राजीव सचान : इस पर आश्चर्य नहीं कि सुप्रीम कोर्ट की ओर से राजीव गांधी हत्याकांड के छह दोषियों को रिहा किए जाते ही शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी यानी एसजीपीसी और शिरोमणि अकाली दल ने यह मांग तेज कर दी कि जैसे इन छह दोषियों को रिहा किया गया, वैसे ही पंजाब के नौ दोषियों को भी रिहा किया जाए। इनमें एक पूर्व मुख्यमंत्री बेअंत सिंह का हत्यारा बलवंत सिंह राजोआना भी है। राजोआना की फांसी की सजा इसके बावजूद उम्रकैद में बदली जा चुकी है कि उसने दया याचिका भी दायर करने से मना कर दिया था।

राजोआना के अलावा बेअंत सिंह की हत्या में शामिल जगतार सिंह हवारा, लखविंदर सिंह लक्खा, गुरमीत सिंह, शमशेर सिंह, परमजीत सिंह भ्योरा और जगतार सिंह तारा को भी राजनीतिक कैदी बताकर और उनके नाम के आगे ‘भाई’ जोड़कर उनकी रिहाई की मांग की जा रही है। इसके अतिरिक्त 1990 में दिल्ली एवं कर्नाटक में बम धमाके के दोषी गुरदीप सिंह खैरा की भी रिहाई मांगी जा रही है। एक अन्य दोषी देविंदरपाल सिंह भुल्लर भी है। भुल्लर ने 1995 में आतंकवाद विरोधी फ्रंट के चेयरमैन मनिंदर जीत सिंह बिट्टा को मारने के लिए धमाका किया था। इस धमाके में नौ लोग मारे गए थे। इन सबकी रिहाई की मांग कोई फौरी मांग नहीं है। एसजीपीसी ने इन दोषियों की रिहाई के लिए प्रधानमंत्री को चिट्ठी भी लिखी है।

एसजीपीसी ने चंद दिनों पहले अपनी वर्षिक आम सभा में यह प्रस्ताव पास किया कि आगामी एक दिसंबर से इन कथित राजनीतिक कैदियों की रिहाई के लिए आंदोलन तेज किया जाएगा। इस आंदोलन में शिरोमणि अकाली दल की भी भागीदारी हो सकती है-ठीक वैसे ही, जैसे राजीव गांधी हत्याकांड के दोषियों को रिहा कराने के लिए तमिलनाडु सरकार समेत कई अन्य संगठन सक्रिय थे। ऐसा होने के आसार इसलिए हैं, क्योंकि शिरोमणि अकाली दल ने बेअंत सिंह के हत्यारे बलवंत सिंह राजोआना की बहन कमलदीप कौर को संगरूर के लोकसभा उपचुनाव में अपना प्रत्याशी बनाया था। सुखबीर सिंह बादल ने उन्हें चुनाव मैदान में उतारने का कारण सिख कैदियों की रिहाई की आवाज बुलंद करना बताया था। उनका कहना था कि जैसे पंजाब ने एक मौका केजरीवाल को दिया, वैसे ही एक मौका कमलदीप कौर को भी दिया जाए। संगरूर की जनता ने यह मौका नहीं दिया, लेकिन शिरोमणि अकाली दल की सेहत पर कोई असर नहीं पड़ा।

पता नहीं एसजीपीसी और शिरोमणि अकाली दल की ओर से नौ दोषियों को रिहा करने की जो मांग की जा रही है, उस पर केंद्र सरकार क्या फैसला लेगी, लेकिन इतना तय है कि राजीव गांधी की हत्या के दोषियों के रिहा हो जाने से इस मांग पर बल दिया जाएगा। इसके भी आसार हैं कि आजीवन कारावास की सजा काट रहे नौ दोषियों के स्वजन अथवा उनकी ओर से एसजीपीसी अथवा शिरोमणि अकाली दल सुप्रीम कोर्ट पहुंच जाएं। किसी के लिए कहना कठिन है कि इस स्थिति में सुप्रीम कोर्ट क्या करेगा, लेकिन इसकी अनदेखी नहीं की जा सकती कि वह राजीव गांधी हत्याकांड के छह दोषियों को रिहा करके एक परंपरा स्थापित कर चुका है।

यह एक बेहद खराब परंपरा है, क्योंकि इन छह दोषियों को रिहा करते समय यह कहा गया कि जेल में उन्होंने पढ़ाई की थी और उनका चाल-चलन भी अच्छा था। उन्हें रिहा करने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने अपने विशेषाधिकार का इस्तेमाल किया। उसने इसी विशेषाधिकार का इस्तेमाल इसी साल मई में राजीव गांधी हत्याकांड के एक अन्य दोषी को रिहा करते समय किया था। इस तरह उसने छह माह के अंदर राजीव गांधी हत्याकांड के सात दोषियों को रिहा कर दिया। इनमें चार श्रीलंका के नागरिक हैं। फिलहाल इस प्रश्न का कोई उत्तर नहीं कि यदि श्रीलंका उन्हें अपना नागरिक मानने से इन्कार करता है तो उनका क्या होगा?

सुप्रीम कोर्ट की ओर से जो सात दोषी रिहा किए गए, उनमें चार को फांसी की सजा दी गई थी, लेकिन दया याचिकाओं पर फैसला लेने में देरी का हवाला देकर उसे आजीवन कारावास में तब्दील कर दिया गया था। स्पष्ट है कि इन सात में से चार पर दो बार दया दिखाई गई। एक बार उनकी फांसी की सजा को आजीवन कारावास में बदलकर और दूसरी बार उन्हें जेल से रिहा करके। क्या देश के पूर्व प्रधानमंत्री समेत 15 लोगों की जघन्य तरीके से हत्या करने वालों पर दया दिखाने की जरूरत थी? प्रश्न यह भी है कि यदि कोई हत्यारा जेल में पढ़ाई कर लेता है और वहां अच्छा व्यवहार करता है, तो क्या उसे समय से पहले रिहा कर देना चाहिए? एक प्रश्न यह भी कि क्या अब ऐसे अन्य दोषियों को यह कहते हुए सुप्रीम कोर्ट पहुंचने का अधिकार नहीं मिल गया कि जैसे राजीव गांधी के हत्यारों को रिहा किया गया, वैसे ही उन्हें भी किया जाए, क्योंकि उन्होंने जेल में रहते हुए पढ़ाई कर ली है और उनका चाल-चलन भी अच्छा रहा है?

क्या इससे बड़ी विडंबना और कोई हो सकती है कि पूर्व प्रधानमंत्री की हत्या के दोषियों को रिहा किए जाने के बाद पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री की हत्या के दोषियों की रिहाई के लिए माहौल बनाया जा रहा है। इस माहौल के लिए यदि कोई सबसे अधिक उत्तरदायी है तो वह है सुप्रीम कोर्ट। उसने राजीव गांधी के हत्यारों के प्रति जो अनावश्यक उदारता दिखाई, वह विधि के शासन का उपहास है। अब इसकी भरी-पूरी आशंका है कि राजनीतिक अथवा गैर राजनीतिक संगठनों की ओर से ऐसी नित-नई मांगें रखी जा सकती हैं कि जैसे राजीव गांधी की हत्यारों को रिहा किया गया, वैसे ही अन्य ऐसे दोषियों को रिहा किया जाए।

(लेखक दैनिक जागरण में एसोसिएट एडिटर हैं)