भूजल के स्तर में सुधार करते तालाब, पानी जमा करने की योजना के कारण धरती के गर्भ में बढ़ रहा जल का भंडार
हमारे देश में औसतन 1170 मिमी पानी सालाना बरसता है। देश में कोई पांच लाख 87 हजार के आसपास गांव हैं। यदि औसत से आधा भी पानी बरसे और हर गांव में महज 1.12 हेक्टेयर जमीन पर तालाब बने हों तो देश की आबादी के लिए पूरे साल पीने और अन्य प्रयोग के लिए 3.75 अरब लीटर पानी आसानी से जमा किया जा सकता है।
पंकज चतुर्वेदी: यह सुखद है कि भारत के कई हिस्सों में भूजल के स्तर में सुधार हो रहा है। यह तथ्य पिछले दिनों केंद्रीय जलशक्ति मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत द्वारा जारी सक्रिय भूजल संसाधन मूल्यांकन रिपोर्ट, 2023 से सामने आया। यह मूल्यांकन केंद्रीय भूजल बोर्ड और राज्यों एवं केंद्र शासित प्रदेशों द्वारा संयुक्त रूप से किया गया है। इस रिपोर्ट के अनुसार देश में कुल वार्षिक भूजल पुनर्भरण 449.08 अरब घन मीटर (बीसीएम) है, जो 2022 की तुलना में 11.48 बीसीएम अधिक है। पूरे देश के लिए वार्षिक भूजल दोहन 241.34 बीसीएम है, जो कुल भराव का 59.23 प्रतिशत है।
देश पर जलवायु परिवर्तन के खतरे के चलते अनियमित बरसात और नदियों के उथले होने के खतरे तो मंडरा ही रहे हैं, साथ ही बढ़ती आबादी का पेट भरने की चुनौती भी बढ़ रही है। इस चुनौती का सामना तभी किया जा सकता है, जब भूजल के गिरते स्तर को रोका जाए। भूजल के भंडार भरने का कारण तालाबों की सुधरती हालत है। आजादी के अमृतकाल के अवसर पर देश के हर जिले में 75 सरोवरों की योजना पर काम हो रहा है।
अप्रैल 2022 में प्रारंभ की गई ‘मिशन अमृत सरोवर’ योजना के अंतर्गत देश में कुल 10,992 स्थानों का चयन किया गया और उनमें से 83,727 स्थानों पर काम शुरू किया गया। सरकारी आंकड़े बताते हैं कि 68,258 तालाब बनकर भी तैयार हो गए हैं। इनमें सबसे ज्यादा तालाब उत्तर प्रदेश में हैं। यहां 14,613 तालाब बनकर तैयार हो गए हैं। बिहार में भी 2,717 तालाब तैयार होने को हैं। उल्लेखनीय है कि केंद्र सरकार के विभागीय पोर्टल पर इस कार्य की प्रतिदिन की प्रगति की रिपोर्ट डाली जाती है। इससे पता चलता है कि कहां कितने तालाब तैयार हो रहे हैं।
केंद्र सरकार ने वर्ष 2020 में 6,000 करोड़ रुपये के बजट से अटल भूजल संवर्धन योजना शुरू की थी। इसमें सात राज्यों के 80 जिलों के उन 229 ब्लाकों को चिह्नित किया गया था, जिनके 8,220 गांवों में पीने के पानी का गंभीर संकट पैदा हो गया था। इस साल की शुरुआत में अटल भूजल योजना की राष्ट्रीय संचालन समिति की समीक्षा बैठक में यह बात सामने आई कि ऐसे चिंताजनक हालात के बावजूद राज्यों में इस योजना की प्रगति संतोषजनक नहीं पाई गई। खासतौर पर जल संरक्षण की विभिन्न योजनाओं को इसमें समाहित करने में ज्यादातर राज्य रुचि नहीं दिखा रहे हैं। उन्हें इस योजना को गंभीरता से लेना चाहिए। उन्हें समझना होगा कि यदि धरती के गर्भ में जल का भंडार बढ़ रहा है तो इसका सबसे बड़ा कारण तालाबों में पानी जमा करने की योजना ही है।
