कोविड टीकाकारण से किस प्रकार सामान्य जीवन की ओर अग्रसर समाज
किसी भी संक्रमण की घातक क्षमता और मृत्यु दर तब कम हो जाती है जब ज्यादा से ज्यादा आबादी उसके प्रति इम्युनिटी हासिल कर लेती है। टीकाकरण के बाद उसके प्रतिकूल प्रभावों को लेकर बहस करना तात्कालिक और दीर्घकालिक जोखिमों को लेकर गहरी समझ के अभाव को दर्शाता है
डा. अनुराग अग्रवाल । आजकल अधिकांश लोगों के दिमाग में एक बड़ा सवाल यह भी घूम रहा है कि क्या हम कोविड महामारी से उबर चुके हैं? चूंकि कोविड पूरी तरह खत्म नहीं हुआ है, ऐसे में बेहतर यही है कि हम इस सवाल का जवाब तलाशें कि 'क्या हम एक गंभीर बीमारी या मौत के जोखिम को तय सीमा के भीतर रखते हुए सामान्य जीवन जी सकते हैं।Ó इसका जवाब है- हां, हम टीकों की मदद से ऐसा कर सकते हैं।
किसी भी संक्रमण की गंभीरता को होस्ट इम्युनिटी (प्रतिरक्षा) के नजरिये से बेहतर ढंग से समझा जा सकता है। चिकनपाक्स और खसरा का खतरा अब हमें नहीं डराता है, लेकिन इसी बीमारी ने यूरोपीय उपनिवेश काल के दौरान अमेरिकी मूल निवासियों पर कहर ढाया था। पहले कभी इस बीमारी से लोगों को सामना नहीं करना पड़ा था और संक्रमण के प्रति इम्युनिटी की कमी थी। यही सबसे बड़ी वजह थी जिसने यूरोपीय लोगों की तुलना में मूल निवासियों में संक्रमण को अधिक गंभीर बना दिया।
इसी तरह जब कोविड का आरंभ हुआ तो हमारे शरीर में श्वसनतंत्र पर धावा बोलने वाले तेजी से फैलते हुए इस वायरस सार्स-कोव-2 के प्रति बहुत ही कम प्रतिरोधक क्षमता थी। फिर भी, संक्रमण के कुछ मामलों में बीमारी गंभीर स्थिति में पहुंची और मौत का कारण बन गई। कोविड संक्रमण ने लोगों पर गहरा मनोवैज्ञानिक असर डाला है, जिसमें तमाम लोग गंभीर रूप से बीमार पड़े और उन्हें उचित स्वास्थ्य देखभाल में मुश्किलें झेलनी पड़ीं। इसी कारण कम अवधि के भीतर कई अप्रत्याशित मौतें हुईं। यही घटनाएं लोगों के दिमाग में बसी हुई हैं और वह अक्सर सवाल उठाते हैं 'क्या कोविड खत्म हो गया है?Ó
बात संक्रमण की हो तो टीकाकरण को बीमारियों से बचाव के लिए प्रतिरोधी क्षमता बढ़ाने का पसंदीदा तरीका माना जाता है, क्योंकि संक्रमण अपने साथ ऊपर बताए गए कई तरह के जोखिम को साथ लाता है। टीकाकरण के बाद उसके प्रतिकूल प्रभावों को लेकर बहस करना तात्कालिक और दीर्घकालिक जोखिमों को लेकर गहरी समझ के अभाव को दर्शाता है। टीकाकरण के बाद थोड़े समय के लिए सामने आईं प्रतिकूल प्रतिक्रियाएं जैसे थ्रोम्बोसिस या मायोकार्डिटिस या फिर मौत हो जाना आदि का खतरा टीकों की तुलना में संक्रमण के साथ सौ गुना अधिक होने की आशंका है। एक महत्वपूर्ण बात यह भी है कि टीकाकरण तो नहीं, लेकिन संक्रमण जरूर दूसरों को जोखिम में डालता है।
