जेकेएस परिहार : प्रधानमंत्री मोदी की हालिया अमेरिका यात्रा के दौरान रक्षा, सामरिक एवं अंतरिक्ष क्षेत्र में सहयोग बढ़ाने के लिए कई महत्वपूर्ण निर्णय लिए गए, जिनके दूरगामी परिणाम होंगे। जैसे भारत-अमेरिका अनुबंध के तहत अमेरिकी कंपनी जनरल एटामिक भारत को लगभग 3.1 अरब डालर के 31 एमक्यू-9 बी प्रीडेटर ड्रोन देगी। इनमें से 15 नौसेना और आठ-आठ थल एवं वायु सेना को मिलेंगे। कंपनी कुछ ड्रोन सीधे भारत को देगी। तत्पश्चात आधुनिकतम तकनीकी हस्तांतरण द्वारा हिंदुस्तान एयरोनोटिक्स लिमिटेड (एचएएल) भारत में ही इनका निर्माण करेगी। इनके रखरखाव और मरम्मत इत्यादि की सुविधाएं भारत में ही विकसित की जाएंगी। भारत में निर्मित ये प्रीडेटर ड्रोन बाद में निर्यात भी हो सकेंगे। मालूम हो कि प्रीडेटर ड्रोन आज विश्व की श्रेष्ठतम चालकरहित युद्धक प्रणाली में गिने जाते हैं। इनकी मारक क्षमता कई स्थानों पर प्रमाणित हो चुकी है और उनकी विश्वसनीयता भी काफी अधिक है।

भारत के लिए यह समझौता रक्षा संबंधी जरूरतों को देखते हुए अति महत्वपूर्ण है, जो कि काफी अर्से से लंबित था। यद्यपि इस प्रीडेटर ड्रोन की कीमत को लेकर देश में काफी कुछ कहा जा रहा है, लेकिन जो लोग सवाल उठा रहे हैं, उन्हें जानना चाहिए कि हाल के वर्षों में भारत सरकार ने रक्षा सौदों के नियमन के लिए एक पारदर्शी प्रक्रिया लागू की है। इसके अंतर्गत भारत सरकार रक्षा निर्माता कंपनी से सीधे अनुबंध न करते हुए वहां की सरकार से क्रय-विक्रय अनुबंध करती है। इसके बाद दोनों सरकारों की देखरेख में विदेशी कंपनी और भारतीय कंपनी के मध्य अनुबंध का क्रियान्वयन होता है। इस प्रकार इन सौदों में बिचौलियों की भूमिका पूरी तरह समाप्त कर दी गई है।

यह भी एक तथ्य है कि रक्षा मंत्रालय द्वारा खरीद की इस पूरी प्रक्रिया का प्रत्येक स्तर पर गहन अध्ययन किया जाता है। इसमें किसी भी हथियार प्रणाली को अन्य देशों को कितनी कीमत पर बेचा गया, इसका आकलन किया जाता है। इसके बाद भारत को प्रदान की जाने वाली संभावित तकनीक एवं सहायक शस्त्र प्रणाली की गुणवत्ता, मारक क्षमता तथा भविष्य में होने वाले आधुनिकीकरण को परखा जाता है। तदोपरांत देश में उसके निर्माण और रखरखाव के लिए आवश्यक तकनीकी हस्तांतरण इत्यादि पहलुओं पर बात की जाती है। ये सब मिलाकर खरीदी जाने वाली हथियार प्रणाली की अंतिम कीमत तय करते हैं। अत: प्रीडेटर ड्रोन की वास्तविक कीमत के बारे में अभी कुछ भी टिप्पणी करना जल्दबाजी ही है।

