देश को जोड़कर रखने वाली कड़ी है संविधान, भारत की विशिष्टताओं और विविधताओं को पिरोता है एक सूत्र में
संविधान देशानुकूल है। जन के मन को भांपने वाला भारतीय परिवेश सामाजिक संरचना और बहुरंगी संस्कृति को समझने वाला उसकी कला को समाहित करने वाला और उसके प्राचीन ज्ञान-विज्ञान का प्रसार करने वाला है। यह युगानुकूल भी है। गतिशील है और जीवंत भी। इसीलिए भारत का लोकतंत्र भी जीवंत है।
[ओम बिरला]। आज भारत विश्व के सबसे बड़े, गतिशील एवं जीवंत लोकतंत्र के रूप में प्रतिष्ठित है। लोकतंत्र की यह संकल्पना हमारे संविधान द्वारा साकार हुई है। आज ही का दिन भारत की नियति में वह महत्वपूर्ण पड़ाव था, जब राष्ट्र-शिल्पियों के गहन मंथन से तैयार हुई रचना को संविधान के रूप में अंगीकार किया गया। वास्तव में 26 नवंबर, 1949 एक नए एवं आधुनिक भारत के उद्भव का दिन था। हमारी महान सभ्यता-संस्कृति पर लगे दासता रूपी ग्रहण के अंतिम अंश को मिटाते हुए संविधान के साथ देश में नया अरुणोदय हुआ था। यह नई आशाओं के उदीयमान होने का दिन था। आज हम उसी गौरवशाली क्षण का स्मरण कर रहे हैं। आनंद और उल्लास के साथ ही यह आत्मावलोकन का भी अवसर है।
हमारा संविधान भारत की विशिष्टताओं और विविधताओं को एक सूत्र में पिरोता है। संविधान में भारत को आध्यात्मिक, सांस्कृतिक, सामाजिक और आर्थिक दृष्टि से समृद्ध और समावेशी बनाने की सुंदर कल्पना की गई है। संविधान की मूल प्रति में नंदलाल बोस द्वारा उकेरे गए पौराणिक और ऐतिहासिक चित्र कला के माध्यम से हमें राष्ट्रबोध कराते हैं। अपने राष्ट्र से हमारा आत्मिक परिचय कराते हैं। राष्ट्र के आत्मा से हमें एकाकार करते हैं। इन विशेषताओं के कारण हमारा संविधान मात्र एक दस्तावेज न होकर राष्ट्रग्रंथ बन गया है। संविधान देश के नागरिकों के लिए एक जीवन दर्शन है।
अपने कर्तव्यों का निर्वहन करते हुए मुझे बार-बार इसके अध्ययन का अवसर मिला है और हर बार मैं इसमें निहित भावना से अभिभूत हो जाता हूं। हर बार मुझे कुछ नया सीखने को मिलता है। संविधान देशानुकूल है। जन के मन को भांपने वाला, भारतीय परिवेश, सामाजिक संरचना और बहुरंगी संस्कृति को समझने वाला, उसकी कला को समाहित करने वाला और उसके प्राचीन ज्ञान-विज्ञान का प्रसार करने वाला है। यह युगानुकूल भी है। गतिशील है और जीवंत भी। इसीलिए भारत का लोकतंत्र भी जीवंत है।
संविधान सभा में हुए संवाद के अवलोकन से पता चलता है कि हमारे राष्ट्र निर्माताओं ने कितने मनोयोग से स्वशासन एवं सुशासन के प्रत्येक पहलू और सभी आयामों पर चर्चा की। वैचारिक दृष्टि में भिन्नता के बावजूद सबके मन में राष्ट्र के प्रति प्रेम सुस्पष्ट था। बाबा साहेब डा. भीमराव आंबेडकर जी की अध्यक्षता में रचित संविधान में जहां स्पष्ट रूप से दृढ़ता दिखाई देती है, वहीं आमजन के प्रति संवेदनशीलता भी साफ झलकती है।
संविधान सभा में अपने अंतिम भाषण में डा. आंबेडकर ने महत्वपूर्ण बात कही थी कि ‘संविधान का सफल होना या न होना उसके प्रारूप पर ही निर्भर नहीं करता। संविधान कितना प्रभावी होगा, यह अंततः उन लोगों पर निर्भर करता है, जिन्हें इसे लागू करने का काम सौंपा गया है। लोग अच्छे होंगे, तो संविधान अच्छा होगा और यदि इसके विपरीत कार्य किया जाए, तो यह दस्तावेज अच्छा होते हुए भी निरर्थक हो जाएगा।’ उनका यह वक्तव्य हमें हमारा कर्तव्य बोध कराने के साथ-साथ एक चेतावनी भी थी।
