डा. सुभाष शर्मा। इक्कीसवीं सदी में लड़ाई के तौर-तरीके बदल गए हैं। अब ये पारंपरिक युद्ध क्षेत्रों से कहीं आगे निकल गए हैं। दो देशों के बीच लड़ाई में जो सर्वनाश हथियारों और गोला-बारूद से हुआ करता है, कुछ वैसा ही विनाश अब टेक्नोलाजी, साइबर वार और जासूसी के जरिये किया जाने लगा है। अब इनके सहारे किसी राष्ट्र को नुकसान पहुंचाने का लक्ष्य उस राष्ट्र में शारीरिक रूप से पहुंचे बिना हासिल किया जाने लगा है। यह सब अत्याधुनिक साइबर हमलों के कारण संभव हो रहा है। इसके लिए अत्याधुनिक तकनीकों का उपयोग करना, अफवाहें फैलाना या सार्वजनिक सूचनाओं में हेरफेर करके देश के भीतर अनिश्चितता पैदा करने जैसे हथकंडे अपनाए जा रहे हैं। फेक न्यूज और नियंत्रित मीडिया का उपयोग अब न केवल साइबर युद्ध में किया जाता है, बल्कि यह राजनीति और उद्योग जगत में भी अपनाया जाने लगा है।

यह किसी फिल्म की स्क्रिप्ट नहीं है, बल्कि आज की सच्चाई है। भारतीय वित्तीय जगत में इस वर्ष हुए कुछ घटनाक्रमों के विश्लेषण से पता चलता है कि कुछ विदेशी संस्थाओं और व्यक्तियों ने मिलकर एक ऐसा जाल रचा और बुना है, जो एक सिंडिकेट की तरह काम कर रहा है। इससे भारत के लिए दूरगामी राजनीतिक, आर्थिक और सामाजिक दुष्परिणाम हो सकते हैं। जनवरी 2023 में एक स्व-घोषित रिसर्च फर्म हिंडनबर्ग (शार्ट-सेलर) ने अदाणी समूह के खिलाफ एक रिपोर्ट प्रकाशित की। अदाणी समूह भारत में बंदरगाहों से लेकर बिजली क्षेत्र तक फैले व्यवसायों वाला एक बहुआयामी बिजनेस ग्रुप है। एक स्थिर और तेजी से आगे बढ़ने वाला बिजनेस ग्रुप अचानक गलत कारणों से सुर्खियों में आ गया, जिससे उसके शेयर की कीमत में भारी गिरावट आई और देश-विदेश के निवेशकों को अरबों रुपये का नुकसान हुआ।

जब पश्चिमी मीडिया ने पूरे भारतीय पूंजी बाजार इकोसिस्टम पर सवाल उठाना शुरू कर दिया तो इसका भारत पर व्यापक प्रभाव पड़ा। इसके बाद कुछ बड़ी रिपोर्ट आईं, जिससे आरोप-प्रत्यारोप का दौर और भी बढ़ गया। बाद में यह मामला सुप्रीम कोर्ट में गया। अदालत ने इसकी सच्चाई का पता लगाने के लिए एक समिति बनाई। इस समिति ने पूरे मुद्दे का विस्तार से अध्ययन किया और एक रिपोर्ट प्रस्तुत की। इससे पता चला कि आरोपों में सच्चाई नहीं है। रिपोर्ट में अदाणी समूह के खिलाफ कोई निर्णायक नकारात्मक निष्कर्ष नहीं निकला है। हालांकि कुछ मामलों में आगे की जांच आगे कराए जाने की आवश्यकता बताई गई है। अदाणी समूह के खिलाफ फैली इन अफवाहों में शामिल लोगों के राजनीतिक संबंध, कई व्यक्तियों की भागीदारी और कुछ दस्तावेजों के ‘संदिग्ध’ स्रोत देखकर कोई भी आसानी से यह निष्कर्ष निकाल सकता है कि उनका एजेंडा कहीं ज्यादा घातक और षड्यंत्रकारी था।

