हर्ष वी. पंत : रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन की गिनती विश्व के ताकतवर नेताओं में होती है। सोवियत संघ के विघटन के बाद संक्रमण काल में कमजोरी के शिकार हुए रूस को पुतिन के नेतृत्व ने नए तेवर दिए। पुतिन के कार्यकाल में रूस के नए सिरे से हुए उभार ने उन्हें रूसी जनता के बीच नायक बना दिया और वह देश के निर्विवाद नेता के रूप में स्थापित हुए। हालांकि पिछले कुछ समय से पुतिन के एक के बाद एक फैसलों ने मजबूत नेता की उनकी छवि को कमजोर किया है। यूक्रेन पर हमले को लेकर उनके गलत आकलन से तो उनकी छवि प्रभावित हुई ही थी, लेकिन पिछले सप्ताह वैगनर समूह के विद्रोह ने यही दर्शाया कि पुतिन की पकड़ अब कितनी ढीली पड़ती जा रही है।

वैगनर समूह के मुखिया और एक समय पुतिन के बेहद करीबी रहे येगवेनी प्रिगोजिन की बगावत को तो पुतिन टालने में सफल रहे, किंतु भविष्य के लिहाज से यह घटना गहरे निहितार्थों से भरी है। प्रिगोजिन के विद्रोह से राष्ट्रपति के रूप में पुतिन की सत्ता को खुली चुनौती मिली। यह न केवल पुतिन, बल्कि उन पर भरोसा रखने वाले अन्य देशों के उनके मित्र राष्ट्राध्यक्षों के लिए भी खतरे की घंटी है। इस घटना ने पुतिन के शासन के उस ढांचे पर भी सवालिया निशान खड़े किए हैं, जिसमें पहले से ही पारदर्शिता का अभाव रहा है। ऐसे में यदि समय के साथ रूसी जनता का पुतिन से मोहभंग हो जाए तो कोई हैरानी नहीं होनी चाहिए।

प्रिगोजिन ने अपने आक्रामक तेवरों को भले ही पिछले सप्ताह उजागर किया हो, लेकिन उसके संकेत पहले से ही दिखने लगे थे। पश्चिमी खुफिया एजेंसियों को इस संभावित विद्रोह के संकेत पहले ही मिल चुके थे। प्रिगोजिन के क्रियाकलापों से भी यह स्पष्ट हो रहा था। वह निरंतर रूसी रक्षा मंत्री और सत्ता प्रतिष्ठान से जुड़े लोगों को निशाना बना रहे थे। उनका मानना था कि यूक्रेन युद्ध में रूस को मिली अधिकांश सफलता उनके सैनिकों की बहादुरी का परिणाम रही, लेकिन इसके बदले में उन्हें और उनके सैनिकों की अनदेखी हो रही थी।

यह बात सच भी है कि यूक्रेन के साथ अंतहीन से दिख रहे रूस के युद्ध में रूसी सैनिकों के बजाय वैगनर समूह के लड़ाकों ने पुतिन की झोली में कहीं अधिक सफलता डाली है। बाखमुट जैसा रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण शहर वैगनर लड़ाकों ने ही जीतकर दिया। ऐसे में यदि प्रिगोजिन को अपनी उपेक्षा महसूस हो रही थी तो कहीं न कहीं उससे उपजे आक्रोश की अभिव्यक्ति होनी ही थी। प्रिगोजिन को साधने के लिए उनके 25,000 लड़ाकों को रूसी सेना के साथ जोड़ने के रूसी सरकार के प्रस्ताव ने प्रिगोजिन के आंतरिक असंतोष की आग में घी का काम किया। प्रिगोजिन को लगा कि इसकी आड़ में उन्हें किनारे लगाने की कोशिश हो रही है और यह उनके लड़ाकों को भी अस्वीकार्य होता, क्योंकि किसी पेशेवर सेना की अनुशासनबद्ध प्रणाली से जुड़ना उनके लिए असहज करने वाला होता।

