नागरिकता संशोधन कानून पर फैली भ्रांतियों को दूर करने के लिए सरकार उठाए प्रभावी कदम
पर फैली गलतफहमी का विरोधियों ने खूब फायदा उठाया वहीं सरकार द्वारा लोगों की शंकाओं को दूर करने का काम भी देर से शुरू हुआ।
शकील शमसी। पिछले कई महीनों से भारतीय मुसलमानों को राष्ट्रीयता संशोधन कानून, जनगणना और राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर के नाम पर भ्रमित करने का काम बड़े पैमाने पर किया जा रहा था। उसी के नतीजे में अचानक देश भर में मुसलमान उत्तेजित होकर सड़कों पर आ गए हैं। असम में एनआरसी लागू होने के कुछ ही दिनों के भीतर भारतीय मुसलमानों को भ्रमित करने वाले वीडियो और ऑडियो संदेश भेजकर यह कहा जा रहा था कि सभी मुसलमान अपनी नागरिकता का प्रमाण पत्र जल्द से जल्द बनवाएं क्योंकि भारत सरकार एक ऐसा कानून ला रही है जिससे आप को विदेशी घोषित किया जा सकता है।
कई लोग ऐसे भी मैसेज भेज रहे थे कि असम की तर्ज पर पूरे देश में हिरासत केंद्र बनाये जा रहे हैं जिनमें उन लोगों को रखा जाएगा जो अपनी नागरिकता के दस्तावेज़ पेश नहीं कर पाएंगे। उधर आम मुसलमान को न तो इस बात का पता था कि नागरिकता संशोधन कानून क्या है और ना ही उनको यह मालूम था कि एनआरसी क्या बला है? इसलिए उनमें असंतोष फैलना स्वाभविक था। मुसलमानों को भेजे जा रहे संदेशों से सावधान रहने के लिए हमने उर्दू दैनिक इंकिलाब के माध्यम से लगातार यह बताने की कोशिश की, कि एनआरसी या सीएए का भारतीय मुसलमानों पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा और बहुत से लोगों ने लिखा भी इंकिलाब के कारण उनका नजरिया बड़ी हद तक बदला भी और वास्तविकता की उन्हें जानकारी हुई।
दु:ख की बात यह है कि सरकार की ओर से मुसलमानों को विश्वास में लेने की कोई कोशिश नहीं की गई। भाजपा के नेताओं की तरफ से देश में नागरिकता कानून के बाद जल्द से जल्द एनआरसी लागू किये जाने की बात बार बार दोहराए जाने के कारण मुसलमानों का भय बढ़ता गया। लिहाजा गांव-गांव तथा जिले-जिले में अपनी नागरिकता के प्रमाण पत्र बनवाने वालों की भीड़ लग गई। इस परिस्थिति का ठगों और दलालों ने खूब फायदा उठाया। इस दौरान मुस्लिम समुदाय ने शांति बनाये रखी और देश के किसी भी हिस्से में सीएए या एनआरसी के विरुद्ध कोई प्रदर्शन नहीं किया।
शायद इसकी एक वजह यह थी की मुस्लिम समुदाय को यह बात समझ में आ रही थी कि इन दोनों प्रावधानों से उनका कोई नुकसान नहीं होगा। क्या यह बात सराहनीय नहीं है कि देश भर के मुसलमान नागरिकता संशोधन अधिनियिम के संसद में पारित होने से पहले तक पूरी तरह खामोश रहे, लेकिन जैसे ही असम में प्रदर्शन शुरू हुए वैसे ही मुसलमानों के सब्र का बांध टूट गया और वह भी खुल कर इस का विरोध करने लगे । सबसे अहम बात यह है कि इस विरोध प्रदर्शन का नेतृत्व करने के लिए आम मुसलमानों ने ना तो उलेमा को साथ लिया और न ही किसी राजनीतिक पार्टी का सहारा लिया बल्कि बिना किसी नेतृत्व के भीड़ निकल पड़ी। वह बात अलग है कि अब कुछ राजनीतिक दल विरोध प्रदर्शनों को हाई जैक करने की कोशिश में लगे है।
बहरहाल बदलते हुए हालात और मुसलमानों के आक्रोश को समझते हुए केंद्र सरकार ने गुरुवार को कई उर्दू दैनिकों में एक विज्ञापन देकर एनआरसी और नागरिकता संशोधन कानून के बारे में जो भ्रांतियां फैलाई जा रही थीं उनको दूर करने की कोशिश की। इसके माध्यम से सरकार ने इस बात को साफ किया कि आम नागरिकों को एनआरसी में साधारण दस्तावेज ही चाहिए होंगे। लेकिन यह सब इतनी देर से किया गया कि एनआरसी और सीएए के विरोध ने देशव्यापी रंग अख्तियार कर लिया। कई जगह हिंसा भी फैल गई है। अगर यही काम पहले हुआ होता तो शायद तस्वीर दूसरी होती। विरोधाभासी बयान भी दिक्कतें पैदा कर रहे हैं।
गुरुवार को सरकार ने कहा कि एनआरसी देशभर में अभी लागू नहीं होगा। भविष्य में जब लागू होगा तो उसके दिशानिर्देश जारी किए जाएंगे। मगर शाम को भाजपा के कार्यकारी अध्यक्ष जेपी नड्डा ने कहा कि जल्द ही एनआरसी को देशभर में लागू किया जाएगा। हमें नहीं लगता कि ऐसे विरोधाभासी बयान आने से मुसलमानों की चिंताए दूर होंगी। उम्मीद है कि गृहमंत्री अमित शाह ने क्रिसमस के बाद सीएए में कुछ परिवर्तन करने की जो बात कही है उस पर विचार करते समय वह मुस्लिम समुदाय की शंकाओं का निदान करने का काम भी करेंगे।
(लेखक इंकिलाब अखबार के संपादक हैं)
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