आदत बनती आनलाइन खरीदारी, उपभोक्ताओं और कंपनियों के बीच समन्वय के लिए जल्द तैयार हो नई ई-कामर्स नीति
इंटरनेट एंड मोबाइल एसोसिएशन आफ इंडिया की रिपोर्ट के अनुसार भारत में एक्टिव इंटरनेट उपयोगकर्ताओं की संख्या वर्ष 2022 में करीब 75.9 करोड़ थी। यह संख्या वर्ष 2025 तक करीब 90 करोड़ होने का अनुमान है। इंटरनेट का उपयोग शहरों से ज्यादा गांवों में होने लगा है। वर्ष 2022 में भारत में 20 करोड़ से अधिक लोगों ने आनलाइन कुछ न कुछ खरीदा।
डा. जयंतीलाल भंडारी। इस समय भारत का ई-कामर्स बाजार सबसे तेज गति से बढ़ रहा है। कोई दो-ढाई दशक पहले जो ई-कामर्स उच्च वर्ग तक सीमित था, आज उससे आम आदमी भी लाभान्वित हो रहा है। आनलाइन उत्पादों के कैटलाग चेक करके मनपसंद वस्तुओं की एक क्लिक पर वापसी की सुविधा के साथ घर के दरवाजे पर डिलिवरी का चमकीला लाभप्रद बाजार ई-कामर्स की देन है।
भारत में ई-कामर्स बाजार का जो आकार वर्ष 2010 में एक अरब डालर से भी कम था, वह वर्ष 2022 में करीब 74.8 अरब डालर के स्तर पर पहुंच गया। केंद्रीय वित्त मंत्रालय के अनुसार वर्ष 2026 तक इसका आकार 163 अरब डालर तक पहुंच सकता है। इसके कारण दुनिया की दिग्गज ई-कामर्स कंपनियों के कदम भारत की ओर बढ़ रहे हैं।
इसमें कोई दो मत नहीं है कि कोरोना काल में लाकडाउन के दौरान जोर पकड़ने वाली आनलाइन खरीदारी अब देश के कोने-कोने में करोड़ों उपभोक्ताओं की आदत और व्यवहार का अभिन्न अंग बन गई है। देश में स्मार्टफोन की बढ़ती पहुंच, डाटा की कम कीमतें, आनलाइन बुनियादी ढांचे में तेज वृद्धि, लोगों की बढ़ती क्रय शक्ति, डिजिटल भुगतान की बढ़ती सुविधा, डिजिटल इंडिया, स्टार्टअप इंडिया और इनोवेशन फंड जैसे कार्यक्रमों से ई-कामर्स तेजी से बढ़ रहा है।
इंटरनेट एंड मोबाइल एसोसिएशन आफ इंडिया की रिपोर्ट के अनुसार भारत में एक्टिव इंटरनेट उपयोगकर्ताओं की संख्या वर्ष 2022 में करीब 75.9 करोड़ थी। यह संख्या वर्ष 2025 तक करीब 90 करोड़ होने का अनुमान है। इंटरनेट का उपयोग शहरों से ज्यादा गांवों में होने लगा है। वर्ष 2022 में भारत में 20 करोड़ से अधिक लोगों ने आनलाइन कुछ न कुछ खरीदा। वस्तुतः ई-कामर्स ने भारत में व्यापार और उपभोग का मिजाज बदल दिया है। मझोले एवं छोटे शहरों के उपभोक्ताओं में भी गुणवत्तापूर्ण जिंदगी जीने की महत्वाकांक्षा पैदा हुई है। इसके कारण बड़े शहरों की तुलना में उन शहरों में ई-कामर्स का आकार अधिक बढ़ा है।
ई-कामर्स से होने वाले कुल कारोबार में बड़े शहरों की हिस्सेदारी वित्त वर्ष 2022-23 में 44.3 प्रतिशत रही। मझोले शहरों में यह हिस्सेदारी 37.1 प्रतिशत तो छोटे शहरों में 18.6 प्रतिशत की रही। किराना बाजार को छोड़ दिया जाए तो अन्य प्रकार की वस्तुओं की करीब 25 प्रतिशत बिक्री अब ई-कामर्स प्लेटफार्म से होने लगी है।
जिस तरह देश में घरेलू स्तर पर ई-कामर्स तेजी से बढ़ रहा है, उसी तरह भारत का ई-कामर्स निर्यात भी तेजी से बढ़ रहा है। विदेश व्यापार महानिदेशालय (डीजीएफटी) के मुताबिक अगले छह से सात साल में भारत का ई-कामर्स निर्यात बढ़कर 200 अरब डालर तक पहुंच सकता है, जो अभी करीब महज 1.2 अरब डालर है। डीजीएफटी छोटे उद्यमियों और स्वरोजगार करने वाले युवाओं को ई-कामर्स निर्यात में मदद करता है। डाकघरों में ई-कामर्स निर्यात के लिए पार्सल विंडो अलग से बनाई गई हैं। डाकघर में ही उन्हें कस्टम क्लीयरेंस मिल जाता है।
