डा. सुरजीत सिंह : नई दिल्ली घोषणा पत्र में समस्त 83 बिंदुओं पर जी-20 के सभी देशों की सहमति बनना भारत के लिए विलक्षण उपलब्धि है। यह भारत की सफल कूटनीति एवं सकारात्मक विदेश नीति का ही परिणाम है कि रूस-यूक्रेन युद्ध के बीच भी विश्व की बड़ी शक्तियां विभिन्न मुद्दों पर एकमत हैं। इससे भी अधिक महत्वपूर्ण वह आर्थिक दृष्टिकोण है, जिसे इस सम्मेलन में हासिल किया गया है। यदि इन लक्ष्यों को हासिल कर लिया जाता है तो इसमें कोई संदेह नहीं कि अल्पविकसित और विकासशील देशों के नेतृत्वकर्ता के रूप में भारत स्वयं को स्थापित कर लेगा।

पश्चिम एशिया के रास्ते भारत से यूरोप तक बनाया जाने वाला आर्थिक गलियारा जी-20 सम्मेलन की एक महत्वपूर्ण आर्थिक उपलब्धि है। इस गेम चेंजर यानी बाजी पलटने वाले आर्थिक गलियारे के निर्माण में भारत, अमेरिका, संयुक्त अरब अमीरात, सऊदी अरब, इजरायल, यूरोपीय संघ, फ्रांस, इटली, जर्मनी आदि देश भागीदारी करेंगे। इससे विभिन्न देशों के न सिर्फ बुनियादी ढांचे में निवेश के लिए साझेदारी को प्रोत्साहन मिलेगा, बल्कि सतत विकास को नई दिशा भी मिलेगी, क्योंकि गलियारे में सम्मिलित देशों के बीच केबल बिछाकर डाटा हस्तांतरण, रेलवे लाइन, बंदरगाह, विद्युत एवं हाइड्रोजन पाइप लाइन आदि के द्वारा दूरियां कम की जाएंगी।

एक अनुमान के अनुसार इस आर्थिक गलियारे से भारत एवं यूरोप के बीच लगभग 40 प्रतिशत तक व्यापार को बढ़ावा मिलेगा। व्यापार को बढ़ावा मिलने के साथ-साथ इस गलियारे के बनने से स्वेज नहर से होने वाले व्यापार पर निर्भरता कम होगी। अभी तक भारत एवं यूरोप के बीच होने वाला व्यापार लाल सागर, स्वेज नहर और भूमध्य सागर के मार्ग से होता है।

चीन के बढ़ते प्रभाव को कम करने एवं मध्य एशियाई देशों के साथ अपने संबंधों को सुधारने के लिए अमेरिका इस परियोजना में भारी-भरकम निवेश के लिए तैयार है। रूस एवं यूक्रेन पर अपनी निर्भरता को कम करने एवं कुशल श्रमशक्ति के लिए बूढ़े होते यूरोप के लिए भारत से व्यापार एक जरूरत बनती जा रही है। वैश्विक स्तर पर पर्यावरण के प्रति बढ़ती चिंता के कारण मध्य एशिया के देश भी तेल एवं गैस के अतिरिक्त अर्थव्यवस्था के अन्य क्षेत्रों के विकास पर गंभीरता से विचार करने लगे हैं।

यह गलियारा चीन की बेल्ट एंड रोड योजना को भी एक बड़ी चुनौती पेश करता है। इस योजना के अंतर्गत चीन अत्यधिक कर्ज देकर उन देशों का शोषण करता है। इसके विपरीत भारत का दृष्टिकोण सभी देशों के साथ समन्वय और सहयोग को बढ़ाकर व्यापार बढ़ाना है। मध्य एशिया के विभिन्न देशों में रेलवे की कनेक्टिविटी को बढ़ाकर भारत अपने अनुभवों एवं निवेश द्वारा विकास की एक नई कहानी भी लिख सकता है।

