हास्य व्यंग्य: कवि सम्मेलन में संचालक का जलवा, खालिस जुबान की खाता और दिमाग वालों को चलाता
मंचासीन कवियों में किसके साथ संचालक के मधुर और कटु संबंध हैं? यह भी संचालक जी की बातों से पता लग जाता है। चूंकि संचालक मंच का सर्वेसर्वा होता है। उसी के हाथ में होता है कि किसे मंच पर कब लाना है? किसे हिट और किसे हूट करवाना है?
अर्चना चतुर्वेदी: जिस तरह फिल्मी लोग फिल्म बनाते वक्त क्रिएटिव लिबर्टी अर्थात कलात्मक आजादी लेते हैं और किसी भी कहानी को तोड़-मरोड़ कर प्रस्तुत कर डालते हैं। कुछ उसी तरह कवि सम्मेलन का संचालक भी होता है, जो बहुत ही क्रिएटिव तरीके से आजादी लेता है। मंच संचालक को इस बात का पूरा हक होता है कि वह कवि सम्मेलन के दौरान किसी की भी कविता सुनाए, घिसे-पिटे चुटकुले सुनाए, कभी किसी कवयित्री से छिछोरे मजाक करे तो कभी मनगढ़ंत किस्से सुनाए। इस तरह संचालक पूरे समय... समय की बात करते हुए... समय को सलीके से चुटकुले और दूसरों की लिखी कविताओं के साथ हजम कर जाता है। इसके साथ ही वह हर आने वाले कवि को यह कहकर समय के सदुपयोग का पाठ भी याद कराता रहता है कि 'कवि मित्र समय सीमा का ध्यान रखें। हमारे पास समय कम है इसलिए एक ही रचना सुनाएं।'
मंचासीन कवियों में किसके साथ संचालक के मधुर और किसके साथ कटु संबंध हैं? यह भी संचालक जी की बातों और हावभाव से पता लग जाता है। चूंकि संचालक ही मंच का सर्वेसर्वा होता है। उसी के हाथ में होता है कि किसे मंच पर कब लाना है? किसे हिट और किसे हूट करवाना है? देखा जाए तो कवि सम्मेलन और क्रिकेट मैच में बहुत ज्यादा अंतर नहीं है। संचालक भी क्रिकेट के कप्तान की तरह समझदारी से बल्लेबाज अर्थात कवि चुनकर कार्यक्रम को शानदार बना सकता है। किससे मैच अर्थात सम्मेलन की ओपनिंग करानी है? किसको बाद में लाना है? इस तरह के तमाम निर्णय उसी के होते हैं। इसी के बहाने संचालक किसी कवि से पुराना खुन्नस भी बड़े ही मोहक अंदाज में निकाल डालता है। जैसे-एमएस धौनी के बाद किसी साधारण बल्लेबाज को उतारा जाए तो क्या हश्र होगा? उसे हिट विकेट करवाने के लिए वह किसी जमने वाले कवि के बाद हल्के कवि को मंच पर भेज देते हैं। इसी के साथ संचालक जी कातिल मुस्कान के साथ एक और चुटकुला पटक मारते हैं और इशारों-इशारों में जता देते हैं कि 'मुझसे पंगा लेने का हश्र देख लिया न बच्चू।"
इस दुनिया में यदि सबसे धैर्यवान प्राणी की बात होगी तो उसमें कवियों का नाम सबसे ऊपर आएगा, क्योंकि पांच मिनट की कविता के लिए यह कवि रूपी प्राणी पांच घंटे मन मारकर बैठा रहता है। इस दौरान संचालक की काल्पनिक कहानियों का पात्र भी बनता रहता है। मसनद पर बैठा कवि पहले ही आरामदायक पोज की मेहनत में जूझ रहा होता है और संचालक उसे काल्पनिक किस्से के बहाने मसलता रहता है। कवि भी अंदर ही अंदर भिन्नाते हुए अपनी बारी का इंतजार करता रहता है। कवि का नंबर आता है। वह बदला लेने का विफल प्रयास करता है, लेकिन संचालकनुमा रेफरी उसे सफल नहीं होने देता, क्योंकि ड्राइविंग स्कूल के ड्राइवर की तरह ब्रेक अर्थात एक माइक उसके पास हमेशा होता है। इस माइक की मदद से संचालक बीच-बीच में कवि के लिए वाह-वाह, बहुत सुंदर या कृपया समय सीमा का ध्यान रखें, करते हुए उसे अहसास दिलाता रहता है कि बेटा असली ड्राइवर अपुन हैं।
जिन लोगों को बचपन से ही ज्यादा बोलने पर डांट पड़ती हो वे कवि सम्मेलन या किसी भी साहित्यिक कार्यक्रम के संचालन के क्षेत्र में अपना करियर बना सकते हैं, क्योंकि इस क्षेत्र में बकैती ही सबसे बड़ी योग्यता होती है। संचालक कवि नहीं होता, न ही उसके पास अपनी लिखी कविता होती है। वह संबंध बनाने में माहिर होता है, बल्कि कहें तो वही सबसे बड़ा मार्केटिंग गुरु होता है। सो, कार्यक्रम लाने से लेकर कार्यक्रम करवाने तक का जिम्मा उसी के कंधों पर होता है। यही वह इंसान है, जो खालिस जुबान की खाता है अर्थात बातों की खाता है। दिमाग वालों को तो वह चलाता है। किसी जमाने में मंच संचालक अलग काम था और कवि होना अलग, लेकिन आज काव्य की दुनिया में संचालक होना ही मोक्ष की प्राप्ति है। बड़े-बड़े कवि भी इसी शर्त पर आना स्वीकार करते हैं कि उन्हें मंच संचालक बनाया जाए। उसके बाद मंच से कविता बेचारी तो चुपके से नीचे उतर जाती है। और वहां जो शेष रह जाता है, वह होता है-संचालक का पांडित्य प्रदर्शन, कुछ चुटकुले, कुछ कवि कहे जाने वाले प्राणी और थोड़ा-सा ग्लैमर।