जागरण संपादकीय: खतरनाक रूप लेता रूस-यूक्रेन का युद्ध
रूसी राष्ट्रपति पुतिन पहले दिन से चेता रहे हैं कि यदि अमेरिका और यूरोप यूक्रेन के बचाव में आगे आते हैं तो वह इसे युद्ध में उनका सीधा दखल मानेंगे। अब रूस ने यूक्रेन के साथ अमेरिका और यूरोपीय देशों को धमकाने के लिए परमाणु हथियार इस्तेमाल करने के नियमों में बदलाव करने के साथ यह भी कहा है कि वह पोलैंड स्थित अमेरिकी एयरबेस को निशाना बनाएगा।
अमेरिका में राष्ट्रपति चुनाव में डोनाल्ड ट्रंप की जीत के बाद जब यह माना जा रहा था कि रूस और यूक्रेन के बीच जारी युद्ध समाप्त हो सकता है, तब वह खतरनाक मोड़ लेता दिख रहा है। इसका कारण यह है कि अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन ने यूक्रेन को ऐसे हथियारों से लैस करने का फैसला किया, जिससे वह रूस का मुकाबला करने में सक्षम हो सके। इस क्रम में उन्होंने यूक्रेन को रूस के खिलाफ लंबी दूरी तक मार करने वाली मिसाइलों के इस्तेमाल की अनुमति भी दे दी। यह अनुमति मिलते ही यूक्रेन ने रूस के खिलाफ ऐसी मिसाइल का इस्तेमाल करने में देर नहीं की। उसने रूस के खिलाफ ब्रिटेन से भी मिलीं मिसाइलों का भी इस्तेमाल शुरू कर दिया है। इसके जवाब में रूस ने भी अपने तेवर दिखाते हुए पहली बार अंतर महाद्वीपीय बैलिस्टिक मिसाइल से यूक्रेन को निशाना बनाया। यह मिसाइल परमाणु हथियार ले जाने में भी सक्षम है।
रूसी राष्ट्रपति पुतिन पहले दिन से चेता रहे हैं कि यदि अमेरिका और यूरोप यूक्रेन के बचाव में आगे आते हैं तो वह इसे युद्ध में उनका सीधा दखल मानेंगे। अब रूस ने यूक्रेन के साथ अमेरिका और यूरोपीय देशों को धमकाने के लिए परमाणु हथियार इस्तेमाल करने के नियमों में बदलाव करने के साथ यह भी कहा है कि वह पोलैंड स्थित अमेरिकी एयरबेस को निशाना बनाएगा। पता नहीं, आगे क्या होगा, लेकिन यह ठीक नहीं कि जिस युद्ध के समाप्त होने की आशा जगी थी, उसके और भड़कने की आशंका पैदा हो गई है। इसके लिए अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन को जिम्मेदार ठहराते हुए कहा जा रहा है कि वह अपना पद छोड़ने के पहले हालात बिगाड़ने के साथ विश्व को तीसरे युद्ध की ओर धकेल रहे हैं।
जो बाइडन के फैसले की आलोचना अमेरिका में भी हो रही है, लेकिन यह भी ध्यान रहे कि उन्होंने यूक्रेन को घातक हथियार देने का निर्णय उन खबरों के सामने आने के बाद किया कि रूस की मदद के लिए उत्तरी कोरिया की सेनाएं मोर्चे पर आ डटी हैं। अमेरिकी राष्ट्रपति अपने फैसले को उचित ठहरा सकते हैं, लेकिन इससे भी इन्कार नहीं कि उन्होंने रूस और यूक्रेन के बीच छिड़े 33 माह पुराने युद्ध को समाप्त करने की कोई ईमानदार कोशिश नहीं की। अमेरिका की तरह यूरोपीय देशों ने भी उन कारणों का निवारण करने की जहमत नहीं उठाई, जिनके चलते रूस की सुरक्षा चिंताएं बढ़ गई थीं और जिन्हें दूर करने के बहाने उसने यूक्रेन को निशाना बनाया। वैसे यह समझना भी कठिन है कि रूस यूक्रेन की ज्यादा से ज्यादा जमीन पर कब्जा कर क्या हासिल कर लेगा? अब जब रूस-यूक्रेन युद्ध भड़कने की आशंका बढ़ गई है और डोनाल्ड ट्रंप के राष्ट्रपति पद पर आसीन होने में देर है, तब भारतीय प्रधानमंत्री को बीच-बचाव के लिए आगे आना चाहिए। वह इसमें सक्षम हो सकते हैं, क्योंकि अंततः कोई न कोई समझौता होगा ही।