जानें डॉ. आंबेडकर को क्यों थी यह शंका कि भारत आजादी को बरकरार रख सकेगा या खो देगा...
डॉ. भीमराव आंबेडकर ने कहा था... मेरे मन में यह शंका उत्पन्न होती है कि क्या भारत अपनी आजादी बरकरार रख सकेगा या इसे फिर खो देगा...? जानें उन्होंने ऐसा क्यों कहा था।
डॉ. अनिल जैन। संविधान सभा में बाबा साहब डॉ. भीमराव आंबेडकर ने प्रारूप सममति के अध्यक्ष का महत्वपूर्ण दायित्व संभाला था। वह पंडित नेहरू की अंतरिम सरकार में कानून मंत्री भी रहे। संविधान 26 नवंबर, 1949 को बनकर तैयार हुआ लेकिन 26 जनवरी 1950 को लागू हुआ। इसके बाद संविधान सभा अस्थाई लोकसभा के रूप में काम करने लगी। संविधान को अंतिम रूप देने के पहले दिन डॉ. आंबेडकर समेत कई नेताओं ने संविधान सभा में वक्तव्य दिया। डॉ. आंबेडकर ने संविधान सभा में जो वक्तव्य दिया उससे वह एक समाज सुधारक, विधिवेत्ता, दार्शनिक, चिंतक, विचारक, समाजशास्त्री, अर्थशास्त्री और दृष्टा के रूप में एक साथ हमारे सामने आते हैं।
...तो बुरा साबित हो सकता है संविधान
यह वक्तव्य आज भी काफी प्रासंगिक है और जब तक सामाजिक, आर्थिक स्वतंत्रता, समानता हर स्तर पर स्थापित नहीं हो जाती तब तक प्रासंगिक रहेगा। डॉ. आंबेडकर ने अपने वक्तव्य में कहा था कि ‘मैं समझता हूं कि संविधान चाहे जितना भी अच्छा हो, वह बुरा साबित हो सकता है यदि उसका अनुशरण करने वाले लोग बुरे हों। यही नहीं एक संविधान चाहे जितना भी बुरा हो वह अच्छा साबित हो सकता है, यदि उसका पालन करने वाले लोग अच्छे हों।’ इन पंक्तियों में वह कहना चाहते थे कि संविधान का प्रयोग जनहित में विवेकपूर्ण तरीके से होना चाहिए। राजनीतिक सत्ता द्वारा संविधान की अवहेलना का भय डॉ. आंबेडकर को था जिसका जिक्र उन्होंने अपने भाषण में किया था।
सेनापति ने ले ली घूस इसलिए हार गए थे राजा दाहिर
डॉ. आंबेडकर ने सतर्क करते हुए कहा था कि ‘मेरे मन में यह शंका उत्पन्न होती है कि क्या भारत अपनी आजादी बरकरार रख सकेगा या इसे फिर खो देगा...?’ भारत हमेशा से एक गुलाम देश नहीं रहा है। हमने अपनी गलतियों के कारण गुलामी को झेला है। भारत के गुलाम होने के कारणों पर डॉ. आंबेडकर कहते हैं कि जब मोहम्मद-बिन-कासिम द्वारा सिंध पर आक्रमण किया गया तब राजा दाहिर के सेनापति ने रिश्वत लेकर राजा के पक्ष में लड़ने से इनकार कर दिया था। जब अंग्रेज आए तब भी भारतीय शासक मूकदर्शक बने हुए थे। ऐसे में यह संविधान भारत की आजादी को कब तक संभाल पायेगा, यह संविधान चलाने वालों पर निर्भर करेगा।
प्राचीन काल से ही लोकतांत्रिक देश रहा है भारत
