और निखरी भारत की नेतृत्व क्षमता, सर्वसम्मति कायम करने के साथ संतुलन बनाने वाले देश के रूप में उभरी छवि
यदि हम यूरोपीय संघ को देखें तो उनकी कुल जनसंख्या 30 करोड़ भी नहीं है लेकिन यूरोपीय देश सभी प्रमुख संगठनों के सदस्य हैं। इसकी तुलना में अफ्रीकी महासंघ के सभी देशों की कुल जनसंख्या लगभग 100 करोड़ है। इसके बावजूद केवल एक अफ्रीकी देश दक्षिण अफ्रीका जी-20 समूह का सदस्य है। इस बार भारत ने अफ्रीकी देशों के सपने को साकार किया।
विनोद तावडे : दिल्ली में जी-20 की ऐतिहासिक बैठक में दुनिया के 30 से ज्यादा शक्तिशाली नेता मौजूद थे। इस सम्मेलन पर पूरी दुनिया की नजर थी। इसका मुख्य कारण रूस-यूक्रेन युद्ध के चलते उत्तर-दक्षिण और पूर्व-पश्चिम ध्रुवों के बीच तनाव का बढ़ना है। रूस-यूक्रेन युद्ध समग्र विश्व की संरचना और भू-राजनीतिक समीकरणों को नया आकार दे रहा है। इस कारण दुनिया की निगाहें इस पर टिकी थीं कि कड़वाहट दूर करके भारत आम सहमति बनाने में कितना सफल हो पाता है? इसी आधार पर यह आकलन किया जाना था कि भारत भविष्य में विश्व राजनीति को किस प्रकार दिशा देगा?
भारत को इस सबमें अपार सफलता मिली। इस बार भारत ने जी-20 के इतिहास में कुछ नई परंपराएं भी जोड़ीं। केवल राष्ट्राध्यक्ष ही सम्मेलन में एकत्रित होंगे और चर्चा करेंगे, भारत ने ऐसी कोई औपचारिकता नहीं रखी। जी-20 शिखर सम्मेलन से पहले 60 से अधिक शहरों में 200 से अधिक बैठकें आयोजित की गईं। भारत की संपूर्ण अध्यक्षता "सामूहिक या सार्वजनिक भागीदारी" के माध्यम से कार्यान्वित की गई। इसलिए भारत की अध्यक्षता एक नया मील का पत्थर बन गई।
जी-20 शिखर सम्मेलन की सफलता ने भारत को दुनिया भर में यश दिलाया है। इस सम्मेलन की सबसे बड़ी उपलब्धि अफ्रीकी संघ को जी-20 की सदस्यता मिलना है। अफ्रीकी संघ को जी-20 में शामिल करने की मांग काफी पुरानी थी। यदि आप जी-20 की संरचना देखें तो यह पश्चिमी देशों और अमेरिका के आधिपत्य वाला संगठन है।
यदि हम यूरोपीय संघ को देखें तो उनकी कुल जनसंख्या 30 करोड़ भी नहीं है, लेकिन यूरोपीय देश सभी प्रमुख संगठनों के सदस्य हैं। इसकी तुलना में अफ्रीकी महासंघ के सभी देशों की कुल जनसंख्या लगभग 100 करोड़ है। इसके बावजूद केवल एक अफ्रीकी देश दक्षिण अफ्रीका जी-20 समूह का सदस्य है। इस बार भारत ने अफ्रीकी देशों के सपने को साकार किया और सही मायने में "ग्लोबल साउथ" की आवाज बना।
रूस-यूक्रेन युद्ध ने रूस और अमेरिका तथा उसके समर्थकों के बीच काफी तनाव पैदा कर दिया है। इसलिए सवाल उठ रहे थे कि क्या जी-20 सम्मेलन में परंपरागत रूप से घोषित किए जाने वाले समझौते की घोषणा हो पाएगी? यदि घोषणा हुई भी तो कितने देश उस पर हस्ताक्षर करेंगे? घोषणापत्र का एलान आम तौर पर दो दिवसीय सम्मेलन के दूसरे दिन किया जाता है, लेकिन इस सम्मेलन के पहले दिन ही प्रधानमंत्री मोदी ने सबको बता दिया कि दिल्ली घोषणा पत्र के मसौदे पर सभी सदस्यों ने सहमति व्यक्त कर दी है।
