खालिस्तानी आतंकवाद का खतरा, यदि पश्चिमी देशों ने नहीं लगाई लगाम तो उनके लिए ही बन जाएंगे मुसीबत
खालिस्तान समर्थकों द्वारा लंदन में भारतीय उच्चायोग में तोड़फोड़ की गई और तिरंगा हटाकर खालिस्तानी झंडा फहराया गया। अमेरिका के सैन फ्रांसिस्को में भी खालिस्तानियों द्वारा धारदार हथियारों के साथ भारत के वाणिज्यिक दूतावास पर हमला किया गया। इन दोनों ही मामलों में संबंधित पुलिस बल मौके से नदारद था
दिव्य कुमार सोती: भारत में ऐसा कम ही होता है कि राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए पनप रहे किसी खतरे को समय रहते समाप्त करने का प्रयास किया जाए, पर कम से कम इस बार उस ओर प्रयास होता दिख रहा है। इसी के तहत खालिस्तानी प्रचारक अमृतपाल सिंह के कुछ साथियों को पकड़कर असम की डिब्रूगढ़ जेल भेज दिया गया और अमृतपाल को भी गिरफ्तार करने के लिए हरसंभव प्रयास हो रहे हैं। इसमें केंद्रीय एजेंसियां भी पंजाब की मदद कर रही हैं। राष्ट्रहित में यह केंद्र और राज्य सरकार के बीच तालमेल का एक अच्छा उदाहरण है, जिसका अन्य राज्य सरकारों को भी अनुकरण करना चाहिए।
यदि अमृतपाल सिंह और उसके साथियों पर शिकंजा नहीं कसा जाता तो अजनाला थाने पर हमले के बाद खालिस्तानी तत्वों के हौसले बढ़ते जाते और पंजाब पुलिस उनके दबाव में आती जाती। इसकी परिणति पंजाब में आपरेशन ब्लू स्टार से पहले के माहौल के रूप में हो सकती थी जब स्थानीय पुलिस महीनों तक स्वर्ण मंदिर के अंदर ले जाए जा रहे गोला-बारूद की पूरी जानकारी होते हुए भी कुछ नहीं कर सकी थी। तब खालिस्तानी तत्व पुलिस पर इतने हावी हो चुके थे कि पुलिस अधिकारियों की हत्याएं आम थीं।
पुलिस महानिरीक्षक अटवाल की स्वर्ण मंदिर की दहलीज पर हत्या के बाद पुलिस उनके शव को उठा पाने की भी हिम्मत नहीं जुटा पाई थी। अगर उस समय भिंडरांवाले और अमरीक सिंह जैसों का राजनीतिक स्वार्थों के लिए तुष्टीकरण न किया गया होता तो ब्लू स्टार जैसी दुर्भाग्यपूर्ण सैन्य कार्रवाई की कभी नौबत न आई होती।
पिछले कुछ दिनों में पंजाब में फिर से वैसे लक्षण दिखने लगे थे। उदाहरण के लिए शिव सेना नेता सुधीर सूरी की हत्या मीडिया के कैमरों और दर्जन भर से अधिक पुलिसकर्मियों की मौजूदगी में कर दी गई थी। पंजाब पुलिस के खुफिया विभाग के मुख्यालय पर राकेट लांचर से हमला हुआ और पाकिस्तान की ओर से आने वाले ड्रोन की घुसपैठ की संख्या में बढ़ोतरी हो रही थी। कुछ दिनों पहले पाकिस्तान की ओर से आए एक भारी ड्रोन को भारतीय सुरक्षा बलों ने पकड़ा था, जिससे एके-47 राइफल बंधी थी।
अजनाला थाने पर श्री गुरु ग्रंथ साहिब को आगे रखकर किस तरह हमला किया गया, वह तो सबने देखा ही था। अजनाला में खालिस्तान समर्थकों को मिली सफलता के बाद खतरा यह बन गया था कि इस तरह धार्मिक प्रतीकों को आगे रखकर अगर अलगाववादी तत्व सड़कों पर हिंसा करने लगते तो शासन-प्रशासन के लिए कानून व्यवस्था बनाए रखना बहुत कठिन हो जाता और बड़े पैमाने पर हिंसा भी भड़क सकती थी।
