनागरी लिपि में संघ की राजभाषा के रूप में स्वीकार किया था। यह निर्णय स्वतंत्र और लोकतांत्रिक भारत के निर्माण के लिए महत्वपूर्ण था, जहां भाषा की विविधता के बावजूद एक ऐसी भाषा को राजभाषा चुना गया, जो देश के अधिकांश लोगों के लिए सहज और सुलभ हो। तबसे हिंदी ने अपनी भूमिका में अनेक परिवर्तन देखे हैं और देश की प्रमुख भाषाओं में से एक बनी हुई है।

पिछले 75 वर्षों में हिंदी ने न केवल एक भाषा के रूप में, बल्कि भारतीय सांस्कृतिक धरोहर के प्रतीक के रूप में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। यह वह भाषा है, जिसने देश के आत्मा को प्रतिबिंबित किया है और स्वतंत्रता के बाद के भारत में सामाजिक और सांस्कृतिक एकता को सुदृढ़ किया है। तकनीकी और वैज्ञानिक प्रगति के साथ हिंदी ने परंपरा और आधुनिकता के बीच एक पुल का काम किया है। आज हिंदी न केवल भारत, बल्कि कई देशों में भी पढ़ाई और बोली जाती है। हालांकि हिंदी ने एक लंबी यात्रा तय की है, लेकिन इसके सामने आज भी कई चुनौतियां हैं। भाषाई विविधता वाले देश में सभी भाषाओं को सम्मान और महत्व देना आवश्यक है। हिंदी को बढ़ावा देने के साथ-साथ अन्य क्षेत्रीय भाषाओं को भी सहेजने और संरक्षित करने की जिम्मेदारी है।

पिछले 75 वर्षों में हिंदी को राजभाषा के रूप में पूरी तरह स्थापित करने में कई चुनौतियां सामने आईं। सबसे बड़ी चुनौती भाषाई विविधता है। भारत जैसे बहुभाषी देश में जहां विभिन्न राज्यों की अपनी-अपनी भाषाएं हैं, वहां एक भाषा को पूरे देश में लागू करना जटिल कार्य है, किंतु आज के समय में डिजिटल क्रांति के साथ हिंदी को एक नया मंच मिला है। इंटरनेट ने हिंदी को वैश्विक स्तर पर पहुंचाया है। युवा पीढ़ी हिंदी का उपयोग डिजिटल माध्यमों में कर रही है, जिससे यह भाषा और अधिक सशक्त हो रही है। तकनीकी क्षेत्र में भी हिंदी का उपयोग बढ़ रहा है। इन 75 वर्षों में हिंदी को कानून की भाषा बनाना एक महत्वपूर्ण, लेकिन चुनौतीपूर्ण प्रश्न रहा है। इसके लिए संवैधानिक, कानूनी, प्रशासनिक और सामाजिक स्तर पर व्यापक बदलाव की आवश्यकता होगी। यदि इस दिशा में ठोस कदम उठाए जाते हैं, तो यह भारतीय न्यायिक प्रणाली को अधिक सुलभ और पारदर्शी बना सकता है। इससे न केवल हिंदी भाषी जनता को लाभ होगा, बल्कि यह लोकतंत्र को भी सशक्त बनाने की दिशा में एक बड़ा कदम साबित हो सकता है। हिंदी को कानून की भाषा बनाने के लिए कानूनी शिक्षा प्रणाली में भी बदलाव आवश्यक होगा। वर्तमान में अधिकांश कानूनी पाठ्यक्रम और पुस्तकों का माध्यम अंग्रेजी है। हिंदी में कानूनी साहित्य, पाठ्यक्रम और प्रशिक्षण कार्यक्रमों का विकास करना होगा। इसके साथ ही वकीलों, न्यायाधीशों और अन्य कानूनी पेशेवरों को हिंदी में दक्षता प्राप्त करने के लिए प्रशिक्षण लेना होगा।

विज्ञान और तकनीक के युग में भाषा का महत्व अत्यधिक बढ़ गया है। आज ज्ञान का सृजन और प्रसार विज्ञान और तकनीक के माध्यम से ही हो रहा है। इन दोनों ही क्षेत्रों में अंग्रेजी का वर्चस्व है। भारत जैसे बहुभाषी देश में जब एक बड़ी जनसंख्या हिंदी में संवाद करती है, तो यह आवश्यक हो जाता है कि विज्ञान और तकनीक से संबंधित ज्ञान भी इसी भाषा में उपलब्ध हो। हिंदी को विज्ञान की समृद्ध भाषा बनाना आवश्यक है, क्योंकि यह समाज के समग्र विकास के लिए अनिवार्य है। इससे न केवल भाषा का विकास होगा, बल्कि आम जनता को विज्ञान के क्षेत्र में आगे बढ़ने का मौका मिलेगा। प्रौद्योगिकी हिंदी को विज्ञान और साथ ही तकनीक की उन्नत भाषा बनाने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है। डिजिटल मीडिया के माध्यम से हिंदी में वैज्ञानिक और तकनीकी सामग्री को व्यापक रूप से प्रसारित किया जा सकता है। अनुवाद साफ्टवेयर और भाषा पहचान तकनीक भी इस दिशा में मददगार साबित हो रहे हैं। इसके अलावा आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के उपयोग से भाषाई बाधाओं को दूर किया जा सकता है और जटिल तकनीकी सामग्री को हिंदी में सुलभ बनाया जा सकता है।

हिंदी विश्व में तीसरी सबसे ज्यादा बोली जाने वाली भाषा है। भारत के अलावा नेपाल, फिजी, मारीशस, गुयाना और त्रिनिदाद आदि देशों में भी इसका प्रयोग होता है, लेकिन भारत की राजभाषा घोषित होने के 75 साल बाद भी हिंदी अभी तक संयुक्त राष्ट्र की आधिकारिक भाषा नहीं बन पाई है। हिंदी को आधिकारिक भाषा का दर्जा दिलाने के लिए भारत को अन्य देशों से सहयोग और समर्थन प्राप्त करना होगा, विशेषकर उन देशों से जहां हिंदी का उपयोग होता है। हाल के वर्षों में भारत सरकार ने हिंदी को संयुक्त राष्ट्र की आधिकारिक भाषा बनाने की दिशा में कई कदम उठाए हैं। प्रधानमंत्री मोदी और विदेश मंत्रालय ने कई बार इस मुद्दे को उठाया और अंतरराष्ट्रीय मंचों पर हिंदी के प्रयोग को बढ़ावा दिया। भविष्य में हिंदी को संयुक्त राष्ट्र की भाषा बनाने के लिए भारत को और भी कूटनीतिक प्रयास करने होंगे। इसके लिए वित्तीय सहयोग के साथ-साथ अंतरराष्ट्रीय समर्थन भी आवश्यक है। यदि भारत अन्य हिंदी भाषी देशों और वैश्विक शक्तियों का समर्थन जुटा पाने में सफल होता है तो यह संभव है कि हिंदी को संयुक्त राष्ट्र की आधिकारिक भाषाओं में स्थान मिल सके।

हिंदी को राजभाषा के रूप में पूरी तरह स्थापित करने में अभी भी कई चुनौतियां हैं, लेकिन यह निश्चित है कि हिंदी अपने सशक्त साहित्य, समृद्ध सांस्कृतिक विरासत और बढ़ते डिजिटल माध्यमों के साथ भविष्य में और अधिक महत्वपूर्ण भूमिका निभाने के लिए तैयार है।

(लेखक महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय, वर्धा में हिंदी अधिकारी हैं)