बृज लाल : स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर लाल किले की प्राचीर से प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने एक बार फिर कहा कि भ्रष्टाचार, परिवारवाद और तुष्टीकरण जैसी कुरीतियां देश को खोखला कर रही हैं। भारत को विकसित राष्ट्र बनाना है तो इन बुराइयों को जड़ से उखाड़ना ही होगा।

देखा जाए तो देश की सारी समस्याओं की जड़ भ्रष्टाचार है। अच्छी बात है कि भ्रष्टाचार के प्रति जीरो टालरेंस की नीति अपनाते हुए मोदी सरकार हर उस व्यक्ति और संस्था के खिलाफ कार्रवाई कर रही है, जो भ्रष्टाचार के दीमक से देश को खोखला करने में जुटे हैं। मोदी सरकार ‘भ्रष्टाचार मुक्त भारत’ बनाने के लिए न सिर्फ भ्रष्ट राजनेताओं पर शिकंजा कस रही है, बल्कि अन्य रिश्वतखोर अधिकारियों के खिलाफ भी लगातार कार्रवाई कर रही है। सरकार ने लोकतंत्र और न्याय के रास्ते में रोड़ा बने ऐसे कई भ्रष्ट अफसरों को जबरन रिटायरमेंट देकर नौकरी से बेदखल तो किया ही है, साथ की कई भ्रष्ट आइएएस और आइपीएस अफसरों तक को जेल में पहुंचाया है।

कांग्रेस की अगुआई वाली पिछली यूपीए सरकार में कई घोटाले हुए। उनमें से एक कोयला ब्लाक आवंटन घोटाला भी था। मोदी सरकार के कार्यकाल में कार्रवाई की स्वतंत्रता मिली तो सीबीआइ ने कोयला घोटाले की पड़ताल की और दिल्ली की एक अदालत ने पूर्व कोयला सचिव एचसी गुप्ता समेत तीन अधिकारियों को तीन साल की सजा सुनाई। अदालत ने जिन दो अन्य अधिकारियों को सजा सुनाई, उनमें कोयला मंत्रालय के तत्कालीन संयुक्त सचिव केएस क्रोफा और तत्कालीन निदेशक केसी सामरिया शामिल हैं। अदालत ने अन्य दोषी व्यक्तियों विकास मेटल्स एंड पावर लिमिटेड (वीएमपीएल) के एमडी विकास पाटनी और इसके अधिकृत हस्ताक्षरकर्ता आनंद मलिक को चार साल की जेल की सजा सुनाई। सीबीआइ ने यूपीए-एक और यूपीए-दो के शासनकाल में कोयला ब्लाक आवंटन के 40 मामलों में अनियमितता के सिलसिले में आरोपपत्र दायर किया था।

यह तो सिर्फ एक बानगी है। पिछले नौ साल में प्रशासनिक तंत्र के भ्रष्ट तत्वों के खिलाफ कार्रवाई इसलिए अंजाम तक पहुंच पा रही है, क्योंकि खुद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की ओर से जांच एजेंसियों को ऐसे अधिकारियों के खिलाफ ग्रीन सिग्नल मिला हुआ है। पिछले दिनों प्रधानमंत्री ने केंद्रीय सतर्कता आयोग (सीवीसी) के एक कार्यक्रम में कहा था कि ‘भ्रष्टाचार और भ्रष्टाचारियों के विरुद्ध कार्रवाई करने वाले सीवीसी जैसे सभी संगठन और एजेंसियों को रक्षात्मक होने की कोई जरूरत नहीं है। अगर देश की भलाई के लिए काम करते हैं तो अपराधबोध में जीने की आवश्यकता नहीं। देश के सामान्य जन के समक्ष जो मुसीबतें आ रही हैं, उन्हें उनसे मुक्ति दिलाना ही हमारा काम है।’

