संजय गुप्त। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने लाल किले की प्राचीर से लगातार 11वीं बार देश को जिस तरह संबोधित किया, उससे यह तनिक भी नहीं प्रतीत हुआ कि वह अपने इस तीसरे कार्यकाल में गठबंधन सरकार का नेतृत्व कर रहे हैं। उनके संबोधन ने यह भी बताया कि उनके लक्ष्यों में कोई बदलाव नहीं आया है। इसकी पुष्टि इससे होती है कि उन्होंने सेक्युलर सिविल कोड यानी पंथनिरपेक्ष नागरिकता संहिता बनाने की आवश्यकता पर बल दिया। उन्होंने यह भी कहा कि अनेक बार सुप्रीम कोर्ट भी नागरिक संहिता की जरूरत जता चुका है। जब वह यह कह रहे थे तब अतिथियों के बीच सुप्रीम कोर्ट के प्रधान न्यायाधीश भी उपस्थित थे। यह अच्छा हुआ कि इसी मौके पर उन्होंने न्याय में देरी पर भी अपनी चिंता व्यक्त कर दी।

भाजपा समान नागरिक संहिता की पैरवी एक लंबे समय से करती चली आ रही है। उत्तराखंड की भाजपा सरकार तो अक्टूबर से इसे लागू करने भी जा रही है। प्रधानमंत्री ने जिस तरह पंथनिरपेक्ष नागरिक संहिता और एक साथ चुनाव पर बल दिया, उससे यह भी स्पष्ट हुआ कि वह किसी राजनीतिक मजबूरी में नहीं बंधे हैं और उन्हें यह भरोसा है कि घटक दल और विशेष रूप से जनता दल-यू और तेलुगु देसम पार्टी उनके एजेंडे को बढ़ाने में सहायक होंगी। संभवतः उन्होंने समान नागरिक संहिता के स्थान पर पंथनिरपेक्ष नागरिक संहिता शब्द का प्रयोग इसीलिए किया, ताकि विपक्षी दल इस पर अनावश्यक आपत्ति न जता सकें। वह यह कहने से भी नहीं चूके कि अभी जो नागरिक संहिता है, वह सांप्रदायिक है।

प्रधानमंत्री ने शासन में सुधार लाने की बात करके यह भी जता दिया कि वह मिनिमम गवर्नमेंट, मैक्सिमम गवर्नेंस के आधार पर चलना चाह रहे हैं। विपक्षी दल भले ही मोदी सरकार की भ्रष्टाचार विरोधी नीति से असहमत हों, लेकिन प्रधानमंत्री ने यह साफ कर दिया कि भ्रष्टाचार के खिलाफ उनका अभियान पूरी दृढ़ता से जारी रहेगा। प्रधानमंत्री ने सुधार कार्यक्रमों को विकसित भारत के लिए आवश्यक बताया और सभी संस्थाओं का आह्वान किया कि वे भी सुधार की दिशा में आगे बढ़ें। उन्होंने देश की संस्थाओं को सुधार करने और उन्हें जमीन पर उतारने की बात व्यवस्था को बेहतर बनाने के लिए ही कही। उन्होंने बताया कि देश में पंचायत से लेकर राज्य स्तर पर करीब तीन लाख संस्थाएं काम कर रही हैं और यदि ये सभी संस्थाएं प्रति वर्ष दो सुधार करें तो हर साल 25-30 लाख सुधार हो सकते हैं। स्पष्ट है कि ऐसा होने से हर स्तर पर सुधार होगा और कामकाज की गुणवत्ता बढ़ेगी। इसक लाभ देश के लोगों को मिलेगा। प्रधानमंत्री ने यह भी साफ किया कि सुधार आर्थिक विकास की बुनियाद और विकास की रूपरेखा हैं।

लाल किले की प्राचीर से प्रधानमंत्री ने देश के उद्योगपतियों का आह्वान किया कि वे बेहतर गुणवत्ता के उत्पाद बनाएं। वास्तव में उत्पादों के साथ सेवाओं की भी गुणवत्ता पर ध्यान देने की जरूरत है। वर्तमान में भारतीय उत्पाद और सेवाएं मध्यम दर्जे की गुणवत्ता के लिए जानी जाती हैं और इसी कारण भारत वैश्विक बाजार में अपनी छवि का निर्माण करने में कमजोर दिखता है। प्रधानमंत्री के संबोधन से यही आभास हुआ कि वह यह समझ रहे हैं कि आने वाले समय में वही देश विश्व में अपनी बेहतर पहचान बना पाएंगे, जिनके उत्पादों और सेवाओं की गुणवत्ता अंतरराष्ट्रीय स्तर की होगी। भले ही उन्होंने चीन का नाम न लिया हो, लेकिन सब जानते हैं कि चीनी कारोबारी कम गुणवत्ता के साथ ही बेहतर गुणवत्ता के उत्पाद भी बनाते हैं और इसीलिए यूरोप, अमेरिका समेत विश्व भर में उनके उत्पादों का बोलबाला है।