आज की आधुनिक युद्ध संचालन व्यवस्था में विश्व के अधिकतर देशों में ड्रोन का उपयोग लगातार बढ़ रहा है। ड्रोन छोटे आकार से लेकर बड़े मानवरहित रिमोट संचालित एयरक्राफ्ट के रूप में उपयोग में लाए जा रहे हैं। इन्हें रिमोट कंट्रोल परिचालन अथवा मानवरहित प्रणाली भी कहा जाता है। भारत में भी युद्धक ड्रोन की तकनीक विकसित करने के लिए डीआरडीओ, भारत इलेक्ट्रानिक्स लिमिटेड, एचएएल आदि नौसेना के साथ मिलकर तापस का निर्माण कर रहे हैं। अभी भारतीय नौसेना के पास दो समुद्री प्रीडेटर ड्रोन लीज पर हैं। भारत के पास इजरायल निर्मित हेरान ड्रोन प्रणाली भी है। चीनी ड्रोन तुर्किये निर्मित बेरक्तार टीबी2 और इजरायल द्वारा विकसित हेरान के मुकाबले कहीं नहीं ठहरते हैं।

प्रीडेटर एक संपूर्ण मानवरहित ड्रोन है, जो 35,000 फीट की ऊंचाई तक 400 किलोमीटर प्रतिघंटा की रफ्तार से उड़ सकता है। वह 40 घंटे तक लगातार हवा में रहते हुए कई महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। यह सीमा से शत्रु क्षेत्र में लगातार जासूसी, निगरानी, टोही और प्रतिघात करने की क्षमता भी रखता है। इसे हवा, समुद्र और जमीन से संचालित किया जा सकता है। प्रीडेटर ड्रोन से एक साथ हवा से जमीन पर मार करने वाली आधुनिकतम हेलफायर मिसाइलें और विस्फोटक सामग्री दागी जा सकती हैं।

प्रीडेटर ड्रोन ने अपनी क्षमताओं का मध्य एशिया, इराक युद्ध, अफगानिस्तान और कई अन्य क्षेत्रों में श्रेष्ठ प्रदर्शन किया है। अमेरिका तथा भारत के अलावा इटली, फ्रांस, नीदरलैंड, पोलैंड, स्पेन, ब्रिटेन तथा जापान द्वारा भी इसका उपयोग किया जा रहा है। चूंकि चीन और पाकिस्तान को प्रीडेटर ड्रोन हासिल नहीं हैं। अत: ये ड्रोन हिंद महासागर में समुद्री सीमाओं सहित भारत-चीन की ऊंचे पर्वतीय और पाकिस्तान से लगी घने जंगलों से ढकी सीमाओं पर भी अत्यधिक उपयोगी सिद्ध होंगे।

भारत लंबे समय तक अपनी रक्षा संबंधी जरूरतों के लिए विशेषकर रूस पर निर्भर रहा है। हालांकि यह निर्भरता पिछले 10 वर्षों में 70 प्रतिशत से गिरकर 56 प्रतिशत तक हो गई है, लेकिन अभी भी खासी अधिक है। वैश्विक प्रतिद्वंद्विता, यूक्रेन युद्ध एवं चीन की अति विस्तारवादी नीति को ध्यान में रखते हुए आत्मनिर्भर भारत का लक्ष्य एवं भारत में ही विभिन्न रक्षा प्रणालियों जैसे-टैंक, आर्टिलरी तोप, पानी के जहाज, पनडुब्बी, विभिन्न प्रकार के व्यावसायिक एवं युद्धक विमान एवं मानवरहित रिमोट कंट्रोल प्रणालियों को विकसित करने और उनके निर्यात को प्रोत्साहन देने की जिस दीर्घकालीन नीति को सरकार ने आत्मसात किया है, वह समय की मांग है।

भारत की अल्पकालीन रक्षा आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए ऐसे अनुबंधों की आवश्यकता है, जिससे न केवल हमारी सेनाओं को आधुनिकतम हथियारों से सुसज्जित किया जा सके, बल्कि देश में ही उनका निर्माण किया जा सके। एमक्यू-9बी प्रीडेटर ड्रोन का अनुबंध इसी नीति का परिणाम है। कुल मिलाकर भारत रक्षा उत्पादन के क्षेत्र में उभरती शक्ति के रूप में आने वाले वर्षों में हिंद-प्रशांत क्षेत्र में एक बड़ी और परिपक्व भूमिका निभाने की ओर अग्रसर है।

(लेखक सेवानिवृत्त मेजर जनरल एवं सामरिक मामलों के विशेषज्ञ हैं)