भारत में ई-कामर्स सेक्टर में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश भी तेजी से बढ़ रहा है। पिछले पांच साल में आनलाइन खुदरा क्षेत्र में ई-कामर्स में करीब 23 अरब डालर का निवेश हुआ है। ई-कामर्स में विदेशी निवेशकों की भागीदारी बढ़ाने के लिए भारत सरकार ने ई-कामर्स में विदेशी निवेश की सीमा को 100 प्रतिशत की अनुमति दी है। ई-कामर्स वित्त पोषण, प्रौद्योगिकी और प्रशिक्षण के साधन प्रदान करके भारत में सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यमों (एमएसएमई) को सीधे लाभान्वित कर रहा है। अन्य उद्योगों पर भी इसका अनुकूल प्रभाव पड़ रहा है।
हालांकि देश में ई-कामर्स के समक्ष कई चुनौतियां भी दिखाई दे रही हैं। ऐसे में अब यह जरूरी है कि सरकार करोड़ों ई-कामर्स उपभोक्ताओं और ई-कामर्स कंपनियों और देश के उद्योग-कारोबार के बीच समन्वय स्थापित करने के मद्देनजर नई ई-कामर्स नीति तैयार करने के लिए शीघ्रतापूर्वक आगे बढ़े। नई ई-कामर्स नीति तैयार करते समय सरकार को इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि ई-कामर्स से देश की विकास आकांक्षाएं पूरी हों तथा बाजार भी विफलता एवं विसंगति से बचा रहे। इसके तहत ई-कामर्स बाजार में उपभोक्ताओं के हितों और उत्पादों की गुणवत्ता संबंधी शिकायतों के संतोषजनक समाधान के लिए भी प्रभावी पहल सुनिश्चित की जानी चाहिए।
मजबूत कानूनी ढांचे और उपभोक्ता संरक्षण उपायों को ध्यान में रखा जाना चाहिए। नई ई-कामर्स नीति के तहत ऐसी बहुराष्ट्रीय ई-कामर्स कंपनियों पर उपयुक्त नियंत्रण करना चाहिए जिन्होंने भारत को अपने उत्पादों का डंपिंग ग्राउंड बना दिया है। इसमें आनलाइन शापिंग से जुड़ी कंपनियों के बाजार और कारोबार संबंधी रणनीति भी शामिल की जानी चाहिए। देश के छोटे उद्योग-कारोबार को ई-कामर्स से जोड़ने के लिए विशेष सुविधाएं भी सुनिश्चित की जानी चाहिए। ई-कामर्स की पूरी क्षमताओं का लाभ लेने के लिए प्रत्यक्ष विदेशी निवेश से संबंधित कानून और वेंचर फंडिग से संबंधित कराधान कानून में सुधार पर भी ध्यान देना चाहिए।
उम्मीद करें कि सरकार शीघ्रतापूर्वक ऐसी नई ई-कामर्स नीति को मूर्तरूप देगी, जिससे ई-कामर्स के उपभोक्ताओं, संबंधित उद्योग-कारोबार सेक्टर एवं कंपनियों के हितों का उपयुक्त समन्वय हो सकेगा। ऐसे में जहां लक्ष्य के अनुरूप देश का ई-कामर्स बाजार वर्ष 2030 तक 350 अरब डालर की ऊंचाई को छूता हुआ दिखाई दे सकेगा। वहीं, 2034 तक भारत अमेरिका को पीछे छोड़कर दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा ई-कामर्स बाजार बन सकता है। इन सबके साथ-साथ नई ई-कामर्स नीति से देश को वर्ष 2047 तक विकसित राष्ट्र बनाने की डगर पर आगे बढ़ाया जा सकेगा।
(लेखक एक्रोपोलिस इंस्टीट्यूट आफ मैनेजमेंट स्टडीज एंड रिसर्च, इंदौर के निदेशक हैं)