जागरण संपादकीय : अहोम साम्राज्य के मैदाम को यूनेस्को की सूची में जगह मिलना गौरव का क्षण
विश्व का सबसे बड़ा विश्वविद्यालय तक्षशिला था। अर्थशास्त्र के लेखक कौटिल्य तक्षशिला के आचार्य थे। दुनिया के पहले व्याकरणकर्ता पाणिनि भी यहीं के थे। पतंजलि और चरक यहीं के थे। अंकशास्त्र यूरोप के देश नहीं खोज पाए तो इसका मूल कारण है यूरोप में ज्ञान विज्ञान और दर्शन की सामूहिक चेतना का अभाव। साहित्य संगीत और सभी कलाएं भारतीय संस्कृति के मुख्य अंग हैं।
हृदयनारायण दीक्षित। यूनेस्को की विश्व धरोहर समिति ने असम के अहोम राजवंश के ‘मैदाम’ को विश्व धरोहर सूची में सम्मिलित किया है। देश प्रसन्न है। इस संदर्भ में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का कहना यथार्थ ही है कि विरासत सिर्फ इतिहास नहीं, बल्कि मानवता की साझा चेतना है। मैदाम असम के चराईदेव जिले में अहोम साम्राज्य के शाही परिवारों की कब्रगाह है। इनका निर्माण मिट्टी, ईंट और पत्थर से किया गया। यह एक टीलानुमा आकृति है।
18वीं शताब्दी के बाद अहोम राजाओं ने हिंदू दाह संस्कार पद्धति को अपना लिया। यह भारतीय ज्ञान परंपरा के लिए गौरव की बात है। अहोम साम्राज्य की स्थापना 1228 में ब्रह्मपुत्र घाटी में हुई थी। यह साम्राज्य 600 वर्ष तक चला। अहोमों की सेना सशक्त थी। उन्होंने ब्रह्मपुत्र में नौका सेतु बनाने की तकनीक भी सीखी थी।
लसित बोरफुकन के नेतृत्व में अहोम ने 1671 में सरायघाट के युद्ध में औरंगजेब की मुगल सेना को हराया था। बोरफुकन के पराक्रम की स्मृति में राष्ट्रीय रक्षा अकादमी के सर्वश्रेष्ठ कैडेट को बोरफुकन स्वर्ण पदक 1999 से दिया जाता है। प्रधानमंत्री मोदी ने बोरफुकन की विशाल प्रतिमा का लोकार्पण इसी वर्ष किया था।
भारत के कोने-कोने में राष्ट्र जीवन के भिन्न-भिन्न क्षेत्रों में सक्रिय लोगों की बहुतायत है। नरसिंह रेड्डी ब्रिटिश सत्ता से संघर्ष करने वाले आंध्र प्रदेश के लोकप्रिय नायक थे। उन्होंने सैकड़ों अंग्रेज सैनिकों को मारा था। इनका नाम राष्ट्रीय चर्चा में नहीं आया। बिरसा मुंडा भी इसी श्रेणी में आते हैं। देश में सांस्कृतिक महत्व के स्थलों की बहुतायत है।
राष्ट्रीय महत्व के ऐसे स्थलों को सूचीबद्ध करना और खोदाई आदि साधनों द्वारा संरक्षित करना एएसआइ की जिम्मेदारी है। एएसआइ ने काफी कुछ किया है, लेकिन अभी भी बहुत कुछ किया जाना शेष है। स्मारकों का संरक्षण राष्ट्रीय कर्तव्य है। कुछ महत्वपूर्ण स्मारक लापता भी बताए जा रहे हैं। वर्ष 2018 में संस्कृति मंत्रालय से जुड़ी सिंधु सभ्यता की अध्ययन समिति ने हरियाणा के भिराना एवं राखीगढ़ी की खोदाई के अध्ययन को महत्व दिया था।
इस पुरातात्विक क्षेत्र में कार्बन डेटिंग के अनुसार ईसा पूर्व 7000 से 6000 वर्ष की सभ्यता का अनुमान है। समिति के प्रमुख ने सिफारिश की थी कि कार्बन डेटिंग अध्ययन के परिणामों को ऋग्वेद, रामायण एवं महाभारत के समय-संदर्भ से जोड़कर समझा जाना चाहिए। भारत की सांस्कृतिक विभिन्नता पर सवाल उठाने वाले दुराग्रही हैं। वे सुमेरी सभ्यता को हड़प्पा से भी प्राचीन बताते हैं। वे हड़प्पा को सुमेरी सभ्यता की छाया मानते हैं।
वे जल भरी सरस्वती और सूखी सरस्वती के बीच समय विभाजन नहीं देखते। ऋग्वेद में सरस्वती जल भरी हैं। यह तथ्य हड़प्पा से पुराना है। बेशक भारत में सुमेर और मिस्र से प्राचीन सभ्यताएं हैं। इन सभ्यताओं के संबंधों का अध्ययन ऋग्वेद के तथ्यों के आधार पर करना चाहिए।