डॉ. आंबेडकर उन विषमताओं से भयभीत थे जिनकी वजह से देश में एकता नहीं थी। उनका स्पष्ट विचार था कि आपसी सदभाव और परस्पर बंधुता ही भारत की संप्रभुता को अक्षुण बनाये रख सकती है। अपने ऐतिहासिक संबोधन में उन्होंने लोकतंत्र पर विशेष चर्चा की थी। डॉ. आंबेडकर का मानना था कि भारत में लोकतंत्र और लोकतांत्रिक संस्थाओं की एक लंबी परंपरा रही है। डॉ. आंबेडकर ने अपने संबोधन में इस बात पर विशेष बल दिया कि प्राचीन काल से ही भारत एक लोकतांत्रिक देश रहा है। प्राचीन समय में भारत में कई गणतंत्र थे जहां राजसत्ताएं थीं, वहां भी या निर्वाचित थीं या सीमित थीं। यह बात नहीं है कि भारत सभा या संसदीय क्रियाविधि से परिचित नहीं था। बौद्ध भिक्षुसंघों के अध्ययन से यह पता चलता है कि न केवल संसदें (संघ, संसद ही थे) थीं बल्कि संघ संसदीय प्रकिया के उन सभी नियमों को जानते थे और उनका पालन करते थे... जो आधुनिक युग में सर्वविदित है।
तीन तरह का लोकतंत्र
बाबा साहब डॉ. भीमराव आंबेडकर ने तीन तरह के लोकतंत्र की बात कही थी... राजनीतिक लोकतंत्र, सामाजिक लोकतंत्र और आर्थिक लोकतंत्र... उनका कहना था कि हमने एक लंबे संघर्ष के बाद राजनीतिक लोकतंत्र हासिल किया है लेकिन क्या सामाजिक एवं आर्थिक लोकतंत्र के बिना क्या राजनीतिक लोकतंत्र जीवित रह पायेगा...? उन्होंने कहा था कि हमको केवल राजनीतिक लोकतंत्र पर ही संतोष नहीं करना है। हमें राजनीतिक लोकतंत्र को सामाजिक लोकतंत्र में बदलना है। सामाजिक लोकतंत्र का अर्थ एक ऐसी जीवन पद्धति से है जो स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व को जीवन के सिद्धांतों के रूप में स्वीकार करती है।
शोषित लोग उठ खड़े होंगे तो होगी मुश्किल
डॉ. आंबेडकर ने कहा था कि 26 जनवरी 1950 को हम एक विरोधाभासी जीवन में प्रवेश करेंगे। राजनीति में हमने एक व्यक्ति, एक वोट और उसकी कीमत को मान्यता दी है। उन्होंने कहा था कि 26 जनवरी, 1950 को हम एक विरोधाभासी जीवन में प्रवेश करेंगे। हमारे सामाजिक और आर्थिक जीवन में सामाजिक एवं आर्थिक संरचना के कारण हमने प्रत्येक व्यक्ति के एक समान महत्व को स्वीकार नहीं किया है। कब तक हम ऐसा विरोधाभास जारी रखेंगे...? कब तक हम अपने सामाजिक एवं आर्थिक जीवन में समानता को अस्वीकार करते रहेंगे..? यदि हम लंबे समय तक इसे अस्वीकार करते रहे तो अपने राजनीतिक लोकतंत्र को ही कमजोर करते जाएंगे। हमको शीघ्र इस विरोधाभास को दूर करना होगा अन्यथा असमानता के शिकार लोग उठ खड़े होंगे और राजनीतिक लोकतंत्र के ढांचे को गिरा देंगे जिसको संविधान सभा ने बड़े परिश्रम से खड़ा किया है।
...तो आर्थिक लोकतंत्र कैसे सुनिश्चित होगा
