विश्व में भारत का मान बढ़ाते भारतवंशी, अपने-अपने तरीके से देश के विकास में दे रहे अहम योगदान
इसमें कोई दो मत नहीं है कि भारतवंशियों और प्रवासी भारतीयों के लिए विदेश की नई संस्कृति में ढलकर ऐसी अद्भुत सफलता हासिल करना आसान नहीं होता। भारतवंशियों के जीवन को आकार देने उन्हें ऊंचे पदों पर पहुंचाने कार्य की रणनीति बनाने तथा नेतृत्व की भूमिका के साथ न्याय करने में उन्हें मूल रूप से मिले हुए भारतीय संस्कार और मूल्य अहम भूमिका निभाते हैं।
डा. जयंतीलाल भंडारी : दुनिया के कोने-कोने में भारतवंशी या भारतीय मूल के लोगों और प्रवासी भारतीयों की राजनीतिक, आर्थिक और कारोबारी क्षेत्रों में तेजी से बढ़ती संख्या भी भारत को वर्ष 2047 तक विकसित देश बनाने के सपने को साकार करने के दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण मानी जा रही है। हाल में भारतवंशी थरमन षणमुगरत्नम सिंगापुर के राष्ट्रपति बने हैं। थरमन वैश्विक मंचों पर सिंगापुर और भारत के हितों को बेबाकी से प्रस्तुत करने के लिए जाने जाते हैं।
थरमन के अलावा ब्रिटेन के प्रधानमंत्री ऋषि सुनक, आयरलैंड के प्रधानमंत्री लियो वराडकर, पुर्तगाल के प्रधानमंत्री एंटोनियो कोस्टा, अमेरिका की उपराष्ट्रपति कमला हैरिस, गुयाना के राष्ट्रपति मोहम्मद इरफान अली, मारीशस के प्रधानमंत्री प्रविंद जगन्नाथ और राष्ट्रपति पृथ्वीराज सिंह रूपन, सूरीनाम के राष्ट्रपति चंद्रिका प्रसाद संतोखी आदि भारतवंशी राजनेता अपने-अपने देशों को आगे बढ़ा रहे हैं। साथ ही ये विश्व मंच पर भारत के हितों के हिमायती हैं और हरसंभव तरीके से भारत के विकास में अपना अहम योगदान देते हुए भी दिखाई दे रहे हैं।
हम जी-20 शिखर सम्मेलन में आए विश्व बैंक के अध्यक्ष अजय बंगा और अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष की डिप्टी डायरेक्टर गीता गोपीनाथ की भी अनदेखी नहीं कर सकते। बंगा ने कुछ माह पहले ही विश्व बैंक के अध्यक्ष का दायित्व संभाला है। वह इस संस्था की अध्यक्षता करने वाले पहले भारतवंशी है। भारत में ही पढ़ाई करने के कारण वह स्वयं को ‘मेक इन इंडिया’ का प्रतीक बताते हैं।
विभिन्न देशों में राजनीति की ऊंचाइयों पर पहुंचने के साथ-साथ भारतवंशी आइटी, कंप्यूटर, मैनेजमेंट, बैंकिंग, वित्त आदि क्षेत्रों में भी बहुत आगे हैं। उल्लेखनीय है कि माइक्रोसाफ्ट के सीईओ सत्या नडेला, गूगल के सुंदर पिचई, नोवार्टिस के वसंत नरसिम्हन, एडोब के शांतनु नारायण, आइबीएम के अरविंद कृष्णा, स्टारबक्स के लक्ष्मण नरसिम्हन, वर्टेक्स फार्मास्यूटिकल्स की रेशमा केवलरमानी, माइक्रोन टेक्नोलाजी के संजय मेहरोत्रा, कैडेंस डिजाइन सिस्टम्स के अनिरुद्ध देवगन, पालो अल्टो नेटवर्क के निकेश अरोड़ा, वीएमवेयर के रंगराजन रघुराम, इमर्सन इलेक्ट्रिक कंपनी के सुरेंद्रलाल करसनभाई, माइक्रोचिप प्रौद्योगिकी के गणेश मूर्ति आदि अपनी प्रतिभा एवं कौशल से कारोबार और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में दुनिया की अगुआई कर रहे हैं।
