पारंपरिक रिश्तों के कमजोर हो जाने से अब संबंधों का दारोमदार मुख्यतया मित्रों पर है, इसलिए उनका सुविचारित चयन आवश्यक है। खून के रिश्तों से अधिक पुख्ता वे हैं, जो वक्त पर हाथ थाम लें। संपन्नता के दौर में मित्र मंडराने लगते हैं। खरे मित्र की परख विपत्ति या कठिन दौर में होती है। जब आप सारी दुनिया को कुशल-दुरुस्त होने का स्वांग करते हैं, तब वह आपके दर्द को भांप जाता है। उसका आगमन कदापि बोझ नहीं होता, उसका घर कभी सुदूर नहीं होता। मित्रता का अर्थ यह नहीं कि मतभेद नहीं होंगे। विद्वान प्लूटार्क ने कहा था, मुझे वह दोस्त नहीं चाहिए जो मेरी मुंडी हिलने पर अपनी मुंडी हिला दे, ऐसा मेरी परछाई बेहतर कर लेती है। सही मित्र हमारी रग-रग समझता है, उससे अपनी चिंताएं जताई नहीं जातीं। हमारे लिए जो उचित है, उसमें वह सहभागी बनता है। वह झकझोरता है कि तफरीह के लिए नहीं, बीमार मां के पास जाना है, वह बताता है कि शर्ट का बटन टूटा है या जूते का फीता खुला है। सच्चा दोस्त वह नहीं, जो लग्जरी गाड़ी या बेशकीमती फोन खरीदने के लिए उकसाए या कर्ज दे बल्कि इनके लिए मदद देते हाथ पकड़ ले। मित्रता की अथाह शक्ति का आधार ढाई अक्षर का शब्द प्रेम है, जो वह सब करा सकता है, जो किसी पावर के बूते की बात नहीं। इसी शक्ति के दोहन के उद्देश्य से पेशेवर, कारोबारी, सरकारें एक दूसरे का हाथ थामती हैं।
पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति वुडरो विल्सन ने कहा था कि दोस्ती ही एकमात्र सीमेंट है, जो दुनिया को एकजुट रख सकती है। अंदरूनी सरोकार दूसरों से साझा न करने से लोगों को अकेलापन खाए जा रहा है। डिप्रेशन, उद्विग्नता, सिजोफ्रेनिया जैसे मनोरोग तेजी से बढ़ रहे हैं। अमेरिकी पत्रकार रॉबर्ट ब्रॉल्ट कहते हैं, ‘मानसिक रोगियों को मनोचिकित्सक की कम, मित्र की ज्यादा जरूरत रहती है।’ ईमानदार मित्र सबसे नायाब उपहार है। जिन्हें शिकायत है, आजकल खरे मित्र नहीं मिलते, उन्हें भीतर झांकना होगा कि चूक कहां है। आर.डब्ल्यू. इमर्सन की सलाह है, ‘पहले स्वयं किसी के अच्छे मित्र बन जाएं’। आज के मुखौटा प्रिय समाज में मित्रों की पहचान में सूझबूझ अपनानी होगी। एक गुलाब आपकी जिंदगी को महका सकता है, सोच ऐसी हो: विनम्रता सभी से, घनिष्ठता कुछ से और पूर्ण विश्वास दो-तीन पर। तभी जिंदगी खुशनुमां रहेगी।
[ हरीश बड़थ्वाल ]