वैगनर समूह के विद्रोह ने कई चीजों से पर्दा उठाने का काम किया। इसकी गहनता से पड़ताल करें तो पाएंगे कि इस विद्रोह के बीज स्वयं पुतिन ने ही बोए। पिछले डेढ़ साल से उनके कई फैसलों ने रूस को कमजोर करने का काम किया। वह अपने देश के सामरिक हितों का सही से आकलन नहीं कर पाए। उनकी निर्णय प्रक्रिया को देखें तो लगेगा कि अपनी ताकत के बजाय कमजोर मनोदशा से उन्होंने फैसले लिए। जैसे कि यूक्रेन को जीतने के लिए वैगनर समूह को मोर्चे पर लगाना। इससे यही संदेश गया कि रूस जैसी सामरिक शक्ति को अपने पेशेवर सैन्य बल के बजाय भाड़े के सैनिकों पर अधिक भरोसा है। जबकि पूरी दुनिया वैगनर समूह के लड़ाकों के चरित्र के विषय में जानती है कि वह किस प्रकार के संदिग्ध तत्वों से मिलकर बना है।

यूक्रेन युद्ध में रूस को बर्बरता के जिन मामलों में बदनामी मिली, उनमें से अधिकांश वैगनर समूह के लड़ाकों का किया-धरा है। उसके बाद यह ताजा विद्रोह और मास्को को प्रिगोजिन की खुली धमकी यही दर्शाती है कि वैगनर पर दांव लगाना पुतिन की कितनी बड़ी भूल रही। फिर, जिस विद्रोह को पश्चिमी एजेंसियों ने समय रहते भांप लिया, रूसी एजेंसियों को उसकी कोई भनक तक नहीं लगी।

प्रिगोजिन के विद्रोह को राष्ट्रद्रोह बताते हुए पुतिन से एलान किया कि वह इस मामले में सख्ती से निपटेंगे। उन्होंने स्पष्ट किया इस हरकत को कतई बर्दाश्त नहीं किया जाएगा और हर हाल में नागरिकों की रक्षा की जाएगी। विद्रोहियों पर आरोपित राजद्रोह की धाराओं से लगा कि भी पुतिन बगावत करने वालों को नहीं बख्शने वाले, मगर बेलारूस के राष्ट्रपति लुकाशेंको के दखल से हुई सौदेबाजी में पुतिन की सख्ती हवा हो गई। अब विद्रोहियों से नरमी बरतने की खबरें आ रही हैं। स्वाभाविक है कि लोग देर-सबेर सवाल पूछेंगे कि पुतिन का रुख एकाएक कैसे बदला?

आखिर जो पुतिन जरा सी आलोचना भी बर्दाश्त न करते हों, वह विश्वासघात के इस घूंट को कैसे पचा गए? फिलहाल भले ही विद्रोहियों और पुतिन के मध्य बीच-बचाव हो गया है, लेकिन इस आशंका से इन्कार नहीं किया जा सकता कि आने वाले समय में प्रिगोजिन शायद किसी अनहोनी के शिकार हो जाएं, जैसा कि पूर्व में पुतिन के तमाम विरोधियों के साथ हो चुका है। हालांकि प्रिगोजिन के मामले में यदि ऐसा होता है तो वैगनर के लड़ाकों का विद्रोह फूट सकता है, जिसकी शायद पुतिन और रूस को बड़ी कीमत चुकानी पड़े।

अपनी साख बचाने के लिए पुतिन यूक्रेन पर हमलों की रफ्तार और तेज कर सकते हैं। इससे तनाव और बढ़ेगा। रूस की संवेदनशील स्थिति से चीन भी चिंतित है, क्योंकि उसने मास्को पर बड़ा भारी दांव लगा रखा है। भारत की नजर भी हालात पर बनी हुई है, क्योंकि अमेरिका सहित कई देशों के साथ रक्षा सहयोग बढ़ाने के बावजूद 65 प्रतिशत रक्षा साजोसामान के लिए भारत की रूस पर निर्भरता कायम है। पिछले कुछ समय से भारत ने बड़ी भारी मात्रा में रूसी तेल आयात करना भी शुरू किया है। ऐसे में यदि वहां स्थितियां और बिगड़ेंगी तो उनका असर भारत पर भी पड़ेगा। रूस में शांति, स्थिरता और स्थायित्व भारतीय हितों के दृष्टिकोण से भी महत्वपूर्ण है।

(लेखक आब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन में विदेश नीति प्रभाग के उपाध्यक्ष हैं)