डा. सुशील कुमार सिंह। आज भारत दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ने वाली अर्थव्यवस्था में शुमार है। अनुमान है कि अगले दो दशक तक देश की यही स्थिति बनी रहेगी। भारत दुनिया में चौथा सबसे बड़ा विदेशी मुद्रा भंडार भी रखे हुए है। हालांकि रूस-यूक्रेन युद्ध के चलते दूसरे देशों की तरह भारत को भी कुछ समय के लिए मुश्किलें आ सकती हैं, लेकिन इसके लंबे समय तक बने रहने के आसार नहीं हैं। ऐसी तमाम बातों से अमेरिका भी अनभिज्ञ नहीं है। कोविड-19 के समय चीन ने कई जरूरी चीजों की आपूर्ति अमेरिका और यूरोपीय देशों को रोक दी थी। तब उसका अमेरिका के साथ 650 अरब डालर, जबकि यूरोपीय संघ के साथ 550 अरब डालर से अधिक सालाना व्यापार होता था। तब चीन से सैकड़ों फैक्टियां भी दूसरे देशों में शिफ्ट हुई थीं। इन सबका सबसे अधिक फायदा भारत को मिला है। वहीं दक्षिण चीन सागर और ताइवान को लेकर भी चीन का रुख इन दिनों आक्रामक है। यदि चीन ताइवान पर हमला करता है तो ग्लोबल सप्लाई चेन फिर से दबाव में आएगी, जिसका सीधा आर्थिक असर अमेरिका और यूरोपीय देशों पर पड़ेगा। ऐसे में उनको भारत की जरूरत और भी बढ़ जाएगी।

अमेरिका जानता है कि केवल दक्षिण एशिया में ही नहीं, बल्कि बाजार और व्यापार के साथ-साथ वैश्विक पटल पर भी भारत की पकड़ मजबूत है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी भी कह चुके हैं कि भारत के पास आज पूरी दुनिया को खाद्य सामग्री उपलब्ध करा सकने की क्षमता है। जिस तरह का माहौल बना है उसे देखते हुए लगता है कि भारत से गेहूं का निर्यात रिकार्ड बढ़ सकता है, जो वर्तमान में सालाना 20 करोड़ टन का है। मौजूदा वैश्विक परिदृश्य में अमेरिका भारत से अपने संबंधों को लेकर कोई सौदेबाजी करने की स्थिति में नहीं है। इसकी एक झलक गत दिनों मोदी-बाइडन की वचरुअल वार्ता में भी दिखी। दुनिया के दो सबसे बड़े लोकतंत्र के रूप में भारत और अमेरिका एक-दूसरे के स्वाभाविक सहयोगी हैं। दोनों देशों के रिश्तों में आज जो गति आई है उसकी कुछ दशक पहले कल्पना भी नहीं की जा सकती थी। बीते दिनों दोनों देशों के बीच टू प्लस टू वार्ता भी संबंधों की प्रगाढ़ता का ही परिचायक है। गौरतलब है कि अमेरिका और भारत के बीच मंत्री स्तरीय वार्ता का यह सिलसिला सितंबर 2018 से शुरू हुआ था। इसी को टू प्लस टू डायलाग भी कहा जाता है। मौजूदा समय में अमेरिका के लिए भारत के साथ मजबूत संबंध रखना एक जरूरत भी है। इसका मुख्य कारण अमेरिका और चीन के बीच बढ़ी दूरी और पाकिस्तान पर अमेरिका का लगातार घटता विश्वास है। वैसे भी अमेरिका भारत को दक्षिण एशिया के लिए शांति का दूत मानता है।

वहीं रूस-यूक्रेन युद्ध के मामले में भारत एक तटस्थ देश की भूमिका में है और अपनी कूटनीति में संतुलन बनाए हुए है। यह काबिल-ए-तारीफ है। भारत जहां रूस और यूक्रेन के राष्ट्रपतियों से शांति की अपील कर चुका है, वहीं यूक्रेन को तमाम राहत सामग्री पहुंचाने के मामले में भी पीछे नहीं रहा है। अमेरिकी राष्ट्रपति इसके लिए भारत की प्रशंसा कर चुके हैं। 24 फरवरी से शुरू रूस-यूक्रेन युद्ध को रोकने के लिए अमेरिका समेत दुनिया के कई देश भारत की तरफ टकटकी लगाकर देख रहे हैं। भारत अपने स्तर प्रयास भी कर रहा है। उम्मीद है जल्द इसके नतीजे सामने आएंगे।

स्पष्ट है कि जब विश्व में किसी प्रकार की उथल-पुथल होती है तो दुनिया का शायद ही कोई देश हो जो प्रभावित न होता हो। इसका एक प्रमुख कारण खुली विदेश नीति है। भारत की विदेश नीति दशकों से इसी प्रारूप की है। इसीलिए कई मामलों में भारत ने अमेरिकी दबाव को नकारा है। कहा जा रहा था कि बदले परिप्रेक्ष्य में अमेरिका भारत पर दबाव बनाएगा कि वह रूस से तेल का आयात न करे और ऐसा हुआ भी, मगर प्रधानमंत्री मोदी ने जो बाइडन के साथ बातचीत में अपना पक्ष स्पष्ट कर दिया। जाहिर है अमेरिका भी जानता है कि भारत एक ताकत है, शांति का द्योतक है और रूस के साथ भारत के गहरे संबंध हैं।

भारत-अमेरिका अगर रणनीतिक साङोदार हैं तो भारत-रूस नैसर्गिक मित्र हैं। अप्रैल 2020 से मार्च 2021 तक भारत और रूस के बीच आठ बिलियन डालर से अधिक का व्यापार हुआ था। वर्तमान में भारत से रूस को निर्यात का आंकड़ा तेजी से बढ़ सकता है। भले ही अमेरिका और रूस में तनातनी हो, मगर रूस-यूक्रेन युद्ध से भारतीय उत्पादों की मांग रूस में बढ़ी है, जो हमारे लिए निर्यात बढ़ाने का एक बड़ा अवसर है। भारत रूस और यूक्रेन के बीच शांति का पक्षधर है। और कई बार इसे लेकर कड़े शब्दों का इस्तेमाल कर चुका है, मगर सीधे तौर पर उसने कभी रूस की आलोचना नहीं की है। इसके अलावा संयुक्त राष्ट्र महासभा हो या मानवाधिकार परिषद में वोटिंग का मामला, भारत ने इससे अपने को अलग रखा है। पहले कोरोना और अब रूस-यूक्रेन युद्ध के चलते बदलती दुनिया में कूटनीति भी करवट ले रही है। कुल मिलाकर बदलती दुनिया में कूटनीति करवट ले रही है। इसमें भारत सबसे सफल खिलाड़ी के रूप में उभरा है।

[निदेशक, वाईएस रिसर्च फाउंडेशन आफ पालिसी एंड एडमिनिस्ट्रेशन]