डॉ. आंबेडकर ने जो सवाल उठाए हैं वे आज भी प्रासंगिक हैं। हमने राजनीतिक लोकतंत्र को सुनिश्चित करने में सफलता पाई है। आज हर व्यक्ति अपने मताधिकार का इस्तेमाल कर रहा है। सवाल यह है कि सामाजिक लोकतंत्र जिसमें समानता, स्वतंत्रता और बंधुत्व के सिद्धांत निहित होने की जो बात आंबेडकर ने कही है उसको हम कहां तक सुनिश्चित कर पाए हैं। यदि अपेक्षित सफलता नहीं मिल पाई है तो बाधाएं कहां हैं। बाधाओं को आपसी सहमति और दलगत राजनीति से ऊपर उठकर कैसे दूर किया जा सकता है। साथ ही हमें यह भी विचार करना चाहिए कि 21वीं सदी में जब उत्पादन के साधन बदलते जा रहे हैं और पूजींवाद को अंतिम सच्चाई मान लिया गया है तो आर्थिक लोकतंत्र कैसे सुनिश्चित होगा।
कैसे हो समावेशी विकास
पूंजीवाद का मानवीय स्वरूप कैसे बने और समावेशी विकास कैसे हो जिससे आर्थिक लोकतंत्र की स्थापना हो सके। राजनीतिक लोकतंत्र के साथ-साथ आर्थिक और सामाजिक लोकतंत्र को स्थापित करने में यदि हम सफल होते हैं तो भारत को सिरमौर बनने से कोई भी नहीं रोक सकता है। डॉ. आंबेडकर भी इसी ओर इशारा करते नजर आ रहे हैं। साल 2014 में जब नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भाजपा की सरकार बनी तो इसने भी डॉ. आंबेडकर के उक्त वक्तव्यों के उद्देश्यों को पूरा करने को अपनी जिम्मेदारी माना। प्रधानमंत्री मोदी ने न केवल राजनीतिक लोकतंत्र बल्कि सामाजिक और आर्थिक लोकतंत्र को मजबूत करने की दिशा में कई कार्य किए। सरकार ने पिछड़ा आयोग को सांविधानिक दर्जा दिया और दलित समुदाय पर अत्याचार के खिलाफ कानून को मजबूत बनाने का कार्य किया।
सामाजिक लोकतंत्र को मिला बल
इन दोनों कार्यों से सामाजिक लोकतंत्र को बल मिला है। मोदी सरकार द्वारा शुरू की गई आयुष्मान भारत, उज्जवला, जनधन, मुद्रा, स्टार्टअप, प्रधानमंत्री आवास आदि योजनाएं डॉ. आंबेडकर और संविधान के सामाजिक आर्थिक उद्देश्यों को ही पूरा करती हैं। मुद्रा और स्टैंडअप योजना के माध्यम से बड़ी संख्या में अनुसूचित जाति/जनजाति के लोगों ने व्यापार करने के लिए आर्थिक सहयोग प्राप्त किया है। उज्ज्वला योजना का बड़ा लाभ गरीबी रेखा से नीचे रह रही महिलाओं को मिला है। इसी तरह आयुष्मान भारत योजना का लाभ भारत के लगभग 50 करोड़ लोगों तक पहुंचा है। इसमें बड़ी संख्या अनुसूचित और पिछली जाति के लोगों की है।
भ्रष्टाचार का शिकार कमजोर वर्ग
कभी भी भ्रष्टाचार का सबसे शिकार समाज का सबसे कमजोर तबका ही होता था। मौजूदा सरकार ने जन-धन खाते खोलकर और सरकारी योजनाओं का लाभ सीधे लाभार्थी के खाते में भेजकर सामाजिक और आर्थिक न्याय की दिशा में बड़ा काम किया है। भीम एप के जरिए डिजिटल लेन-देन को बढ़ावा देने का फैसला डॉ. आंबेडकर को सच्ची श्रद्धांजलि है। सबका साथ सबका विकास के नारे के साथ बनी मोदी सरकार डॉ. आंबेडकर के सामाजिक आर्थिक लोकतंत्र के लक्ष्य को पूरा करने के लिए हर संभव प्रयास कर रही है।
(लेखक राज्यसभा सांसद और भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव हैं)