रमेश कुमार दुबे : कुछ साल पहले तक खेती-किसानी की जरूरतों के लिए हम उपग्रहों से भेजी गई तस्वीरों पर निर्भर थे, लेकिन अब ड्रोन से यह काम और आसान हो गया है। ड्रोन से ली गईं तस्वीरें उपग्रहों से ली गई तस्वीरों की तुलना में ज्यादा सटीक भी होती हैं। इससे भी बड़ी बात यह है कि हम ड्रोन के जरिये छोटी-छोटी जगहों की तस्वीरें आसानी से ले सकते हैं।

कृषि के लिए बेहद उपयोगी सिद्ध हो रहे ड्रोन जीपीएस आधारित नेविगेशन सिस्टम और सेंसर से लैस होते हैं। यह खेती में किसानों की मेहनत और समय दोनों की बचत करता है। फिलहाल कृषि ड्रोन का इस्तेमाल खेतों में उर्वरक, रसायनों और कीटनाशकों के छिड़काव में अधिक हो रहा है। एक कृषि ड्रोन मात्र 20 मिनट में करीब एक एकड़ खेत में कीटनाशकों का छिड़काव कर देता है। हाथ से कीटनाशकों के छिड़काव से न केवल अधिक मात्रा में छिड़काव हो जाता है, बल्कि उसकी मात्रा से पर्यावरण को भी नुकसान पहुंचता है।

ड्रोन की ऐसी उपयोगिता को देखते हुए सरकार ने कुछ सीमाओं के साथ खेती में ड्रोन के उपयोग की अनुमति दे दी है। इसके लिए सरकार ने स्टैंडर्ड आपरेटिंग सिस्टम यानी एसओपी बनाया है। मोदी सरकार के डिजिटल इंडिया अभियान का एक उद्देश्य ग्रामीण क्षेत्रों में डिजिटल आधारभूत ढांचा तैयार करना है ताकि फसल मानचित्रण, मृदा परीक्षण और सिंचाई आदि में सूचना प्रौद्योगिकी का अधिकतम इस्तेमाल किया जा सके। इस साल के बजट में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने कहा भी था कि समावेशी विकास के तहत सरकार फसल मूल्यांकन, भूमि अभिलेखों के डिजिटलीकरण और कीटनाशकों के छिड़काव के लिए किसान ड्रोन के उपयोग को बढ़ावा देगी।

मोदी सरकार कृषि बाजार के उदारीकरण के साथ ही खेती-किसानी में आधुनिक तकनीक को बढ़ावा देने की नीति पर काम कर रही है। कृषि ड्रोन से बीज रोपण से लेकर पानी और कीट प्रबंधन की सटीक जानकारी मिलेगी। कृषि ड्रोन सेंसर तकनीक और इंटेलीजेंस सिस्टम द्वारा बड़े क्षेत्र में कम समय में बीज रोपण कर देता है। रोपण प्रणाली वाले ड्रोन सीधे मिट्टी में बीज लगा सकते हैं। चूंकि ड्रोन फसलों में सही मात्रा में कीटनाशकों एवं उर्वरकों का छिड़काव करता है तो इससे भूमि की शुद्धता बनी रहती है और रसायनों के अधिक प्रयोग की आशंका समाप्त होती है।

ड्रोन में लगे सेंसर उन क्षेत्रों की पहचान कर सकते हैं जो बहुत शुष्क होते हैं या जिनमें जलभराव की समस्या होती है। ड्रोन द्वारा सिंचाई की सही योजना बनाई जा सकती है। इसके साथ-साथ ड्रोन के द्वारा फसल की गुणवत्ता निगरानी, मृदा स्वास्थ्य की सटीक जानकारी सरलता से प्राप्त हो जाती है। कृषि ड्रोन दुर्गम एवं पहाड़ी क्षेत्रों में और अधिक क्षेत्रफल वाली भूमि की प्रभावी ढंग से देखरेख कर सकता है।

