डा. जयंतीलाल भंडारी : चिनफिंग के तीसरी बार राष्ट्रपति बनने की चर्चा के बीच विश्व बैंक ने चीन के लिए वित्त वर्ष 2022-23 की विकास दर का अनुमान पहले के पांच प्रतिशत से घटाकर 3.2 प्रतिशत कर दिया है। 1990 के बाद चीन पहली बार इतनी धीमी गति से बढ़ रहा है। दरअसल कई तरह के आर्थिक झटकों से चीन की अर्थव्यवस्था प्रभावित हुई है। इसमें जीरो कोविड नीति से खपत में गिरावट, संपत्ति बाजार की लंबी चली मंदी, निर्यात मांग में गिरावट और ताइवान के प्रति उसका आक्रमक रवैया प्रमुख हैं। इसके कारण चीन के प्रति दुनिया की नकारात्मकता भी बढ़ रही है। परिणामस्वरूप चीन से होने वाली कारोबार और उत्पादन संबंधी आपूर्ति में कमी आई है। इसका फायदा भारत को मिलता दिख रहा है। दुनिया के कई देश अपनी आपूर्ति शृंखलाओं को चीन से दूर करने का प्रयास कर रहे हैं और भारत से संबंध स्थापित कर रहे हैं। भारत चीन का विकल्प बनने की दिशा में आगे बढ़ रहा है। भारत, आस्ट्रेलिया और जापान चीन पर निर्भरता को कम करने के लिए त्रिपक्षीय आपूर्ति शृंखला बनाने के लिए विचार कर रहे हैं।

एक नए आपूर्तिकर्ता देश के रूप में भारत के दुनिया की उम्मीदों के केंद्र बनने की संभावना के कई कारण हैं। पिछले दिनों विश्व बैंक ने कहा कि भारत की अर्थव्यवस्था वित्त वर्ष 2022-23 में दुनिया में सबसे अधिक 6.5 प्रतिशत की दर से बढ़ेगी। इस समय भारत दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है। इसने वैश्विक मैन्यूफैक्चरिंग हब बनने के लिए कई आर्थिक सुधार भी किए हैं। यहां 70,000 से अधिक स्टार्ट-अप हैं, जिनमें सौ से अधिक यूनिकार्न हैं।

भारत डिजिटाइजेशन के क्षेत्र में दुनिया में अग्रणी है। वैश्विक मंदी की चुनौतियों के बीच भारत में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश में रिकार्ड बढ़ोतरी हुई है। देश का विदेशी मुद्रा भंडार भी करीब साढ़े पांच सौ अरब डालर के स्तर पर दिखाई दे रहा है, जो दुनिया में चौथा सबसे बड़ा विदेशी मुद्रा भंडार है। ग्लोबल इनोवेशन इंडेक्स, 2022 में भारत तेजी से ऊपर चढ़ते हुए 40वें स्थान पर आ गया है। यह पूरा परिदृश्य भारतीय अर्थव्यवस्था की मजबूती का प्रतीक है।

यही वजह है कि चीन में कार्यरत अमेरिका सहित विभिन्न यूरोपीय देशों की कई मैन्यूफैक्चरिंग कंपनियां चीन से निकलकर भारत के दरवाजे पर दस्तक दे रही हैं। दुनियाभर में तेजी से बदलती हुई यह धारणा भी भारत के लिए लाभप्रद है कि भारत गुणवत्तापूर्ण और किफायती उत्पादों के निर्यात के लिहाज से एक बढ़िया प्लेटफार्म है। भारत सस्ती लागत और कार्य कौशल के मद्देनजर विनिर्माण में चीन को पीछे छोड़ सकता है। भारत की करीब 50 प्रतिशत आबादी 25 वर्ष से कम उम्र की है और इसकी एक बड़ी संख्या तकनीकी एवं पेशेवर दक्षता से सुसज्जित है।

