संजय गुप्त। भारत चौथी बार वनडे विश्व कप क्रिकेट के फाइनल में पहुंच गया। इससे पहले भारत 1983 और 2011 में विश्व कप जीत चुका है। क्रिकेट भारत का सबसे लोकप्रिय खेल है। यह खेल पूरे देश को जोड़ने और राजनीति, मजहब, क्षेत्र और भाषा आदि की दीवारों को ढहाने का काम करता है। विश्व कप के चलते भारत में क्रिकेट के प्रति जैसा जुनून छाया हुआ है, उसकी मिसाल मिलना कठिन है। इस जुनून का एक बड़ा कारण भारतीय टीम का शानदार खेल भी है। भारतीय टीम जिस लय और टीम भावना के साथ खेल रही है, उसके चलते वह विश्व कप की दावेदार बनकर उभरी है। रोहित शर्मा के नेतृत्व में भारतीय टीम ने न केवल सारे लीग मुकाबले जीते, बल्कि सेमीफाइनल में भी शानदार जीत हासिल की। इस टीम में अनुभवी खिलाड़ी भी हैं और युवा भी। अनुभव के धनी और विश्व के सर्वश्रेष्ठ बल्लेबाज विराट कोहली इस समय भारतीय टीम की रीढ़ बने हुए हैं। रोहित शर्मा बतौर ओपनर जैसी तेज शुरुआत देते हैं, उससे वह आगे आने वाले बल्लेबाजों का काम आसान कर देते हैं। यह न्यूजीलैंड के खिलाफ सेमीफाइनल में भी बखूबी दिखा।

भारतीय टीम ने विश्व कप के पहले जैसी लय पकड़ी, वह इसलिए अद्भुत है, क्योंकि कुछ समय पहले वह इतनी प्रभावी नहीं दिख रही थी। एक ओर जहां रिषभ पंत सड़क दुर्घटना में घायल होने के कारण टीम से बाहर थे, वहीं तेज गेंदबाज जसप्रीत बुमराह और केएल राहुल एवं श्रेयस अय्यर जैसे बल्लेबाज चोट से जूझ रहे थे। इसके चलते विकेट कीपर बैटर के तौर पर उपयुक्त खिलाड़ी का चयन चुनौती बन गया था। जब केएल राहुल चोट से उबर कर सीधे टीम इंडिया का हिस्सा बन गए, उनकी आलोचना हुई और यह कहा गया कि उन्हें जरूरत से ज्यादा मौके दिए जा रहे हैं। विश्व कप में उन्होंने शानदार बल्लेबाजी कर न केवल आलोचकों को शांत किया, बल्कि टीम को मजबूती भी प्रदान की। बल्लेबाजी के साथ उनकी विकेट कीपिंग भी प्रभावी रही। चोट से उबरे श्रेयस अय्यर ने भी तेज गति से रन बनाने में अपनी महारत दिखाई और मध्य क्रम को भरोसेमंद बनाया।

विश्व कप के दौरान जब ऑलराउंडर हार्दिक पांड्या को चोट लगी तो यह माना गया कि यह भारतीय टीम के लिए एक बड़ा झटका है, लेकिन उनके स्थान पर टीम में शामिल किए गए मोहम्मद शमी ने जैसी कमाल की गेंदबाजी की, उसने उन्हें मैच विनर बना दिया है। इस बार उनकी गेंदबाजी का एक अलग ही स्तर देखने को मिल रहा है। उन्होंने अभी तक केवल छह मैच खेले हैं, लेकिन 23 विकेट ले चुके हैं। उन्होंने तीन बार पांच या उससे अधिक विकेट लिए हैं। इस विश्व कप में विराट कोहली ने भी कई रिकॉर्ड तोड़े। पहले उन्होंने वनडे में सचिन के 49 शतकों की बराबरी की, फिर न्यूजीलैंड के खिलाफ सेमीफाइनल में अपना 50 वां शतक बनाया। वह जब तक क्रीज पर टिके रहते हैं, तब तक विपक्षी खेमे में मनोवैज्ञानिक दबाव बनाए रखते हैं। उन्होंने यह सिद्ध किया कि वह किसी भी परिस्थिति में बल्लेबाजी कर सकते हैं और अकेले दम पर भी मैच जिता सकते हैं। एक समय यह कल्पना करना कठिन था कि दुनिया का कोई बल्लेबाज सचिन तेंदुलकर के वनडे में बनाए 49 शतकों की बराबरी कर सकेगा, लेकिन विराट कोहली ने कहीं कम पारियों में यह करिश्मा कर दिखाया।