खेती की बढ़ती लागत और प्राकृतिक आपदाओं में बढ़ोतरी के कारण किसानों को नुकसान उठाना पड़ रहा है। ड्रोन फसलों को लेकर सही आकलन करता है। फसल नुकसान के दावों को जल्द निपटाने के लिए सरकार ने ड्रोन से सर्वे कराने का निर्णय लिया है। पीएम फसल बीमा योजना को प्रभावी तरीके से लागू करने के लिए प्रधानमंत्री मोदी ने तकनीक के अधिक से अधिक इस्तेमाल करने के निर्देश दिए है। इसी को देखते हुए कृषि सहित 12 मंत्रालयों का ड्रोन के अनिवार्य उपयोग के लिए चयन किया गया है।

यूरिया के अंधाधुंध इस्तेमाल से न केवल जमीन बंजर हो रही है, बल्कि लोगों के स्वास्थ्य पर भी विपरीत असर पड़ रहा है। इसी को देखते हुए इफ्को ने नैनो यूरिया लांच किया है। इसमें 50 किलो के एक कट्टे जितनी यूरिया 500 मिलीलीटर की बोतल में आ जाएगी। नैनो यूरिया के छिड़काव के लिए ड्रोन उपयोगी है। बोतलबंद तरल नैनो यूरिया एवं डीएपी के खेतों में छिड़काव के लिए सहकारी संस्था इफ्को ने 2,500 ड्रोन खरीदने का आर्डर दिया है। इन ड्रोन को चलाने के लिए 5,000 युवाओं को प्रशिक्षित किया जाएगा।

ड्रोन की ऊंची कीमत और किसानों की आर्थिक स्थिति को देखते हुए सरकार किसानों को ड्रोन खरीदने पर सब्सिडी दे रही है। यह सब्सिडी अनुसूचित जाति, जनजाति, छोटे एवं सीमांत किसानों, महिलाओं, पूर्वोत्तर के किसानों के लिए ड्रोन के खरीद मूल्य का 50 प्रतिशत या अधिकतम पांच लाख रुपये है। इसके अतिरिक्त ड्रोन खरीदने पर अन्य किसानों को 40 प्रतिशत या अधिकतम चार लाख और किसान उत्पादक संगठनों को 75 प्रतिशत तक अनुदान दिया जाएगा। भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के संस्थानों, कृषि विज्ञान केंद्रों, राज्य कृषि विश्वविद्यालयों को ड्रोन खरीद हेतु 100 प्रतिशत तक सब्सिडी दी जा रही है।

केंद्र सरकार ने कृषि मशीनीकरण पर उप-मिशन योजना शुरू की है। इसके तहत कृषि मंत्रालय ने कृषि ड्रोन की खरीद, किराए पर लेने और प्रदर्शन में सहायता करके इस तकनीक को किफायती बनाने के लिए दिशानिर्देश जारी किए हैं। सरकार ड्रोन की पहुंच बढ़ाने के लिए उड़ान संबंधी नियमों को भी आसान बना रही है। परिणामस्वरूप देश में ड्रोन का इस्तेमाल तेजी से बढ़ रहा है।

फिलहाल ड्रोन उद्योग 5,000 करोड़ रुपये का है। वर्ष 2026 तक इसके 15,000 करोड़ रुपये तक पहुंचने का अनुमान है। सरकार ने ड्रोन एवं ड्रोन के कलपुर्जों के लिए उत्पादन से जुड़ी प्रोत्साहन योजना यानी पीएलआइ योजना भी शुरू की है। शिक्षा, स्वास्थ्य, कृषि, रक्षा और अन्य क्षेत्रों में ड्रोन की उपयोगिता लगातार बढ़ रही है। इसी को देखते हुए मोदी सरकार भारत को ड्रोन विनिर्माण की धुरी बनाने में जुटी है। ड्रोन निर्माण के क्षेत्र में भारत के बढ़ते कदम से दुनिया को अवगत कराने के लिए आगामी 26-27 जुलाई को दिल्ली में इंटरनेशनल ड्रोन सम्मेलन का आयोजन किया जा रहा है।

(लेखक लोक नीति विश्लेषक हैं)