आर्थिक नीति का राजनीतिक संदेश, ताकि देश के विकास को गति मिले और जनता भी संतुष्ट हो
बजट की अहम कोशिश यही है कि अमृतकाल में देश के विकास को गति मिले और सामाजिक-आर्थिक खांचों में बंटी जनसंख्या भी तुष्ट हो। वैसे भी जब चुनाव सिर पर हों तो ऐसे कदम न उठाना राजनीतिक आदूरदर्शिता ही मानी जाती है।
उमेश चतुर्वेदी : गत एक फरवरी को लोकसभा में पेश आम बजट लोकलुभावन भी है और राजनीतिक भी। इस वजह से चाहकर भी विपक्ष उसकी तीखी आलोचना नहीं कर पा रहा है। सरकार विरोधी नैरेटिव रचने वाले वर्ग के तर्क भी भोथरे नजर आ रहे हैं। बजट के जरिये मोदी सरकार ने अपने पारंपरिक मतदाताओं को साथ रहने का गंभीर संदेश तो दिया ही है, तटस्थ नजर आ रहे मतदाताओं के बड़े वर्ग को भी बड़ा संकेत दिया है। संकेत यह कि मोदी सरकार को लेकर उनकी आशंकाएं निर्मूल हैं कि यह सरकार उनका ध्यान नहीं रखती।
मोदी सरकार का नारा है, ‘सबका साथ, सबका विकास और सबका विश्वास।’ राजनीतिक नारों को लेकर मान्यता रही है कि वे सिर्फ मिथक होते हैं, जमीनी हकीकत नहीं। यह भी कहा जाता है कि राजनीतिक दल उनका इस्तेमाल अपने वोटरों की भावनाओं को उभारने में करते हैं और इसके जरिये वोटों की भरपूर फसल हासिल करते रहे हैं, लेकिन मोदी सरकार इस सोच को गलत साबित करती प्रतीत हो रही है। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने बजट के जरिये मोदी सरकार के इस नारे को जमीन पर उतारने की भरपूर कोशिश की है।
भारतीय मतदाताओं में एक बड़ी हिस्सेदारी मध्य वर्ग की है। माना जा रहा था कि कुछ वर्षों से यह वर्ग मोदी सरकार से नाराज था। वैसे उसकी नाराजगी इतनी गंभीर भी नहीं थी कि वह प्रधानमंत्री मोदी से मुंह मोड़ ले। 2014 में यह वर्ग उम्मीदों से लबालब था तो 2019 में आकांक्षाओं की पूर्ति के लिए मोदी के पक्ष में लामबंद रहा, मगर हाल के कुछ वर्षों में उसका धैर्य जवाब देने लगा था। आयकर में छूट सीमा बढ़ाने की मांग को टालने का शायद पीएम मोदी और निर्मला सीतारमण को भान रहा होगा। इसी कारण बजट में आयकर की छूट सीमा बढ़ाकर सात लाख रुपये कर दी गई है। ऐसे में नौकरीपेशा मध्य वर्ग का गदगद होना स्वाभाविक है। आयकर में छूट मिलने से संभावना है कि अपने पैसे का यह वर्ग उपयोग करेगा। इसकी वजह से बाजार में मुद्रा परिचालन बढ़ेगा, जिसका सीधा असर उत्पादन पर पड़ेगा। कह सकते हैं कि आयकर छूट का यह प्रस्ताव भारतीय आर्थिकी की मशीन में लुब्रिकेंट का काम करने जा रहा है।
चुनावों में निम्न आयवर्ग के लोगों की भी बड़ी भूमिका होती है। बजट में इस वर्ग के लिए भी गंभीर संदेश है। भारत दुनिया की पांचवीं बड़ी अर्थव्यवस्था बन चुका है। अब इसका लक्ष्य सात प्रतिशत की विकास दर हासिल करना है। ऐसे में रोजगार सृजन की अपार संभावनाएं बन सकती हैं। बजट में बुनियादी ढांचे के लिए पिछली बार से करीब एक तिहाई ज्यादा यानी दस लाख करोड़ रुपये की रकम की व्यवस्था करना भी अर्थव्यवस्था को गतिशील बनाए रखने का ही प्रयास है। अंतत: इसका फायदा मध्य और निम्न मध्य वर्ग की ही जनसंख्या को ही मिलने जा रहा है।