राष्ट्र सांस्कृतिक संपदा में अग्रणी है। संप्रति यूनेस्को की विश्व धरोहर सूची में 168 देशों के 1199 स्थल हैं। अफसोस कि इसमें भारत के 43 स्थल ही गणना में हैं। इटली भूक्षेत्र और जनसंख्या में भारत से बहुत छोटा है, लेकिन विश्व धरोहरों की सूची में इटली में 59 स्थल हैं। जर्मनी भी भारत से छोटा है, लेकिन उनकी धरोहरों की सूची लंबी (52) है। प्रसन्नता की बात है कि कुंभ को यूनेस्को ने विश्व विरासत सूची में सम्मिलित किया था।
ऋग्वेद पहले से ही यूनेस्को की सूची में है। इसी तरह यूनेस्को के ‘मेमोरी आफ एशिया पैसिफिक रीजनल रजिस्टर’ में रामचरितमानस, पंचतंत्र और सहृदयलोक-लोकन भी सम्मिलित हैं। तीनों महत्वपूर्ण ग्रंथों के समावेशन से भारत को प्रसन्नता हुई है। रामचरितमानस के रचनाकार तुलसीदास, पंचतंत्र के रचनाकार विष्णु शर्मा एवं सहृदयलोक-लोकन के आनंदवर्धन स्मरणीय हैं। इन्होंने पूरे विश्व को प्रभावित किया है। संस्कृति और दर्शन भौगोलिक सीमा में नहीं बांधे जा सकते।
भारत में विज्ञान, दर्शन और कला के क्षेत्र में बड़ा काम हुआ है। तमाम विदेशी विद्वान भारतीय संस्कृति के प्रशंसक रहे हैं और हैं। कुछेक विद्वान भारतीय विद्वानों की मेधा के प्रति ईर्ष्यालु भी जान पड़ते हैं। गणित भारतीय खोज है। पंडित नेहरू ने ‘डिस्कवरी आफ इंडिया’ में एक गणितज्ञ डान जिंग की पुस्तक ‘नंबर’ का उद्धरण दिया है। जिंग ने लिखा था कि, ‘अनजाने में हिंदुओं की स्थान मूल्य के सिद्धांत की खोज लोकव्यापी महत्व की है।
आश्चर्य है कि यूनानी गणितज्ञों ने इसकी खोज क्यों नहीं की।’ जिंग यूनानी गणितज्ञों द्वारा अंकों की खोज न कर पाने से आहत जान पड़ते हैं। ‘मैथमेटिक्स फार दि मिलियन’ में दाग वेन ने सटीक उत्तर दिया है, ‘हिंदुओं ने ही इस दिशा में कदम क्यों बढ़ाया? इस प्रश्न का उत्तर हम हल नहीं कर सकते अगर हम बौद्धिक विकास को कुछ प्रतिभाशाली लोगों के प्रयास का ही परिणाम मानेंगे।’ कुछ विद्वान भारतीय ज्ञान, विज्ञान, दर्शन और संस्कृति के लिए भारतीय धरोहरों की ओर नहीं देखते। स्मारक सभ्यता और संस्कृति के संवाहक हैं और राष्ट्र की धरोहर हैं।
विश्व का सबसे बड़ा विश्वविद्यालय तक्षशिला था। अर्थशास्त्र के लेखक कौटिल्य तक्षशिला के आचार्य थे। दुनिया के पहले व्याकरणकर्ता पाणिनि भी यहीं के थे। पतंजलि और चरक यहीं के थे। अंकशास्त्र यूरोप के देश नहीं खोज पाए तो इसका मूल कारण है यूरोप में ज्ञान, विज्ञान और दर्शन की सामूहिक चेतना का अभाव। साहित्य, संगीत और सभी कलाएं भारतीय संस्कृति के मुख्य अंग हैं।
यहां गांधार, मथुरा एवं सारनाथ तीन प्रमुख शैलियां रही हैं। बुद्ध की पहली मानवीय कृतियां गांधार कला की देन हैं। माना जाता है कि इस सृजन में यूनानी कला और भारतीय दर्शन का मेल है। राष्ट्र जीवन के सभी कर्तव्यों एवं क्षेत्रों में भारत अग्रणी रहा है। मथुरा, काशी, अयोध्या, केदारनाथ, बदरीनाथ, सारनाथ, मदुरै, तिरुपति, गुरुवायुर, कन्याकुमारी, मैसुरु, कांचीपुरम और रामेश्वरम आदि अंतरराष्ट्रीय आकर्षण हैं। ये सभी केंद्र अंतरराष्ट्रीय धरोहर घोषित किए जाने योग्य हैं। भारत स्वयं में वैश्विक संस्कृति की धरोहर है।
(लेखक उत्तर प्रदेश विधानसभा के पूर्व अध्यक्ष हैं)