तरुण गुप्त। कहावतें समय, काल और परिस्थितियों की हर कसौटी पर अपनी सार्थकता सिद्ध करती आई हैं। एक पुरानी कहावत है कि अपने सभी फल एक ही टोकरी में न रखें। यह कहावत जीवन की अंतर्निहित सीख के साथ ही वित्तीय अनुशासन एवं नियोजन के मोर्चे पर भी उतनी ही सटीक बैठती है। एक सदाबहार वित्तीय सलाह यह दी जाती है कि कभी भी केवल एक राजस्व स्रोत पर ही निर्भर नहीं रहना चाहिए। कोई व्यक्ति भले ही किसी पेशे में हो, उसके लिए आय के विभिन्न स्रोत विकसित करना सदैव लाभदायक होता है।

उदारवाद से पूर्व के भारतीय मध्यवर्ग की बात करें तो उसकी बचत मुख्य रूप से बैंक डिपाजिट, बीमा, रियल एस्टेट और सोने में निवेश से होती रही। ब्याज और किराये से होने वाली कमाई ने एक सामान्य परिवार के राजस्व की धारा को विविधता प्रदान की। समय के साथ निवेश के अपेक्षाकृत जटिल, किंतु परिष्कृत माध्यमों का भी उभार हुआ। सीधे इक्विटी या म्यूचुअल फंडों के माध्यम से पूंजी बाजार में दांव लगा रहे लोगों ने उल्लेखनीय लाभ का मंत्र तलाशा। यदि शेयर निवेशकों की पहली पीढ़ी के लिए शेयरों पर डिविडेंड वस्तुतः कर मुक्त आय का एक महत्वपूर्ण स्रोत बना तो अनुवर्ती पीढ़ियों को मूल पूंजी में अत्यधिक वृद्धि के पहलू ने लुभाया। शेयर बाजार में निवेश ने अन्य निवेश माध्यमों में बढ़ोतरी को पीछे छोड़ दिया। उदारवाद के उपरांत भारत निवेश सलाहकारों के एक नए वर्ग के उभार का साक्षी बना। ये सलाहकार अपने ग्राहकों को असंख्य निवेश विकल्पों के चयन में सहायक बनने लगे।

कोरोना महामारी के बाद पूंजी बाजार निवेशकों की संख्या में व्यापक प्रसार हुआ है। इक्विटी निवेश भले ही एक पुरानी अवधारणा हो, लेकिन बीते पांच वर्षों के दौरान इसमें अभूतपूर्व तेजी दिखी है। निवेशकों की संख्या से लेकर निवेश की मात्रा कई गुना बढ़ी है। इस तेजी का अनुमान इसी तथ्य से लगाया जा सकता है कि बीते चार वर्षों के दौरान डीमैट खातों की संख्या चार करोड़ से बढ़कर 17 करोड़ हो गई है। इक्विटी फंडों में एसआइपी (सिस्टेमिक इन्वेस्टमेंट प्लान) निवेश भी रिकार्ड स्तर पर पहुंच गया है।

सितंबर के अंत तक भारतीय शेयर बाजार अकल्पनीय तेजी पर सवार रहा और ऐतिहासिक ऊंचाई पर पहुंचा, किंतु पिछले दो महीने से बाजार में 10 प्रतिशत से अधिक की गिरावट आई है। चूंकि निवेशकों की एक बड़ी संख्या ने महामारी के बाद पहली बार बाजार में कदम रखा तो व्यापक संपत्ति अवमूल्यन का यह उनका पहला अनुभव है, जहां उनके निवेश में इतना ह्रास हुआ हो। ऐसे में, कुछ घबराहट और यहां तक कि कोहराम की स्थिति स्वाभाविक ही है। स्थायी एवं स्थिर निवेश परिदृश्य के लिए इस प्रकार का माहौल प्रतिकूल होता है। इस कोलाहल को शांत करने के लिए कुछ आधारभूत पहलुओं पर दृष्टि डालना उपयोगी हो सकता है।

