स्वाभिमान जगाने वाली विरासत, भूक्षेत्रों के स्वामित्व बदला करते हैं, पर विरासत नहीं
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अंतरराष्ट्रीय संग्रहालय दिवस के अवसर पर उचित ही कहा कि संग्रहालय से हमें अतीत से जुड़ने की प्रेरणा मिलती है और भविष्य के प्रति कर्तव्य बोध जाग्रत होता है। सैकड़ों वर्षों की गुलामी में देश की तमाम धरोहरें खो गईं।
हृदयनारायण दीक्षित : भारत प्राचीन राष्ट्र है। यह करीब डेढ़ अरब लोगों का जोड़ या इतिहास और भूगोल का अंग ही नहीं है। मात्र एक देश भी नहीं है। यह एक वृहत्तर सांस्कृतिक अनुभूति है। भारतीय संस्कृति अति प्राचीन है। वैदिक काल और उसके पूर्व से ही यहां सांस्कृतिक परंपरा का प्रवाह है। जानना, सुनना, सुने गए को स्मृति में संरक्षित करना और सुनाना उपनिषदों में व्रत कहा गया है। श्रुति और वेद पर्यायवाची हैं। शब्द और रूप ज्ञान का संरक्षण स्मृति है। सत्य और सुंदर को पुनर्सृजित करना संस्कृति है। भारतीय संस्कृति में निरंतरता है। स्थापत्य सहित तमाम प्रतीक एवं स्मारक समृद्ध विरासत की धरोहर हैं। सभी देश अपनी प्राचीन धरोहरों का संरक्षण और संवर्द्धन करते हैं।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अंतरराष्ट्रीय संग्रहालय दिवस के अवसर पर उचित ही कहा कि संग्रहालय से हमें अतीत से जुड़ने की प्रेरणा मिलती है और भविष्य के प्रति कर्तव्य बोध जाग्रत होता है। सैकड़ों वर्षों की गुलामी में देश की तमाम धरोहरें खो गईं। मूल्यवान पांडुलिपियों और पुस्तकालयों को जला दिया गया। अनेक कलाकृतियां अनैतिक तरीके से देश से बाहर ले जाई गईं। भारत की बढ़ती प्रतिष्ठा के कारण अनेक देशों ने इन धरोहरों को वापस करना शुरू किया है। स्वतंत्रता के बाद के कई दशकों में बीस से भी कम कलाकृतियां भारत आईं, लेकिन पिछले नौ वर्ष में लगभग 240 कलाकृतियां वापस लाई गई हैं।
सांस्कृतिक धरोहरों और स्मारकों का संरक्षण राष्ट्रीय कर्तव्य है। संविधान के अनुच्छेद 49 में उल्लिखित है, ‘संसद द्वारा बनाई गई विधि द्वारा या उसके अधीन राष्ट्रीय महत्व वाले, घोषित किए गए कलात्मक या ऐतिहासिक अभिरुचि वाले प्रत्येक स्मारक, स्थान या वस्तु का विरूपण, विनाश और व्ययन से संरक्षण राज्य की बाध्यता होगी।’ बावजूद इसके पूर्ववर्ती सरकारों के समय अनेक स्मारक गायब हो गए थे। 2009 में लापता स्मारकों की संख्या 35 थी।
भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण एजेंसी यानी एएसआइ के अनुसार 2018 तक 14 स्मारक नगरीकरण का शिकार हुए थे। 24 स्मारकों की जानकारी ही नहीं थी। इसी बीच संस्कृति मंत्रालय से जुड़ी सिंधु सभ्यता की अध्ययन समिति ने हरियाणा के भिराना और राखीगढ़ी की खोदाई के अध्ययन को महत्व दिया। कार्बन डेटिंग के अनुसार ईसा पूर्व 7000-6000 वर्ष पुरानी सभ्यता का अनुमान किया गया था। समिति ने 9000 वर्ष पीछे की अवधि को वैदिक काल की सभ्यता से जोड़कर अध्ययन करने पर बल दिया था। एएसआइ समिति के अध्यक्ष केएन दीक्षित ने कहा था कि कार्बन डेटिंग के निष्कर्ष को ऋग्वेद, रामायण और महाभारत के समय से जोड़कर समझा जाना चाहिए।