यह घोषणा पत्र 34 पेज का है और इसमें 83 परिशिष्ट हैं। इनमें से आठ परिशिष्ट रूस-यूक्रेन युद्ध पर हैं। इसके बावजूद इसमें विरोध के स्वर नहीं हैं। इससे भारत की छवि एक ऐसे देश के रूप में सामने आई है, जो सही मायनों में सर्वसम्मति कायम कर सकता है और संतुलन बना सकता है। चूंकि भारत दिल्ली घोषणा पत्र पर अमल होते हुए देखना चाहता है, इसलिए जी-20 की वर्चुअल बैठक की तैयारियां शुरू कर दी गई हैं। ऐसा पहली बार हो रहा है।
भारत-पश्चिम एशिया और यूरोप इकोनमिक कारिडोर के ड्रीम प्रोजेक्ट की घोषणा जी-20 शिखर सम्मेलन की बहुत महत्वपूर्ण उपलब्धि है। इस प्रोजेक्ट के माध्यम से यूरोप, पश्चिम एशिया और भारत के बीच जलमार्ग, रेलवे, सड़क के जरिये कनेक्टिविटी बनाई जाएगी। यह परियोजना अंतरराष्ट्रीय अर्थव्यवस्था में क्रांतिकारी साबित होगी। इस प्रोजेक्ट के माध्यम से समय और यात्रा खर्च की बचत होगी।
यूरोप-पश्चिम एशिया के साथ भारत का व्यापार 40 प्रतिशत बढ़ जाएगा। इससे भारत में भी बड़े पैमाने पर रोजगार के अवसर निर्मित होंगे। रेलवे निर्माण परियोजनाओं में भारत की विशेषज्ञता है। इसलिए जब पश्चिम एशिया में ऐसे प्रोजेक्ट बनेंगे तो भारतीय इंजीनियरों समेत कई लोगों को काफी रोजगार मिलेगा। इससे भारत को प्रमुख निर्यातक बनने में भी मदद मिलेगी।
क्रिप्टोकरेंसी की आभासी मुद्रा ने वैश्विक अर्थव्यवस्था के लिए चुनौती खड़ी कर दी है। इस अनियमित मुद्रा पर वैश्विक नियंत्रण और प्रबंधन की भारत की मांग को जी-20 शिखर सम्मेलन में स्वीकार कर लिया गया। रूस-यूक्रेन युद्ध के बाद सभी अमीर देशों की अर्थव्यवस्था प्रभावित होने के कारण गरीब एवं विकासशील देशों के लिए ऋण या वित्तीय सहायता प्राप्त करना मुश्किल हो गया है। इसके लिए आइएएमफ और वर्ल्ड बैंक की कार्यप्रणाली में सुधार करना जरूरी है। गरीब देशों को आसान शर्तों पर ऋण उपलब्ध कराने के लिए एक तंत्र विकसित करने की भारत की मांग को इस सम्मेलन में स्वीकार कर लिया गया। इसके अलावा कर्ज संकट में फंसे देशों को राहत देने की कोशिश करने की भारत की मांग भी मान ली गई।
इसके अलावा इस सम्मेलन में कार्बन उत्सर्जन और उसके परिणामस्वरूप होने वाले ग्लोबल वार्मिंग के भयावह संकट से निपटने के लिए वैश्विक जैव ईंधन गठबंधन की स्थापना करके ठोस कदम उठाया गया। आटो मोबाइल क्षेत्र का ताकतवर देश माना जाने वाला जर्मनी एथेनाल जैसे ईंधन के उपयोग में बहुत सहयोगी नहीं बन पा रहा है। इस पर सहमति बनाने के लिए भारत के नेतृत्व में एक समूह का गठन किया गया है। इसके अलावा पृथ्वी का तापमान 1.5 डिग्री सेल्सियस से ऊपर नहीं बढ़ना चाहिए और तदनुसार विकसित देशों की ओर से गरीब देशों को हरित प्रौद्योगिकी उपलब्ध कराई जानी चाहिए, इस पर भी सहमति बनाने के लिए एक महत्वपूर्ण समझौता इस सम्मेलन में हुआ।
कुल मिलाकर इस सम्मेलन के माध्यम से भारत वैश्विक अर्थव्यवस्था और समाज के संदर्भ में प्रमुख मुद्दों पर मतभेदों को दूर करके सहमति जुटने में सफल रहा। इससे भारत की नेतृत्व क्षमता दुनिया के सामने आई। भारत की छवि तीसरी दुनिया के अग्रणी देश के रूप में दुनिया के सामने आई है। इससे निकट भविष्य में भारत को आर्थिक, व्यापारिक और अन्य क्षेत्रों में अच्छा-खासा लाभ मिलेगा।
(लेखक भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव हैं)