सभी मोर्चों पर सशक्त टीम इंडिया की एक बड़ी ताकत कुलदीप यादव और आलराउंडर रवींद्र जडेजा भी हैं। यह कुलदीप की प्रभावी गेंदबाजी का ही असर है कि रविचंद्रन अश्विन जैसे स्पिनर प्लेइंग इलेवन में जगह नहीं बना पा रहे। जडेजा अपनी गेंदबाजी के साथ बल्लेबाजी और बेहतरीन फील्डिंग के लिए भी जाने जाते हैं। इसी कारण वह सर्वश्रेष्ठ ऑलराउंडर के रूप में उभरे हैं। भारतीय टीम की एक विशेषता यह भी है कि वह एक परिवार की तरह दिख रही है। कुछ समय पहले ऐसी खबरें आई थीं कि रोहित शर्मा और विराट कोहली में सामंजस्य की कमी है, लेकिन विश्व कप और इसके पहले एशिया कप में मैदान से लेकर ड्रेसिंग रूम तक खिलाड़ियों में मेल-मिलाप और सहयोग-सद्भाव का एक अलग ही माहौल दिखा। इस माहौल के लिए टीम प्रबंधन और विशेष रूप से कोच राहुल द्रविड़ एवं बीसीसीआई की सराहना करनी होगी। टीम प्रबंधन ने यह सुनिश्चित किया कि ड्रेसिंग रूम का माहौल एक परिवार की तरह रहे। विश्व कप मैच के दौरान सबसे अच्छा कैच लेने वाले को ड्रेसिंग रूम में सम्मानित करने जैसे तौर-तरीकों ने टीम इंडिया के माहौल को बदला है। इस बदले हुए माहौल की एक झलक दीवाली की पूर्व संध्या पर हुए आयोजन के दौरान भी मिली।

एक अर्से से यह कहा जा रहा है कि 50 ओवर वाले वनडे मैच उबाऊ होते जा रहे हैं। जब इस विश्व कप की शुरुआत में स्टेडियम में दर्शकों की संख्या कुछ कम दिखी तो ऐसा कहने वालों की संख्या बढ़ी, लेकिन जैसे-जैसे विश्व कप आगे बढ़ा, दर्शकों की दिलचस्पी बढ़ी। स्टेडियम के साथ टीवी और मोबाइल पर मैच देखने वालों की संख्या बढ़ती गई। स्पष्ट है कि फाइनल मैच के प्रति लोगों का आकर्षण और अधिक होगा। फाइनल मुकाबले का नतीजा कुछ भी हो, यह एक बार फिर साबित हुआ कि विश्व क्रिकेट में भारत की धाक और बढ़ रही है।

बीसीसीआई इस समय न केवल सबसे धनाढ्य क्रिकेट बोर्ड है, बल्कि क्रिकेट खेलने वाले देशों के लिए एक संबल भी है। भारतीय टीम जिस भी देश में मैच खेलने जाती है, वहां टीम इंडिया के प्रशंसक तो मिलते ही हैं, उस देश के क्रिकेट बोर्ड को आर्थिक लाभ भी होता है। आज यदि अफगानिस्तान की टीम एक मजबूत टीम के रूप में उभरी है तो इसमें भारत का भी अहम योगदान है। आईपीएल दुनिया भर के क्रिकेटरों को आकर्षित करता है। इस लीग से जहां क्रिकेटरों को अच्छा-खासा पैसा मिलता है, वहीं भारत के युवा क्रिकेटरों को अपना टैलेंट दिखाने का मौका मिलता है। भारतीय क्रिकेट को मजबूती देने में इस लीग का एक बड़ा हाथ है। खेल में हार-जीत लगी रहती है और आस्ट्रेलिया की टीम एक सशक्त टीम है, फिर भी भारतीय टीम खिताब की प्रबल दावेदार दिख रही है। यह कामना की जानी चाहिए कि वह 2003 के विश्व कप में आस्ट्रेलिया के हाथों हार का बदला लेने में समर्थ रहने के साथ ही एक और खिताब हासिल करेगी।

[लेखक दैनिक जागरण के प्रधान संपादक हैं]