साहित्यिक साक्ष्यों से भी धरोहरों की प्राचीनता तय की जा सकती है। भारत को कई संस्कृतियों का देश बताने वाले कथित विद्वान हड़प्पा सभ्यता को वैदिक सभ्यता से प्राचीन बताते हैं। वे सुमेरी सभ्यता को हड़प्पा से प्राचीन बताते हैं। वे वैदिक शब्द साक्ष्यों पर ध्यान नहीं देते। ऋग्वेद में सरस्वती नदी जल भरी है। ये तथ्य हड़प्पा से प्राचीन हैं। भारत सुमेर और मिस्र के संबंधों को ऋग्वेद के आलोक में देखा जाना चाहिए। कुछ इतिहास विवेचक ऋग्वेद को साक्ष्य नहीं मानते। उनके दृष्टिकोण में पुरातत्व का अर्थ स्थापत्य वस्तुएं ही हैं। स्थापत्य ही प्राचीनता का साक्ष्य नहीं होता। यह प्राचीनता शब्द में भी हो सकती है और शिल्प या स्थापत्य में भी। यूनेस्को ने ऋग्वेद को विश्व धरोहर घोषित किया था, क्योंकि यह मानवता का प्राचीनतम शब्द साक्ष्य है। भारत विश्व धरोहर संपदा में प्रतिष्ठित राष्ट्र है। यहां विश्व धरोहरों की सूची में 35 से ज्यादा स्थल हैं। कुंभ को भी यूनेस्को ने इस सूची में सम्मिलित किया है। भारत अन्य तमाम स्थलों को विश्व धरोहर सूची में सम्मिलित कराने के लिए प्रयासरत है।
इस्लामी हमले के पूर्व भारत में लाखों मंदिर थे। मोहम्मद बिन कासिम के हमले से लेकर औरंगजेब तक मंदिर ध्वंस का कलंकित इतिहास है। अनेक मंदिरों को तोड़कर उसी सामग्री से मस्जिदें बनाई गई थीं। आहत हिंदुओं ने इसी विरासत के लिए संघर्ष किया। सोमनाथ का ध्वंस और पुनर्निर्माण जगजाहिर है। अयोध्या के श्रीराम जन्मभूमि मंदिर को लेकर ऐतिहासिक आंदोलन हुए। मंदिर निर्माणाधीन है। ज्ञानवापी का मामला न्यायिक विचारण में है। श्रीकृष्ण जन्मभूमि को लेकर भी मुकदमा है। दिल्ली में कई मंदिरों को तोड़कर उसी की सामग्री से बनाई गई मस्जिद ‘कुवत-उल-इस्लाम’ भारतीय स्वाभिमान को चुनौती है। जौनपुर की अटाला मस्जिद अटाला देवी मंदिर पर बनाई गई बताई जाती है। बंगाल के पंडुआ में मंदिर की जगह मस्जिद है।
भारतीय राष्ट्र सांस्कृतिक अवधारणा है। संस्कृति की अभिव्यक्ति स्थापत्य कला और अन्य प्रतीकों के माध्यम से भी होती है। ऐसी सभी धरोहरें भारत के मन को राष्ट्रीय स्वाभिमान से भरती हैं। उनसे हम अपने पराक्रमी अतीत से जुड़ते हैं। अतीत से वर्तमान तक भारत में एक समान दार्शनिक सांस्कृतिक निरंतरता है, पर कथित उदारवादियों ने इसे मिलीजुली संस्कृति या कंपोजिट कल्चर बताया। उच्चतम न्यायलय ने 1994 के वाद में कहा, ‘इस देश के लोगों में अनेक भिन्नताएं हैं। वे इस पर गर्व करते हैं कि वे एक सामान्य विरासत के सहभागी हैं। वह विरासत और कुछ नहीं संस्कृत की विरासत है।’
भारतीय संस्कृति के तमाम केंद्र विभाजन के बाद पाकिस्तान में हैं। भूक्षेत्रों के स्वामित्व बदला करते हैं, पर विरासत नहीं। विभाजन के बाद पाकिस्तान में प्राचीन भारतीय परंपरा से मुक्ति का अभियान चला। ब्रिटिश पुरातत्व विद्वान व्हीलर ने पाकिस्तान को पृथक इतिहास सामग्री देने की कोशिश की। 1949 में ‘पाकिस्तान क्वार्टरली’ में ‘पाकिस्तान 4000 वर्ष पहले’ शीर्षक से उनका लेख छपा था। तब पाकिस्तान की उम्र दो साल थी। व्हीलर का इरादा पाकिस्तान को भारतीय विरासत से मुक्त करना था। पाकिस्तान और उसके समर्थक विद्वानों की नहीं चली। पाकिस्तान की अपनी कोई विरासत नहीं। भारत और भारतीय संस्कृति की धरोहरों की ओर सारी दुनिया टकटकी लगाए देख रही है। भारत स्वयं ही विश्वप्रतिष्ठित अंतरराष्ट्रीय धरोहर है।
(लेखक उत्तर प्रदेश विधानसभा के पूर्व अध्यक्ष हैं)