यहां ध्यान दिया जाना चाहिए कि भारतीय राजनीति का बड़ा आधार किसान भी रहा है। किसान आबादी में से करीब 82 प्रतिशत आबादी गरीबी रेखा से नीचे या उसके आसपास है। बजट में इस वर्ग का भी ध्यान रखा गया है। किसान सम्मान निधि के तहत इस बार के बजट में पिछली बार की तुलना में करीब साढ़े छह प्रतिशत ज्यादा यानी साठ हजार करोड़ रुपये का प्रविधान किया गया है। इस मद में अब तक 11.4 करोड़ किसानों को 2.2 लाख करोड़ रुपये दिए जा चुके हैं।
मोदी सरकार ने 2024 तक देश के गरीबों को छत मुहैया कराने का अपना लक्ष्य पूरा करना तय किया है। इसके तहत गरीबों को कुल दो करोड़ 94 लाख घर दिए जाने हैं। अब तक करीब 2.12 करोड़ घर दिए जा चुके हैं। प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत तैयार किए जा रहे इन घरों के लिए पिछली बार के 66 हजार करोड़ की तुलना में इस बार 79,500 करोड़ रुपये का प्रविधान किया गया है। जल जीवन योजना के लिए भी 70 हजार करोड़ रुपये का आवंटन किया गया है। गरीबों को स्वास्थ्य सुविधा देने वाली आयुष्मान योजना के लिए पिछली बार के 6,457 करोड़ की तुलना में इस बार 7,200 करोड़ रुपये का आवंटन किया गया है। साफ है इनके जरिये जहां बाजार में पैसा पहुंचेगा, वहीं रोजगार और उत्पादन बढ़ेंगे। हालांकि मनरेगा के लिए में पिछली बार की तुलना में कटौती की गई है। जबकि अपनी शुरुआत के दौर से ही यह योजना गरीबों के लिए कल्याणकारी मानी गई है। हालांकि हकीकत यह भी है कि पिछले वर्ष सौ दिन के बजाय कहीं लोगों को 53 दिन तो कहीं 51 या पचास दिन ही काम मिले। इसके अलावा एकलव्य विद्यालयों के लिए 38,800 अध्यापकों की भर्ती का एलान आदिवासी वर्ग के गौरवबोध को बढ़ाने की दिशा में बड़ा कदम माना जा रहा है।
बजट की अहम कोशिश यही है कि अमृतकाल में देश के विकास को गति मिले और सामाजिक-आर्थिक खांचों में बंटी जनसंख्या भी तुष्ट हो। वैसे भी जब चुनाव सिर पर हों तो ऐसे कदम न उठाना राजनीतिक आदूरदर्शिता ही मानी जाती है। इस वर्ष नौ राज्यों में विधानसभा चुनाव हैं। अगले वर्ष आम चुनाव होंगे। ऐसे में हर सत्ताधारी चाहेगा कि लोक का समर्थन उसके साथ बना रहे। इसके लिए उसे लोकलुभावन फैसले लेने ही पड़ेंगे। आज देश में राजनीति जिस मुकाम पर है, वहां ऐसे कदम उठाना मजबूरी भी है। इस मजबूरी से हर राजनीतिक दल आक्रांत रहता है। इसलिए उसे ऐसे कदम उठाने ही पड़ते हैं। ऐसे में नरेन्द्र मोदी राजनीति कर रहे हैं तो इसे न तो अनपेक्षित माना जा सकता है और न ही अनुचित। कुल मिलाकर सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक खांचे में बंटे ज्यादा से ज्यादा वोटरों का साथ हासिल करना ही इस बजट का राजनीतिक संदेश है।
(लेखक राजनीतिक विश्लेषक हैं)