अभी तक पुराने तालाबों पर ही ध्यान दिया जा रहा है। यदि देश के कुल 773 जिलों में यह योजना सफल हो गई तो लगभग एक लाख दस हजार ऐसे तालाब होंगे, जिनमें करीब 30 अरब क्यूबिक लीटर से अधिक की क्षमता का विशाल जल भंडार होगा। यदि सभी 90 हजार सरोवर सफल हुए तो हम पानी को लेकर पूरी तरह स्थानीय स्तर पर आत्मनिर्भर बन सकते हैं।
उल्लेखनीय है कि हमारे देश में औसतन 1170 मिमी पानी सालाना बरसता है। देश में कोई पांच लाख 87 हजार के आसपास गांव हैं। यदि औसत से आधा भी पानी बरसे और हर गांव में महज 1.12 हेक्टेयर जमीन पर तालाब बने हों तो देश की आबादी के लिए पूरे साल पीने और अन्य प्रयोग के लिए 3.75 अरब लीटर पानी आसानी से जमा किया जा सकता है। एक हेक्टेयर जमीन पर महज 100 मिमी बरसात होने की दशा में 10 लाख लीटर पानी एकत्र किया जा सकता है।
अभी देश के अधिकांश गांवों-मजरों में पारंपरिक तालाब-जोहड़, बावड़ी और झील जैसी संरचनाएं उपलब्ध हैं। जरूरत है तो बस उन्हें करीने से सहेजने की और उसमें जमा पानी को गंदगी से बचाने की। यदि नए-पुराने, सभी तालाब लबालब होंगे तो जमीन की पर्याप्त नमी के कारण सिंचाई-जल कम लगेगा, साथ ही खेती के लिए अनिवार्य प्राकृतिक लवण आदि भी मिलते रहेंगे।
तालाब केवल इसलिए जरूरी नहीं कि वे पारंपरिक जलस्रोत हैं। तालाब न केवल पानी सहेजते हैं, बल्कि भूजल का स्तर भी बनाए रखते हैं। 1944 में गठित ‘फेमिन इनक्वायरी कमीशन’ ने स्पष्ट निर्देश दिए थे कि आने वाले समय में संभावित पेयजल संकट से जूझने के लिए तालाब ही कारगर होंगे। दुर्भाग्य से उस कमीशन की यह रिपोर्ट ठंडे बस्ते में डाल दी गई। आजादी के बाद पुश्तैनी तालाबों की देखरेख करना तो दूर रहा, उन्हें अनदेखा करना शुरू कर दिया गया। इसके चलते तमाम तालाबों का अस्तित्व नष्ट हो गया।
चाहे कालाहांडी हो या फिर बुंदेलखंड या फिर तेलंगाना, देश के जल-संकट वाले सभी इलाकों की कहानी एक ही है। इन सभी इलाकों में एक सदी पहले तक कई-कई सौ तालाब होते थे। ये तालाब केवल लोगों की प्यास ही नहीं बुझाते थे, बल्कि इसके साथ ही वे स्थानीय अर्थव्यवस्था का मूल आधार भी होते थे। वे मछली, कमलगट्टा, सिंघाड़ा, कुम्हार के लिए चिकनी मिट्टी आदि के भी स्रोत होते थे। तालाबों का पानी कुओं का जल स्तर बनाए रखने में भी सहायक होता था।
यदि देश में खेती-किसानी को बचाना है, अपनी आबादी का पेट भरने के लिए विदेश से अन्न मंगवा कर विदेशी मुद्रा के व्यय से बचना है और शहरों की ओर पलायन रोकना है तो जरूरी है कि स्थानीय स्तर तालाबों की ओर लौटा जाए। खेतों की सिंचाई के लिए भूजल की जगह तालाबों के इस्तेमाल को बढ़ावा दिया जाए और तालाबों को सहेजने के लिए सरकारी विभागों के बजाय स्थानीय समाज को शामिल किया जाए।
(लेखक पर्यावरण मामलों के जानकार हैं)