पचपन सदस्यों वाले अफ्रीकी संघ को जी-20 में शामिल कराने के प्रयास भी भारत के आर्थिक विकास को नया आयाम दे सकते हैं। वर्तमान में एक अरब से अधिक की आबादी वाला अफ्रीकी महाद्वीप एक ट्रिलियन डालर की अर्थव्यवस्था वाली ताकत बन चुका है। इस बाजार का अनुकूलतम उपयोग करने के लिए भारत को पारदर्शी आर्थिक सहयोग योजनाएं पेश करनी चाहिए। प्रधानमंत्री मोदी पिछले कुछ वर्षों में अफ्रीका के नौ देशों की यात्रा कर चुके हैं, जिससे व्यापार का एक अनुकूल माहौल भी बना है। चीन की कर्ज देकर शोषण करने की चाल को अफ्रीका के देश अच्छी तरह समझ चुके हैं। इसका लाभ लेने के लिए भारत को स्वयं को तैयार करने की आवश्यकता है। भारत यदि इसमें सफल रहता है तो वैश्विक आर्थिक एवं कूटनीतिक नीतियों को नया विस्तार मिलेगा।

विश्व को जलवायु परिवर्तन के दुष्प्रभावों से बचाने के लिए भारत ने वैश्विक जैव ईंधन गठबंधन की शुरुआत करते हुए सभी देशों को इससे जुड़ने का आह्वान किया है। इस मुहिम में भारत के साथ अमेरिका, अर्जेंटीना, ब्राजील, बांग्लादेश, इटली, दक्षिण अफ्रीका, मारीशस, यूएई आदि देश शामिल हैं। इसका उद्देश्य हरित ईंधन के इस्तेमाल को बढ़ावा देना है। इसके अंतर्गत पेट्रोल में एथेनाल का मिश्रण किया जाना है। अभी यह करीब 10 प्रतिशत ही है। 2025 तक इसे 20 प्रतिशत करने का लक्ष्य है। भविष्य में एथेनाल के हिस्से को बढ़ाकर 85 प्रतिशत तक करने पर शोध हो रहे हैं, जिससे पेट्रोल का प्रयोग 15 प्रतिशत ही रह जाएगा। इससे न केवल जीवाश्म ईंधन से छुटकारा मिलेगा, बल्कि कार्बन उत्सर्जन घटाने में भी मदद मिलेगी। भारत के डिजिटल पब्लिक इन्फ्रास्ट्रक्चर को वैश्विक स्तर पर लागू करने के लिए जी-20 के देशों के सहमत होने से विश्व में भारत का कद ऊंचा हुआ है।

जी-20 सम्मेलन में निर्धारित लक्ष्यों को हासिल करने के लिए सरकार को विनिर्माण क्षेत्र को प्रोत्साहन देकर चुनौतियों से उबारना होगा, जिससे भारत के आंतरिक बाजार को अंतरराष्ट्रीय बाजार से जोड़ने की दिशा में कार्य तेजी से हो सके। इसके लिए इन उद्योगों में आधुनिक तकनीक, डिजिटलीकरण और उद्योगों के प्रतिस्पर्धी व्यवहार के साथ उत्पादों की मूल रचनात्मकता को बढ़ावा देना होगा।

उद्योगों को अपनी दक्षता, औद्योगिक विशेषज्ञता और गुणवत्ता में सुधार कर उत्पादकता में वृद्धि करनी होगी। आटोमोबाइल, इंजीनियरिंग, रसायन, फार्मा, विमानन, जैव प्रौद्योगिकी, सीमेंट, ई-कामर्स, रत्न और आभूषण, सेवाएं, स्टील आदि उद्योग थोड़े से प्रोत्साहन के साथ वैश्विक आपूर्ति शृंखलाओं में एक महत्वपूर्ण खिलाड़ी बन सकते हैं। इससे न केवल आर्थिक विकास, बल्कि रोजगार सृजन भी बढ़ेगा। स्पष्ट है कि जी-20 अध्यक्षता 21वीं सदी भारत के नाम लिखने का एक सुनहरा अवसर बना। इस अवसर को भुनाने के लिए नई दिल्ली घोषणा पत्र पर अमल आवश्यक है। यह अच्छा है कि भारत ने इसके लिए नवंबर में जी-20 की एक वर्चुअल बैठक प्रस्तावित की है।

(लेखक अर्थशास्त्री हैं)