विगत वर्षों में ऐसा क्या कारण रहा, जिसके चलते पूंजी बाजार में इतना भारी निवेश हुआ? पूंजीगत लाभ के बहुत ही स्वाभाविक कारण से इतर एक महत्वपूर्ण, किंतु कम चर्चित कारण भारत में कराधान नीति से जुड़ा है। फिकस्ड इनकम (नियत आय) से जुड़ी सभी योजनाओं पर वर्तमान में करों की सर्वाधिक दरें लागू होती हैं। चाहे बैंक डिपाजिट हो, डेब्ट म्यूचुअल फंड या मार्केट लिंक्ड डीबेंचर, सभी पर टैक्स आपकी आय के अनुसार लगाया जाता है, जो अधिकतम 40 प्रतिशत से अधिक तक हो सकता है। कुछ समय पहले एक भिन्न कराधान नीति अस्तित्व में थी, जहां इनमें से कुछ पर इंडेक्सेशन के साथ लांग टर्म कैपिटल गेन टैक्स लगाया जाता था। उससे टैक्स का बोझ कुछ घट जाता था। वर्तमान कर प्रणाली में फिक्स्ड इनकम निवेशों पर टैक्स देने के बाद आय काफी कम हो गई है, जो महंगाई की दर के अनुरूप भी नहीं रह जाती है। आवश्यक नहीं कि इसे टैक्स नीति की आलोचना के रूप में ही लिया जाए। इस संदर्भ में यह तर्क दिया जाता है कि एक प्रकृति के सभी निवेशों पर समान टैक्स नीति होनी चाहिए। निवेशक अपना निर्णय संबंधित योजना की गुणवत्ता के आधार पर लें, न कि उससे मिलने वाले अनुचित एवं भिन्नतापूर्ण टैक्स लाभ को ध्यान में रखकर। हालांकि इसकी स्वाभाविक प्रतिगामी परिणति यही हुई कि निवेशक अपर्याप्त जानकारियों के बावजूद इक्विटी की ओर जाने पर विवश हैं।

निवेशकों को समझना होगा कि निवेश परिसंपत्तियों में प्रायः चक्रीय रुझान देखने को मिलता है। इसमें शिखर से लेकर तलहटी की स्थिति अपरिहार्य है। बाजार को प्रभावित करने वाले बेशुमार कारक हैं और वास्तव में उन पर किसी का पूर्ण नियंत्रण नहीं हो सकता। उदाहरणस्वरूप राष्ट्रपति ट्रंप के कार्यकाल के दौरान अमेरिका में कारपोरेट टैक्स में कमी के आसार हैं, जिससे कंपनियों के लाभ और विवेकाधीन खर्चों में बढ़ोतरी होगी। इसका लाभ अमेरिका में सक्रिय भारतीय कंपनियों को भी मिलना चाहिए। दूसरी ओर, टैरिफ दरें बढ़ने का भी डर है। ऐसी स्थिति में अमेरिका को किए जाने वाले निर्यात पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा और उससे हम भी अछूते नहीं रह पाएंगे।

संस्थागत निवेशकों का उभरते बाजारों से सुरक्षित ठिकानों की ओर पूंजी पलायन, मुद्रा अवमूल्यन, सैन्य संघर्ष एवं टकराव और राजनीतिक अस्थिरता भी बाजार में गिरावट का कारण बनते हैं। कई और भी गूढ़ पहलू होते हैं। इन पहलुओं की सही समझ और संयत आचरण ही आपको बाजार के झंझावातों से बचाएगा।

शेयर निवेश कोई अटकलबाजी का खेल नहीं है। निवेश के इच्छुक व्यक्ति को संबंधित क्षेत्र या कंपनी के व्यवसाय, क्षमताओं और भविष्य की संभावनाओं को समझने का प्रयास करना चाहिए। दीर्घ अवधि में शेयर वैल्यू को प्रति शेयर आय से अलग या असंगत नहीं किया जा सकता। अतार्किक प्राइस अर्निंग्स मल्टीपल टिकाऊ नहीं है। वस्तुतः, सामान्य स्वीकृत सिद्धांत यही कहता है कि इक्विटी निवेशक को दीर्घकालिक दृष्टिकोण के साथ कम से कम तीन से पांच वर्षों के लिए निवेश करना चाहिए। ऐसा नहीं कि अन्य लुभावने विकल्प उपलब्ध नहीं, किंतु तरलता एवं वृद्धि का उत्कृष्ट समन्वय इक्विटी निवेश को एक अलग ही आकर्षण प्रदान करता है। उचित होगा यदि निवेशक वर्ग के लिए जागरूकता कार्यक्रम और ढांचागत शिक्षा की व्यवस्था संभव हो पाए।

क्या बाजार में और गिरावट आएगी? बाजारों की अनिश्चितता ही उनका सर्वाधिक सुनिश्चित पहलू होती है। स्मरण रखिए कि ऊंचे प्रतिफल के साथ अमूमन कुछ जोखिम भी जुड़ा होता है। जोखिम को समाप्त करना तो असंभव है, लेकिन उसे कम करने का प्रयास अवश्य किया जा सकता है। सोचा-समझा जोखिम और सही जानकारियों के आधार पर लिए गए निर्णय ही आगे बढ़ने की इकलौती राह है।