भारतीय कारोबारियों के लिए यह आवश्यक हो जाता है कि वे अपने उत्पादों और सेवाओं के मानक अंतरराष्ट्रीय स्तर के बनाएं। भारतीय कारोबारियों को इसके लिए प्रेरित होना चाहिए, क्योंकि बेहतर गुणवत्ता के उत्पाद उनकी साख को ही बढ़ाने काम करेंगे। जब ऐसा होगा तो भारतीय उत्पाद विश्व बाजार में आसानी से अपनी जगह बनाने के साथ देश को आर्थिक रूप से सबल बनाने में भी सहायक होंगे। प्रधानमंत्री विकसित भारत के लक्ष्य को पाने के लिए राज्यों का सहयोग चाहते हैं, यह इससे स्पष्ट हुआ कि उन्होंने राज्य सरकारों को वैश्विक कंपनियों को निवेश के लिए आकर्षित करने को कहा। अच्छा होगा कि राज्य सरकारें इसे लेकर स्वस्थ प्रतिस्पर्द्धा करें। वे प्रधानमंत्री के इस कथन से असहमत नहीं हो सकतीं कि निवेश लाने के लिए जो कुछ आवश्यक है, वह सब अकेले केंद्र सरकार नहीं कर सकती।

अपने लंबे संबोधन में प्रधानमंत्री ने कई विषयों पर विस्तार से चर्चा की। इसी क्रम में उन्होंने कोलकाता के आरजी कर मेडिकल कालेज की प्रशिक्षु महिला डाक्टर के साथ दुष्कर्म एवं हत्या के जघन्य मामले का जिक्र किए बिना महिलाओं के खिलाफ होने वाले अपराधों की रोकथाम पर बल दिया। यह एक ऐसी जरूरत है, जिसकी पूर्ति हर हाल में की जानी चाहिए। इसके लिए यह आवश्यक है कि महिलाओं के खिलाफ अपराधों को अंजाम देने वालों के मन में भय व्याप्त हो। यह तभी हो सकता है, जब ऐसे लोगों को समय रहते सख्त सजा मिले। अभी ऐसा नहीं हो रहा है। प्रधानमंत्री ने यह सही कहा कि महिलाओं के खिलाफ अपराधों की तो खूब चर्चा होती है, लेकिन जब अपराधियों को सजा मिलती है, तो उसे महत्व नहीं दिया जाता।

प्रधानमंत्री के भाषण से यह भी स्पष्ट हुआ कि वह अपनी सरकार के भावी एजेंडे को आगे बढ़ाने के साथ देशवासियों को विकसित भारत के लक्ष्य को हासिल करने के लिए प्रेरित करना चाहते हैं। विकसित भारत के लक्ष्य को पाने के लिए यह आवश्यक है कि देशवासी भी अपने हिस्से की जिम्मेदारी का निर्वाह करें। यह अच्छा हुआ कि प्रधानमंत्री ने विपक्षी दलों की नकारात्मक राजनीति की ओर संकेत करते हुए उन्हें नसीहत दी। कहना कठिन है कि विपक्ष अपने नकारात्मक रवैये का परित्याग करने के लिए तैयार होता है या नहीं, लेकिन इतना अवश्य है कि राष्ट्रीय महत्व के मुद्दों पर पक्ष-विपक्ष को दलगत राजनीतिक हितों से ऊपर उठने की आवश्यकता है। देश को तेजी से आगे ले जाने का काम तभी आसानी से किया जा सकता है, जब दलगत राजनीतिक हितों के स्थान पर राष्ट्रीय हितों को सर्वोच्च प्राथमिकता दी जाए। अभी ऐसा नहीं है। कई विपक्षी दल अभी भी चुनावी मुद्रा में ही दिख रहे हैं।

[लेखक दैनिक जागरण के प्रधान संपादक हैं]