वैश्विक बाजार में पहुंच बढ़ाता भारत, सेवा क्षेत्र से भी अधिक योगदान दे सकता है विनिर्माण क्षेत्र
अमेरिका-भारत का तेजी से बढ़ता साझा बाजार निवेशकों के लिए एक बड़े आकर्षण का केंद्र बनता जा रहा है। विनिर्माण क्षेत्र में विशेष रूप से मोबाइल फोन लक्जरी और आटोमोबाइल उद्यम आदि को भारत में स्थापित करने के प्रति विदेशी निवेशकों का रुझान तेजी से बढ़ा है। इंजीनियरिंग रसायन फार्मास्यूटिकल्स टिकाऊ उपभोक्ता वस्तु आदि उद्यम देश के आर्थिक विकास के एक अभिन्न स्तंभ के रूप में उभर रहे हैं।
डा. सुरजीत सिंह : एसएंडपी ग्लोबल ने विनिर्माण क्रय प्रबंधन सूचकांक (पीएमआइ) के आधार पर भारत के विनिर्माण क्षेत्र की सकारात्मक तस्वीर पेश की है। यह रिपोर्ट इसलिए उल्लेखनीय है कि रूस-यूक्रेन युद्ध के कारण वैश्विक स्तर पर आर्थिक प्रतिकूलताएं तेजी से बढ़ रही हैं। हर देश महंगाई एवं ऋण के जाल से निकलने के लिए जूझ रहा है। इन विपरीत परिस्थितियों में भी पीएमआइ रिपोर्ट देश में उद्योगों के लिए अनुकूल आर्थिक माहौल की कहानी कह रही है। इससे पहले विश्व के अधिकांश अनुमानों को गलत साबित करते हुए भारतीय अर्थव्यवस्था ने अप्रत्याशित रूप से पिछले वित्तीय वर्ष में 7.2 प्रतिशत वृद्धि दर को हासिल किया। अधिकांश एजेंसियों ने 6 से 6.5 प्रतिशत की वृद्धि दर रहने के ही अनुमान व्यक्त किए थे।
पीएमआइ रिपोर्ट कंपनियों द्वारा दिए जाने वाले रोजगार, मिलने वाले आर्डर, उत्पादन, स्टाक, डिलिवरी आदि के आधार पर तैयार की जाती है। पीएमआइ के अनुसार भारत का सूचकांक मई में 31 महीनों के उच्चतम स्तर 58.7 पर पहुंच गया। वैश्विक स्तर पर पीएमआइ की तुलना अमेरिका से की जाए तो यह पिछले तीन वर्षो में अपने न्यूनतम स्तर पर है। चीन की भी लगभग यही स्थिति है। जबकि अक्टूबर 2020 के बाद से विनिर्माण क्षेत्र में भारत अपने उच्चतम स्तर पर है।
पीएमआइ अधिक होने का तात्पर्य यह है कि भारत के उत्पादों की मांग घरेलू स्तर के साथ-साथ अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बढ़ रही है। पिछले छह महीनों में नए आर्डर मिलने के परिणामस्वरूप भारतीय निर्माताओं ने उत्पादन की मात्रा में वृद्धि के साथ-साथ अंतरराष्ट्रीय बिक्री अर्थात निर्यात में सबसे तेज वृद्धि दर्ज की है। इससे न सिर्फ आर्थिक विकास को बल मिला है, बल्कि नौकरियों के अवसर भी बढ़े हैं। इस रिपोर्ट के अनुसार रोजगार वृद्धि की दर अपने छह महीने के उच्चतम स्तर पर पहुंच गई है।
डिजिटल परिवर्तन, नवाचार एवं प्रौद्योगिकी ने भारत के विनिर्माण क्षेत्र को वैश्विक स्तर पर अत्यधिक प्रतिस्पर्धी बनाने के साथ-साथ उसकी रचनात्मकता को भी बढ़ावा दिया है। 2.73 करोड़ से अधिक श्रमिकों को रोजगार देने वाले इस क्षेत्र में गुणात्मक परिवर्तन के साथ-साथ निर्मित उत्पादों की शृंखला में तेजी से बढ़ोतरी हो रही है। औद्योगिक गलियारों के विकास द्वारा भी सरकार विनिर्माण क्षेत्र को विस्तारित कर राष्ट्र के समग्र विकास में इसकी हिस्सेदारी को बढ़ावा देने में प्रयत्नशील है।