भारत के बारे में लिखे जा रहे आलेखों में पिछले नौ वर्षों के दौरान बड़ा बदलाव आया है। वे दिन गए जब भारत को कम विकास दर वाला और पूंजी का भूखा देश माना जाता था। आज हमारी अर्थव्यवस्था सभी महत्वपूर्ण मापदंडों और वैश्विक रैंकिंग पर प्रगति कर रही है। हाल ही में भारत का बाजार पूंजीकरण चार ट्रिलियन डालर के करीब पहुंच गया। भारत एक प्रमुख वैश्विक शक्ति के रूप में उभर रहा है। विशेष रूप से ‘बहुध्रुवीय दुनिया और नए ‘वैश्विक दक्षिण’ के युग में एक महाशक्ति के रूप में हमारा उदय सुखदायी है। कुछ विदेशी मीडिया और संस्थाओं को भारत का विकास खटक रहा है। हिंडनबर्ग की रिपोर्ट ने उन्हें एक अवसर दिया। इसमें दोराय नहीं कि इसके दम पर वे अपने एजेंडे को आगे बढ़ाने में सफल रहे। इसका सभी क्षेत्रों पर प्रभाव पड़ा, जिससे निवेशक, कर्मचारी और अन्य हितधारक प्रभावित हुए। हालांकि भारतीय अर्थव्यवस्था की ताकत और साथ ही अदाणी समूह की प्रगति ने इन अफवाहों से देश को हुए नुकसान को बढ़ने से बचा लिया।

चिंता की बात यह है कि कुछ भारतीय नेताओं ने विदेशी मीडिया और संस्थाओं की रिपोर्ट पर विश्वास किया। इस प्रकार उन्होंने हिंडनबर्ग के आरोपों को फैलाने में सहायता की। अब इसके पीछे की मंशा की बारीकी से जांच करने की आवश्यकता है, ताकि यह पता लगाया जा सके कि क्या भारतीय अर्थव्यवस्था को लेकर उनकी चिंता वास्तविक थी या फिर इस तरह वे केंद्र सरकार को कमजोर करना चाहते थे। खासकर जब भारत में राज्यों के विधानसभा और अगले साल आम चुनाव हो रहे हों। खोजी पत्रकारों के ग्लोबल नेटवर्क आर्गेनाइज्ड क्राइम एंड करप्शन रिपोर्टिंग प्रोजेक्ट (ओसीसीआरपी) जैसे विदेशी निकायों की इसमें भागीदारी भी इसी तरह के सवाल उठाती है। शुक्र है कि सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले की गहराई से जांच की। उसने दूध का दूध और पानी का पानी कर दिया। इस प्रकार उसने आरोपों की खत्म न होने वाली एक शृंखला का जरूरी अंत कर दिया।

उक्त घटनाक्रम भारत के लिए एक चेतावनी है। इसे एक सबक के रूप में लेना चाहिए। यह मामला यही बताता है कि कैसे-कैसे भारत विरोधी तत्व उभर रहे हैं और वे भारत को नुकसान पहुंचाने के लिए कैसे-कैसे तरीके अपना सकते हैं। ये तरीके चाहे घरेलू राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता से प्रेरित हों या बाहरी प्रभावों से, देश के हितों के खिलाफ काम करने वाली ताकतों को बेनकाब करना और उनका समाधान करना महत्वपूर्ण है। सरकार को देश की आर्थिक और राजनीतिक स्थिरता को आंतरिक और बाहरी खतरों से बचाने के लिए एक मजबूत तंत्र बनाना चाहिए। देश की आर्थिक अखंडता की सुरक्षा के लिए यह जरूरी है। नेताओं को भी ऐसे मामलों पर सोच-समझकर प्रतिक्रिया देनी चाहिए। वास्तव में भारत की आर्थिक और राजनीतिक नींव को मजबूत करने के लिए सामूहिक रूप से काम करना महत्वपूर्ण है।

(लेखक सेंटर फार इकोनमिक पालिसी रिसर्च के निदेशक हैं)