ईवीएम को भी मिला जीत का स्वाद, हालिया चुनावों में नहीं करना पड़ा आरोप-प्रत्यारोप का सामना
एक्जिट पोल वाले भी ईवीएम के परिणामों से खुश हैं। वैसे उन्होंने अपने सर्वे को ही श्रेष्ठ बताया और ब्रेकिंग न्यूज में यही धमाका करते रहे कि हमारे चुनावी रुझानों ने ईवीएम की विश्वनीयता पर भी मोहर लगा दी।
भूपेंद्र भारतीय: आखिर ईवीएम यानी इलेक्ट्रानिक वोटिंग मशीन की प्रचंड जीत का सपना सच हो ही गया। उसने भी सबके साथ सबका विश्वास जीत लिया और सबका विकास भी कर दिया। इस बेचारी ईवीएम को क्या नहीं कहा गया? उसे क्या-क्या नहीं सहना पड़ा? विगत दो दशकों से उसे मुन्नी से भी ज्यादा बदनाम किया जा रहा था। जैसे चुनाव आते, उसकी नुक्तीचीनी शुरू हो जाती और खत्म होते ही वह और तेज हो जाती। जिस तरह नई-नई बहू के हर काम में मीनमेख निकाला जाता है उसी तरह विगत एक दशक से ईवीएम भी प्रताड़ित हो रही थी। आखिर उसके सास-ससुर यानी लोकतंत्र की मेहरबानी उस पर भी हो ही गई और उसे जनतंत्र में जीत का स्वाद चखने का अवसर मिल गया। लंबी बदनामी के बाद ईवीएम को इस बार किसी तरह के आरोप-प्रत्यारोप का सामना नहीं करना पड़ा।
इस बार गुजरात और हिमाचल प्रदेश विधानसभा तथा दिल्ली नगर निगम चुनावों के परिणामों से लोकतंत्र के तीनों स्तंभ भी चैन की सांस ले रहे हैं। लोकतंत्र भी इस बार बदनाम होने से बच गया। असहिष्णुता एवं ध्रुवीकरण जैसे राग दरबारी राग भी किसी टीवी बहस में सुनने को नहीं मिले। हर राजनीतिक दल अपनी-अपनी जीत में मगन हैं। मतदाता भी तन कर कह रहा है कि देखा कैसे सबको खुश कर दिया। भले बाद में ये तीनों मिलकर उस पर हंसें।
लोकतांत्रिक व्यवस्था में बहुत कम बार ऐसा हुआ कि मतदाताओं ने भी चमत्कार किया हो और वह भी लोकतांत्रिक पद्धति द्वारा। कुछ भी कहो इन चुनावों में ईवीएम की प्रचंड जीत तो हुई है। कुछ राजनीतिक दलों द्वारा उसकी विश्वनीयता लंबे समय से संदिग्ध मानी जा रही थी। देश में जब से ईवीएम से चुनाव हो रहे हैं, हारने वाला अपनी हार का ठीकरा उस पर ही फोड़ता आ रहा है। पहली बार किसी भी पार्टी नेता या प्रवक्ता के मुंह से ईवीएम के चरित्र पर एक भी गलत शब्द नहीं निकला। ईवीएम लंबी उम्र के बाद अब चैन की सांस लेकर अपने आप पर गर्व कर सकती है। लगता है वह जवानी की दहलीज पर पहुंच गई है। ऐसा ही चलता रहा तो हो सकता है कि आगे चलकर साहित्यिक एवं सहकारिता संगठनों के चुनाव भी ईवीएम से हों। पुरस्कारों का चयन भी ईवीएम के माध्यम से होना शुरू हो जाए और पुरस्कारों की रेवड़ी बंटनी बंद हो।
अब ईवीएम हमारे लोकतंत्र में सुरक्षित है। आगे किसी भी तरह के चुनाव करवाने के लिए वह प्रथम पसंद मानी जाएगी। शहरों के महिला क्लबों के चुनाव के लिए भी अब ईवीएम पर भरोसा किया जा सकता है। कोई बड़ी बात नहीं कि आगे चलकर वर-वधु के जोड़े बनाने का भार भी ईवीएम के कंधों पर आ जाए। ईवीएम अब सेटिंग का विषय भी नहीं रहेगी। उसे कोई शक की नजर से नहीं देखेगा। हर मतदाता पूरे आत्मविश्वास और बगैर किसी लघु-दीर्घ शंका के ईवीएम का बटन दबाने घर-घर से निकलेगा। सोचिए जब लोकतंत्र की समृद्धि के लिए घर-घर से ज्यादा से ज्यादा मतदाता निकलेंगे तब ईवीएम के लिए वह कितना बड़ा गौरवमयी समय होगा।
अब तो लोकतांत्रिक व्यवस्था की स्वच्छता सूची में ईवीएम का नाम स्वर्ण अक्षरों से लिखा जा सकता है। एक्जिट पोल वाले भी ईवीएम के परिणामों से खुश हैं। वैसे उन्होंने अपने सर्वे को ही श्रेष्ठ बताया और ब्रेकिंग न्यूज में यही धमाका करते रहे कि 'हमारे चुनावी रुझानों ने ईवीएम की विश्वनीयता पर भी मोहर लगा दी।' जैसे किसी नेता ने ईवीएम पर शक नहीं किया वैसे ही किसी धाकड़ एंकर ने ईवीएम के परिणामों पर कोई पलटवार नहीं किया।
सभी राजनीतिक दल भी खुशी-खुशी अपनी ही पार्टी द्वारा आर्डर किए लड्डू से अपना मुंह मीठा कर रहे हैं। ईवीएम की इस प्रचंड जीत पर लोकतंत्र में खुशी की लहर चल रही है। हो सकता है कि अगले गणतंत्र दिवस की परेड में कर्तव्य पथ पर ईवीएम की झांकी से सर्वदलीय खुशी देखी जा सके। हो सकता है कि भारत का सबसे वयोवृद्ध राजनीतिक दल अपने अगले अध्यक्ष के चुनाव के लिए ईवीएम से ही मतदान करवाए। बहरहाल देखना यह है कि ईवीएम को मिली यह प्रचंड बहुमत वाली जीत कितने दिनों तक सुरक्षित रहती है और कब तक राजनीतिक लांछन से बच पाती है।