स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद का कालखंड चुनौतियों के साथ-साथ उपलब्धियों भरा रहा है। देश में अब तक लोक सभा के 17 चुनाव हुए हैं। भिन्न-भिन्न विचारधारा वाले दलों-नेताओं ने ये चुनाव लड़े। चुनावों के दौरान चाहे कितनी मतभिन्नता रही हो, लेकिन संविधान के प्रति किसी भी दल या व्यक्ति का भरोसा कम नहीं हुआ। संविधान के लागू होने से लेकर अब तक सौ से अधिक संशोधन हो चुके हैं, लेकिन इसका अर्थ यह नहीं कि उसमें कोई मूलभूत दोष था।
ये संशोधन तो उसके लचीलेपन की अनुभूति कराते हैं। ये उसकी ताकत का बोध कराते हैं। इस संविधान ने ही हमें यह निरंतरता प्रदान की है। दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र कहलाने का गौरव हमें इसी संविधान से प्राप्त होता है। इसी संविधान ने प्रत्येक नागरिक को अनेक अधिकार दिए हैं। जहां अवसरों की समानता और विचारों की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता सुनिश्चित की गई है, वहीं इसमें सामाजिक और आर्थिक न्याय के लिए प्रतिबद्धता भी समाहित है।
जन और तंत्र के बीच सेतु का काम करने वाला हमारा संविधान ग्राम सभा से लेकर संसद तक लाखों जन प्रतिनिधियों को अनुशासित करने और उनका मार्गदर्शन करने वाला ग्रंथ है। वास्तव में संविधान से हमें भारत-तत्व को समझने का अवसर मिलता है। संविधान को लेकर तरह-तरह की राजनीतिक बहस भी होती रहती है। एक संवैधानिक पद पर होने के नाते मैं उस राजनीतिक बहस पर टिप्पणी नहीं करना चाहता। यह मेरी मर्यादा है।
मुझे अपनी इस मर्यादा का भान भी यह संविधान ही कराता है। हमारे संविधान ने हमें वह परिवेश, वह परंपरा और वह संस्कार पाने का अवसर दिया है, ताकि हम अपने-अपने कर्तव्यों का शुद्ध अंतःकरण से पालन करें। आज जब देश स्वतंत्रता के अमृत काल में प्रवेश कर गया है तो हमें आत्मावलोकन भी करना होगा कि संविधान हमारी कसौटियों पर कितना खरा उतरा है और उतना ही महत्वपूर्ण यह भी है कि संविधान की कसौटी पर हम कितने खरे उतरे हैं।
भारत का संविधान कई मायनों में अनूठा है। यह देश की परंपराओं को साथ लेकर चलने के साथ ही भविष्यपरक भी है। यह देश को प्रशासनिक आधार देता है और स्वयं भारत की परंपराओं से अनुशासित भी होता है। इस महान संविधान के कारण ही भारत जैसे बहुलतावादी और विविधतापूर्ण राष्ट्र को एक माला में पिरोए रखना संभव हो पाया है। हमारे संविधान ने स्वयं में भारत-तत्व अर्थात भारत के आत्मा को सुंदरता से संजोए रखा है। संविधान के इन्हीं आदर्शों और मूल्यों के संरक्षण का दायित्व हम सभी देशवासियों, विशेष रूप से युवा पीढ़ी के कंधों पर है।
संसद भवन में विभिन्न अवसरों पर मुझे युवाओं से संवाद का अवसर मिलता है। राष्ट्र के प्रति उनका दृष्टिकोण जानकर मेरा मन प्रसन्न हो जाता है। युवाओं में नवाचार के माध्यम से राष्ट्र के नवनिर्माण की प्रबल भावना है। आज हम सबको इसी भावना, उत्साह और जोश के साथ कार्य करते हुए राष्ट्र को नई ऊंचाइयों तक ले जाना है। संविधान दिवस पर हम अपने इस परम पावन राष्ट्रग्रंथ से प्रेरणा लेते हुए राष्ट्र के प्रति अपने कर्तव्यों का निर्वहन करने का संकल्प लें तथा राष्ट्र के विकास और राष्ट्र कल्याण के प्रति स्वयं को आत्मार्पित करें।
(लेखक लोकसभा अध्यक्ष हैं)