इस समय देश में आत्मनिर्भर भारत अभियान और उत्पादन आधारित प्रोत्साहन स्कीम यानी पीएलआइ की गति भी तेज है। पीएलआइ स्कीम के तहत 14 उद्योगों को करीब दो लाख करोड़ रुपये आवंटन के साथ प्रोत्साहन सुनिश्चित किए गए हैं। अब देश के कुछ उत्पादक चीन के कच्चे माल का विकल्प बनाने में सफल भी हुए हैं। इस समय वोकल फार लोकल को बढ़ावा देने और विदेशी वस्तुओं का उपयोग कम करने के साथ देश में प्रतिभा, उद्योग, व्यापार और प्रौद्योगिकी को तेजी से प्रोत्साहित किया जा रहा है। नई लाजिस्टिक नीति और गतिशक्ति योजना भी लागू हुई है। इनके उपयुक्त क्रियान्वयन से घरेलू और विदेशी बाजारों में भारतीय वस्तुओं की प्रतिस्पर्धा में सुधार आएगा। इसके साथ ही लागत के कम होने से जहां सामान की कीमतें कम होंगी, वहीं भारत नया निर्यात प्रतिस्पर्धी देश भी बनेगा।

वहीं सरकार अब विशेष आर्थिक क्षेत्र (सेज) की नई अवधारणा पेश कर रही है। सेज से अंतरराष्ट्रीय बाजार और राष्ट्रीय बाजार के लिए विनिर्माण करने वाले उत्पादकों को विशेष सुविधाएं मिलेंगी। इससे देश को दुनिया का नया मैन्यूफैक्चरिंग हब बनाने और आयात में कमी लाने में मदद मिलेगी। इसके अलावा भारत के विभिन्न देशों से मुक्त व्यापार समझौतों (एफटीए) और क्वाड के कारण उद्योग-कारोबार तेजी से बढ़ रहे हैं। भारत-संयुक्त अरब अमीरात और आस्ट्रेलिया के साथ एफटीए को मूर्त रूप देने के बाद अब यूरोपीय संघ, ब्रिटेन, कनाडा, खाड़ी सहयोग परिषद के छह देशों, दक्षिण अफ्रीका, अमेरिका और इजरायल के साथ भी इसके लिए वार्ता कर रहा है। नए एफटीए में मुख्य रूप से वाहन और उनके कलपुर्जे, वस्त्र, रसायन एवं औषधि और इंजीनियरिंग जैसे उत्पादों को शामिल करना चाहिए।

इसके साथ ही हमें मुक्त व्यापार वार्ताओं में ई-कामर्स, इलेक्ट्रिक वाहन और डाटा निजता को भी शामिल करना चाहिए। आरबीआइ द्वारा हाल में वैश्विक व्यापारिक सौदों का निपटान रुपये में किए जाने संबंधी महत्वपूर्ण निर्णय के क्रियान्वयन पक्ष पर भी ध्यान देना चाहिए। इससे दुनिया का कोई भी देश भारत से अमेरिकी डालर के बिना ही सीधे व्यापार कर सकेगा।

उम्मीद करें कि सरकार मैन्यूफैक्चरिंग सेक्टर के प्रोत्साहन के लिए उत्पाद लागत को घटाने, स्वदेशी उत्पादों की गुणवत्ता में बढ़ोतरी के लिए शोध एवं नवाचार पर फोकस करने, कानूनों को और सरल बनाने, अर्थव्यवस्था के डिजिटलीकरण की रफ्तार तेज करने, लाजिस्टिक की लागत कम करने तथा श्रमशक्ति को नई डिजिटल कौशल योग्यता से सुसज्जित करने के लिए रणनीतिक रूप से आगे बढ़ेगी। यदि भारत चीन का विकल्प बनने में सक्षम रहता है तो फिर उसके विकसित देश बनने की डगर भी आसान हो जाएगी।

(लेखक एक्रोपोलिस इंस्टीट्यूट आफ मैनेजमेंट स्टडीज एंड रिसर्च, इंदौर के निदेशक हैं)