आज स्थितियां एकदम बदल चुकी हैं। इम्युनिटी काफी ज्यादा बढ़ चुकी है। वजह कुछ हद तक व्यापक डेल्टा सर्ज और फिर कुछ दुनियाभर में बड़े पैमाने पर चलने वाला टीकाकरण कार्यक्रम। इसके साथ ही स्वास्थ्य देखभाल क्षमता में भी काफी हद तक सुधार हुआ है। यद्यपि, ओमिक्रान वैरिएंट डेल्टा की तुलना में कम घातक वायरस था, फिर भी यह अपेक्षाकृत कमजोर लोगों में गंभीर बीमारी और मौत का कारण बना, जो अमेरिका, हांगकांग और अन्य जगहों पर स्पष्ट तौर पर नजर आया। इन जगहों की तुलना में भारत में तीसरी सर्ज काफी हल्की रहना एक तरह से भविष्य के लिए अच्छा संकेत है।
हालांकि अगली सर्ज अधिक संक्रामक और इम्युनिटी सिस्टम पर भारी पडऩे वाली हो सकती है, ऐसी आशंका कई विशेषज्ञों द्वारा जताई जा रही है। फिर भी यह कम घातक होगी या ज्यादा, यह तो समय ही बताएगा। वायरस की घातक क्षमता खुद-ब-खुद कम हो जाने की उम्मीदें पालना कुछ उसी तरह है, जैसे बिना कुछ प्रयत्न किए हुए किसी बड़े काम का पूरा हो जाने की कल्पना करना। बीमारी की घातक क्षमता घटाने के लिए बेहतर इम्युनिटी पर भरोसा करना और वैरिएंट से मुक्त होना ही एक बेहतर विकल्प है। फिलहाल हम ऐसे मुकाम पर पहुंच चुके हैं, जहां यह उम्मीद तो की जा सकती है कि भविष्य में महामारी से आसानी से निपटा जा सकेगा, बशर्ते वायरस में कोई बहुत बड़ा बदलाव न हो। वायरस में बड़े बदलावों का जोखिम घटाने का सबसे बेहतरीन तरीका यही है कि इसे अपनी प्रतिकृति बनाने, फैलने और विकसित होने से रोका जाए।
हम वहां तक पहुंचेंगे कैसे? इसके लिए सबसे पहले तो हमें बेहतर टीकों की जरूरत होगी जो इन्फेक्शन और ट्रांसमिशन पर काबू पाने में कारगर हों। नेजल वैक्सीन इसमें गेमचेंजर साबित हो सकती है, क्योंकि नाक से दिए जाने के कारण यह श्वसन वायरस के शरीर में प्रवेश करने की जगह पर ही उच्च स्तरीय इम्युनिटी पैदा करती है। दूसरा, हमें एक अधिक विविधता वाले इम्यून रिस्पांस की जरूरत होगी जो वायरस के म्यूट होने के कई कारणों को निशाना बनाए या इसके कुछ चुनिंदा कारणों को प्रभावित करने वाला एक मजबूत इम्यून रिस्पांस हो।
इसके अलावा ऐसे टीकों के विकास पर भी काम चल रहा है, जो वर्तमान और भविष्य में संभावित दोनों तरह के वैरिएंट को कवर करते हों। कोविड महामारी के बीच हम वैक्सीनोलाजी में जिस तरह से प्रगति कर रहे हैं, उसे देखते हुए वह दिन दूर नहीं जब हम केवल एक वायरस के बजाए तमाम वायरस के खिलाफ कारगर श्वसन टीकों (नेजल वैक्सीन) की बात कर रहे होंगे।
आखिर में, हम यह कह सकते हैं कि टीकों ने कोविड महामारी का असर घटाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है और यही हमारे आगे बढऩे का सबसे अच्छा तरीका है। हमें इस बात पर गंभीरता से विचार करना होगा कि टीकों के कारण कैसे लोगों की जान बचाई गई है। साथ ही वैक्सीन और विज्ञान में नवचार के माध्यम से निकट भविष्य में हमारे जीवन को किस प्रकार और अधिक सुरक्षित बनाया जा सकता है। (ये लेखक के निजी विचार हैं)
( लेखक इंस्टीट्यूट आफ जीनोमिक्स एंड इंटीग्रेटिव बायोलाजी के निदेशक हैं )