पंजाब पुलिस की हालिया कार्रवाई के बाद वारिस पंजाब दे की कमर तो टूटी है, परंतु खालिस्तानी आतंकवाद का खतरा पंजाब से पूरी तरह टला नहीं है। यह सही है कि वारिस पंजाब दे के विरुद्ध कार्रवाई के बाद भी पंजाब में अपेक्षा से अधिक शांति बनी रही, परंतु हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि ब्लू स्टार जैसी बड़ी कार्रवाई के बाद भी पंजाब की सड़कों पर वैसा भारी विप्लव नहीं देखने को मिला था जैसा सुरक्षा एजेंसियों को अंदेशा था, लेकिन समय बीतने के साथ खालिस्तानी आतंकियों ने नेताओं, सरकारी अधिकारियों और निर्दोष लोगों विशेषकर हिंदू अल्पसंख्यकों पर घात लगाकर हमले शुरू कर दिए थे।
संत हरचरन सिंह लोंगोवाल जैसे सम्मानित सिख नेता की भी हत्या खालिस्तानियों ने ही की थी। ऐसे में केंद्र और राज्य की सुरक्षा एजेंसियों को निरंतर सजग रहना होगा, लेकिन घरेलू मोर्चे से अधिक खतरा प्रवासी भारतीयों विशेषकर हिंदुओं के लिए नजर आ रहा है। विदेश में सक्रिय खालिस्तानी संगठन न सिर्फ खालिस्तान के नाम पर एक अवैध जनमत संग्रह कनाडा, ब्रिटेन और आस्ट्रेलिया जैसे देशों में करा रहे हैं, बल्कि काफी समय से भारतीय दूतावासों, हिंदू मंदिरों और भारतीय समुदाय के लोगों को इन देशों में निशाना बना रहे हैं। वारिस पंजाब दे पर भारतीय सुरक्षा एजेंसियों की कार्रवाई के बाद से ऐसी घटनाओं में तेजी आई है।
खालिस्तान समर्थकों द्वारा लंदन में भारतीय उच्चायोग में तोड़फोड़ की गई और तिरंगा हटाकर खालिस्तानी झंडा फहराया गया। अमेरिका के सैन फ्रांसिस्को में भी खालिस्तानियों द्वारा धारदार हथियारों के साथ भारत के वाणिज्यिक दूतावास पर हमला किया गया। इन दोनों ही मामलों में संबंधित पुलिस बल मौके से नदारद था, जबकि भारतीय राजनयिक मिशनों को विभिन्न प्रकार के आतंकी खतरे होते हैं। ऐसे में पश्चिमी धड़े के इन देशों द्वारा भारतीय राजनयिक मिशनों को बिना उच्च स्तरीय सुरक्षा के छोड़ा जाना चिंताजनक है। अगर यह सब रूस-यूक्रेन विवाद पर पश्चिम की खींची लकीर पर न चलने का नतीजा है तो यह बहुत ही अपरिपक्व कूटनीति है, जो अमेरिका, ब्रिटेन और आस्ट्रेलिया जैसे देशों की भारतीय जनता में छवि को खराब कर सकती है।
पश्चिमी देशों को यह याद रखना चाहिए कि 9/11 के आतंकी हमलों के कुछ घंटे के भीतर ही भारतीय सुरक्षा एजेंसियों ने बिना इन देशों की मांग के स्वतः ही इनके दूतावासों की सुरक्षा का स्तर बढ़ा दिया था। कुछ महीने बाद जब कोलकाता में अमेरिकन सेंटर पर आतंकी हमला हुआ था, तब पांच भारतीय सुरक्षाकर्मियों की जान गई थी, परंतु एक भी अमेरिकी को आंच नहीं आने दी गई थी। ऐसे में आज अगर भारतीय दूतावासों पर हमले हो रहे हैं और इन देशों की पुलिस नदारद है तो यह भारत को अखरना स्वाभाविक है।
खालिस्तानी आतंकियों द्वारा भारत में कई आतंकी हमले किए जा चुके हैं। सबसे बड़ा आतंकी हमला भारत से बाहर कनाडा से आ रही एयर इंडिया की उड़ान एआइ-182 पर बम धमाके के रूप में अंजाम दिया गया था, जो भारत के उड्डयन इतिहास का सबसे बड़ा आतंकी हमला है। यह दिखाता है कि किस प्रकार खालिस्तानी आतंकी न सिर्फ प्रवासी भारतीयों की सुरक्षा के लिए बहुत बड़ा खतरा हैं, अपितु उनकी गतिविधियों को लेकर जानबूझकर आंखें बंद किए कनाडा, ब्रिटेन और आस्ट्रेलिया जैसे देशों के नागरिकों की सुरक्षा के लिए भी। यदि पश्चिमी देशों ने खालिस्तानियों पर लगाम नहीं लगाई तो वे उनके लिए ही मुसीबत बन जाएंगे।
(लेखक काउंसिल आफ स्ट्रेटजिक अफेयर्स से संबद्ध सामरिक विश्लेषक हैं)