इसमें कोई दो मत नहीं है कि भारतवंशियों और प्रवासी भारतीयों के लिए विदेश की नई संस्कृति में ढलकर ऐसी अद्भुत सफलता हासिल करना आसान नहीं होता। भारतवंशियों के जीवन को आकार देने, उन्हें ऊंचे पदों पर पहुंचाने, कार्य की रणनीति बनाने तथा नेतृत्व की भूमिका के साथ न्याय करने में उन्हें मूल रूप से मिले हुए भारतीय संस्कार और मूल्य अहम भूमिका निभाते हैं।
यद्यपि चीनी प्रवासी भी दुनिया के कोने-कोने में फैले हुए हैं, लेकिन वे भारतीय प्रवासियों की तरह शीर्ष वैश्विक संस्थानों, राजनीति और उद्योग-कारोबार में वैसी प्रभावी भूमिका नहीं रखते हैं। दुनिया में प्रवासी भारतीयों का सबसे बड़ा डायस्पोरा है, जिनकी संख्या लगभग 3.2 करोड़ है। विदेश में रह रहे भारतीयों में भारतवंशी (पर्सन आफ इंडियन ओरिजिन), नान रेजिडेंट इंडियन (एनआरआइ) और ओवरसीज सिटीजन आफ इंडिया (ओसीआइ) मुख्य रूप से शामिल हैं।
भारतीय विदेश मंत्रालय की रिपोर्ट के अनुसार दुनिया में एनआरआइ की संख्या करीब 1.34 करोड़ है और ये भारत में अपने संबंधित क्षेत्र में मतदान के पात्र हैं।
सबसे ज्यादा प्रवासी भारतीय अमेरिका में रहते हैं। अमेरिका में विभिन्न प्रवासी समूहों में सबसे अधिक आय भारतीयों की है। आस्ट्रेलिया में भी भारतीयों की औसत आय वहां के राष्ट्रीय औसत से डेढ़ गुना अधिक है। प्रवासी भारतीय भारत धन भेजने के मामले में भी अन्य सभी देशों के प्रवासियों से बहुत आगे हैं। वर्ष 2022 में प्रवासी भारतीयों द्वारा भेजी जाने वाली रकम 100 अरब डालर से भी अधिक रही। वहीं वर्ष 2021 में प्रवासियों ने करीब 87 अरब डालर की रकम भारत भेजी। प्रवासियों से धन प्राप्त करने वाले दुनिया के विभिन्न देशों की सूची में भारत वर्ष 2008 से अब तक शीर्ष पर बना हुआ है।
अतीत में जब-जब भारत के विदेशी मुद्रा भंडार में तेज गिरावट आई है, तब-तब प्रवासियों ने भारत के विदेशी मुद्रा कोष को बढ़ाने में सहयोग दिया है। वर्ष 1998 में भारत ने जब परमाणु परीक्षण किया तब अमेरिका सहित दुनिया के कई देशों ने हम पर आर्थिक प्रतिबंध लगा दिए। उन प्रतिबंधों की समाप्ति में भारतवंशियों और प्रवासी भारतीयों ने अहम भूमिका निभाई। कोरोना की पहली लहर के समय दुनिया के विभिन्न देशों में चिंता और अनिश्चितता के दौर में फंसे भारतीयों को प्रवासी भारतीयों का हरसंभव सहयोग मिला था। वर्ष 2021 में कोरोना की दूसरी दर्दनाक लहर के बीच भी प्रवासी भारतीयों ने भारत में स्वास्थ्य सेवाओं को अधिक मजबूत करने के लिए बेमिसाल सहयोग दिया। अमेरिका में भारतीय मूल के लोगों और प्रवासी भारतीयों से संबद्ध एक संयुक्त संगठन-इंडिया फिलांथ्रोपी अलायंस (आइपीए) भारत के हित में काफी काम करता है।
हम उम्मीद करें कि जिस तरह सिंगापुर के नए राष्ट्रपति थरमन और ब्रिटिश प्रधानमंत्री ऋषि सुनक सहित दुनिया के कोने-कोने में बसे भारतवंशी और प्रवासी भारतीय राजनीति, उद्योग-कारोबार, वित्त, प्रबंधन और विज्ञान-तकनीकी आदि हर क्षेत्र में आगे बढ़ रहे है, वे सभी आने वाले दिनों में भारत में स्वास्थ्य एवं शिक्षा, गरीबी, प्रदूषण आदि की बड़ी चुनौतियों के निराकरण के लिए अधिक सहयोग देते हुए दिखाई देंगे। भारत को विकसित देश बनाने में इनकी भूमिका महत्वपूर्ण रहने वाली है।
(लेखक एक्रोपोलिस इंस्टीट्यूट आफ मैनेजमेंट स्टडीज एंड रिसर्च, इंदौर के निदेशक हैं)