उत्तर प्रदेश के हाथरस जिले में एक धार्मिक समागम में भगदड़ मचने से सौ से अधिक लोगों की मौत एक भयावह घटना है। यह घटना इसीलिए घटी, क्योंकि इस समागम में अनुमान से कहीं अधिक संख्या में लोग शामिल हुए और जब वे आयोजन के उपरांत जाने लगे तो अव्यवस्था के चलते भगदड़ मच गई और लोगों ने ही एक-दूसरे को कुचल दिया।

इस तरह की घटनाएं केवल जनहानि का कारण ही नहीं बनतीं, बल्कि देश की बदनामी भी कराती हैं। हाथरस की घटना कितनी अधिक गंभीर है, इसका अनुमान इससे लगाया जा सकता है कि प्रधानमंत्री ने लोकसभा में अपने संबोधन के बीच इस हादसे की जानकारी दी।

इससे संतुष्ट नहीं हुआ जा सकता कि उत्तर प्रदेश सरकार ने घटना की जांच के आदेश दे दिए हैं और दोषी लोगों के खिलाफ कठोर कार्रवाई करने का आश्वासन दिया है, क्योंकि आमतौर पर यही देखने में आता है कि इस तरह के मामलों में कार्रवाई के नाम पर कुछ अधिक नहीं होता।

इसी कारण रह-रहकर ऐसी घटनाएं होती रहती हैं और उनमें बड़ी संख्या में श्रद्धालु अपनी जान गंवाते हैं। इसके बावजूद कोई सबक सीखने से इन्कार किया जाता है। धार्मिक आयोजनों में अव्यवस्था और अनदेखी के चलते लोगों की जान जाने के सिलसिले पर इसलिए विराम नहीं लग पा रहा है, क्योंकि दोषी लोगों के खिलाफ कभी ऐसी कार्रवाई नहीं की जाती, जो नजीर बन सके।

हाथरस में जिन बाबा के सत्संग में श्रद्धालुओं की भारी भीड़ जुटी, वह पहले पुलिस सेवा में थे और उनके आयोजन की देख-रेख उनके अनुयायी करते हैं। यह हैरानी की बात है कि किसी ने यह देखने-समझने की कोई कोशिश नहीं की कि भारी भीड़ को संभालने की पर्याप्त व्यवस्था है या नहीं? यह मानने के अच्छे-भले कारण हैं कि इस आयोजन की अनुमति देने वाले अधिकारियों ने भी कागजी खानापूरी करके कर्तव्य की इतिश्री कर ली।

यदि ऐसा नहीं होता तो किसी ने इस पर अवश्य ध्यान दिया होता कि आयोजन स्थल के पास का गड्ढा लोगों की जान जोखिम में डाल सकता है। ऐसा लगता है कि अपने देश में धार्मिक-सामाजिक आयोजनों में कोई इसकी परवाह नहीं करता कि यदि भारी भीड़ के चलते अव्यवस्था फैल गई तो उसे कैसे संभाला जाएगा? क्या इसलिए कि प्रायः मारे जाने वाले लोग निर्धन वर्ग के होते हैं?

यह तय है कि हाथरस में इतनी अधिक संख्या में लोगों के मारे जाने पर शोक संवेदनाओं का तांता लगेगा, लेकिन क्या शोकाकुल होने वाले ऐसे कोई उपाय भी सुनिश्चित कर सकेंगे, जिससे भविष्य में देश को शर्मिंदा करने वाली ऐसी घटना न हो सके?

प्रश्न यह भी है कि आखिर धार्मिक आयोजनों में धर्म-कर्म का उपदेश देने वाले लोगों को संयम और अनुशासन की सीख क्यों नहीं दे पाते? यह प्रश्न इसलिए, क्योंकि कई बार ऐसे आयोजनों में भगदड़ का कारण लोगों का असंयमित व्यवहार भी बनता है।