मोदी सरकार भ्रष्ट अधिकारियों के खिलाफ नया आनलाइन सिस्टम भी लागू कर चुकी है। इससे भ्रष्ट नौकरशाहों के खिलाफ कार्रवाई में ज्यादा तेजी आई है। पीएम मोदी ने एक बार साफ शब्दों में कहा था कि “जो भ्रष्टाचार उन्मूलन के हमारे प्रयासों में बाधा बनते हैं, वे अपना बैग पैक कर लें, क्योंकि देश को ऐसे अफसरों की सेवाओं की आवश्यकता नहीं है।” प्रधानमंत्री का यह सोच जांच एजेंसियों के लिए भ्रष्ट अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई करने में उत्प्रेरक का काम कर रहा है। यही वजह है कि केंद्रीय जांच एजेंसियां भ्रष्टाचारियों को कहीं भी बख्श नहीं रही हैं।

यूपीए सरकार के समय सीबीआइ के हाथ किस कदर बांध दिए गए थे, इसका अंदाजा सर्वोच्च अदालत द्वारा की गई इस टिप्पणी से लगता है कि ‘सीबीआइ तो पिंजरे में बंद ऐसा तोता बन गई है, जो अपने मालिक की बोली बोलता है।’

दूसरी ओर मोदी सरकार में इससे ठीक उलट स्थिति है। मोदी सरकार के दोनों कार्यकाल के दौरान ऐसे कई उदाहरण हैं, जिनमें सीबीआइ और ईडी की टीमों ने भ्रष्ट अफसरों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की है। पहले कार्यकाल की बात करें तो फरवरी 2017 में छत्तीसगढ़ सरकार के वरिष्ठ आइएएस अधिकारी बीएल अग्रवाल को सीबीआइ ने अनुचित लाभ लेने के आरोप में गिरफ्तार किया। पिछले साल अगस्त में ईडी की टीम ने कोयला तस्करी मामले में बंगाल के आठ वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों को दिल्ली तलब किया।

इस साल मई में अवैध कोयला खनन के मामले में सीबीआइ ने सीआइएसएफ के इंस्पेक्टर रैंक के एक अधिकारी और ईस्टर्न कोलफील्ड्स लिमिटेड के एक पूर्व निदेशक (तकनीकी) को गिरफ्तार किया। ईडी की टीम ने पिछले माह ही छत्तीसगढ़ की आइएएस अधिकारी रानू साहू को मनी लांड्रिंग मामले में गिरफ्तार किया है। इस मामले में गिरफ्तार होने वाली रानू साहू राज्य की दूसरी आइएएस अधिकारी हैं।

पीएम मोदी के विजन पर चलते हुए केंद्र सरकार ‘भ्रष्टाचार मुक्त भारत’ की मुहिम के तहत नेताओं, नौकरशाहों और दलालों की भ्रष्ट तिकड़ी को जेल पहुंचाने में निरंतर जुटी है। पूर्व सरकारों के दौरान बने और मजबूत हुए भ्रष्टाचारियों के इकोसिस्टम अब धराशायी हो रहे हैं। विडंबना यही है कि भ्रष्ट नेता और उनका इकोसिस्टम हमेशा यह दुष्प्रचार करने में लगे रहते हैं कि सरकार राजनीतिक लाभ के लिए ईडी और सीबीआइ का इस्तेमाल कर रही है, जबकि वास्तविकता यह है कि इन एजेंसियों के निशाने पर सिर्फ भ्रष्टाचार करने वाले हैं। केंद्रीय जांच एजेंसियों का मकसद भ्रष्टाचार के उस दीमक को खत्म करना है, जिसका उल्लेख पीएम मोदी ने लाल किले से अपने संबोधन में किया है। भ्रष्टाचार लोकतंत्र और न्याय के रास्ते में बड़ा रोड़ा तो है ही, यह गरीब से उनके हक भी छीनता है। लोकतंत्र को फलने-फूलने से रोकता है। इससे प्रतिभा तो खत्म होती ही है, भाई-भतीजावाद और परिवारवाद को भी बढ़ावा मिलता है।

(लेखक राज्यसभा सदस्य एवं उत्तर प्रदेश के पूर्व डीजीपी हैं)