अमेरिका-भारत का तेजी से बढ़ता साझा बाजार निवेशकों के लिए एक बड़े आकर्षण का केंद्र बनता जा रहा है। विनिर्माण क्षेत्र में विशेष रूप से मोबाइल फोन, लक्जरी और आटोमोबाइल उद्यम आदि को भारत में स्थापित करने के प्रति विदेशी निवेशकों का रुझान तेजी से बढ़ा है। इंजीनियरिंग, रसायन, फार्मास्यूटिकल्स, टिकाऊ उपभोक्ता वस्तु आदि उद्यम देश के आर्थिक विकास के एक अभिन्न स्तंभ के रूप में उभर रहे हैं। इंडियन सेल्युलर एंड इलेक्ट्रानिक्स एसोसिएशन के अनुसार भारत में 2025 तक लैपटाप और टैबलेट निर्माण क्षमता को 10 हजार करोड़ रुपये तक बढ़ाया जा सकता है। इस संभावना को भी बल मिलता है कि 2030 तक भारत एक लाख करोड़ रुपये के निर्यात लक्ष्य को आसानी से हासिल कर सकता है।
एसएंडपी ग्लोबल मार्केट इंटेलिजेंस में निदेशक पोलीन्ना डी लीमा ने इस पर भी बल दिया है कि मांग आधारित मुद्रास्फीति स्वाभाविक रूप से नकारात्मक नहीं है, पर यह क्रय शक्ति को घटा सकती है, जिसके कारण ब्याज दरों में बढ़ोतरी हो सकती है। इसलिए विनिर्माण क्षेत्र को मजबूती प्रदान करने एवं इससे जुड़ी चुनौतियों से निपटने के लिए अधिक रणनीतिक प्रयास करने होंगे। यह विश्लेषण करने की भी आवश्यकता है कि मेक इन इंडिया, प्रत्यक्ष विदेशी निवेश पर बल, प्रोडक्शन लिंक्ड इंसेंटिव, कर की दरों में कमी आदि अनुकूल उपायों के बावजूद यह क्षेत्र आनुपातिक वृद्धि क्यों नहीं कर पा रहा है?
भारत में मांग एवं आपूर्ति पक्ष में संतुलन का न होना भी इसका एक प्रमुख कारण है। भारत के विनिर्माण उद्योगों को अपने निर्यात को अधिक बढ़ाने पर ध्यान देना होगा। प्रशिक्षित श्रमिकों पर विशेष ध्यान देने से भी उत्पादन की लागत को कम किया जा सकता है। इसके लिए व्यावसायिक प्रशिक्षण संस्थानों को अधिक व्यावहारिक एवं कुशल बनाने के लिए एक मूल्यांकन समिति बनाई जाए। देश में केवल पांच प्रतिशत भारतीय युवा ही तकनीकी रूप से प्रशिक्षित हैं, जबकि दक्षिण कोरिया में यह आंकड़ा 85 प्रतिशत से अधिक है। दीर्घकालिक रोजगार की संभावनाएं और लाखों लोगों के लिए कौशल प्रशिक्षण आदि कारकों के द्वारा ही भारत अंतरराष्ट्रीय बाजार पर अपनी पकड़ को मजबूत बना सकता है।
भारत में विनिर्माण के विकास के लिए आवश्यक पारिस्थितिकी तंत्र के निर्माण पर बल देना होगा, जिससे निर्यात के विस्तार के साथ आंतरिक मांग और उत्पादन में तेजी से वृद्धि की जा सके। लाजिस्टिक क्षेत्र विशेषकर परिवहन क्षेत्र की अपर्याप्त सुविधाओं एवं उनकी गुणवत्ता में सुधार करने के लिए बुनियादी ढांचे को मजबूत करना होगा। ऐसा करके ही भारत को विनिर्माण हब के रूप में विकसित किया जा सकता है।
सकारात्मक प्रयासों के कारण ही 2022-23 में भारत का विनिर्माण निर्यात अपने उच्चतम स्तर पर 447 अरब डालर तक पहुंच गया था। विनिर्माण क्षेत्र की क्षमताओं का सही दोहन किया जाए तो यह संभव है कि इस क्षेत्र का योगदान सेवा क्षेत्र से भी अधिक हो जाए। 2030 तक भारतीय मध्य वर्ग की वैश्विक खपत में हिस्सेदारी 17 प्रतिशत होने की संभावना है। मांग-आपूर्ति संतुलन के लिए विनिर्माण क्षेत्र को एक बड़े धक्के की आवश्यकता है। इसमें सार्वजनिक निवेश की अहम भूमिका होगी। इससे निर्यात में हिस्सेदारी बढ़ेगी, रोजगार के अवसरों का सृजन होगा और विकास दर को भी बढ़ावा मिलेगा।
(लेखक अर्थशास्त्री हैं)