अनिल राजपूत। इजरायल-फलस्तीन संघर्ष दशकों पुराना है। इस संघर्ष की चिंगारी सात अक्टूबर को इजरायल पर हुए हमास के भयावह आतंकी हमले के बाद और भड़क उठी। इससे यह भी स्पष्ट हुआ कि कुछ लोग अपने नापाक मंसूबों को पूरा करने के लिए किसी भी प्रकार के शैतानी तरीकों का इस्तेमाल करने से नहीं हिचकते। इसके जरिये वे सभ्य समाज के लिए बड़ी समस्याएं और कठिनाइयां पैदा कर देते हैं।

हमास और हिजबुल्ला जैसे आतंकी संगठन ऐसे ही हैं। ये कई वर्षों से आतंक को बढ़ावा दे रहे हैं। इजरायल-हमास युद्ध के चलते दोनों ओर तमाम लोग हताहत हुए हैं। इसकी सबसे बड़ी कीमत निर्दोष लोगों को चुकानी पड़ी है, क्योंकि जान गंवाने वालों में बड़ी संख्या बच्चों, महिलाओं और युवाओं की है। ऐसे आतंकी समूह ऐसी विकट स्थितियां पैदा करते हैं, जो जवाबी प्रतिशोध और अस्थिरता का कारण बनती हैं।

हमास का इजरायल पर हुआ हमला ऐसा ही एक उदाहरण है। इजरायल के जवाबी हमले से गाजा के लोगों की मुश्किलें ही बढ़ीं। वहां बड़ी संख्या में असहाय नागरिकों को भोजन, पानी, बिजली और दवाओं तक की भारी कमी का सामना करना पड़ रहा है। इसके चलते तमाम लोग सुरक्षित आश्रय की तलाश में अपने घरों से भाग गए और दुर्भाग्य से कई मारे भी गए। ऐसी समस्या के मूल कारण की पड़ताल करेंगे तो अवैध व्यापार और विभिन्न स्रोतों से आतंकी संगठनों को मिलने वाली वित्तीय सहायता सामने आएगी। ऐसे में, आतंकियों के इस वित्तीय प्रवाह को अवरुद्ध करना बहुत आवश्यक है।

आतंकी संगठन तस्करी और जालसाजी को एक टिकाऊ बिजनेस माडल मानते हैं, जिस पर कई बार तो उनका एकाधिकार भी होता है। अंकटाड के अनुसार अवैध व्यापार दुनिया की लगभग तीन प्रतिशत अर्थव्यवस्था को लील जाता है। यदि इस बाजार को एक देश मान लें तो उसकी आर्थिकी का आकार ब्राजील, इटली और कनाडा से भी बड़ा होता।

2013 में नाइजर के अगाडेज में आतंकवादी हमले और 2015 में पेरिस में शार्ली आब्दो हमले को नकली नाइकी जूते बेचने और सिगरेट तस्करी से मिले धन से वित्तपोषित किया गया था। इसे ध्यान में रखते हुए 2019 में संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद ने चिंता व्यक्त की थी। परिषद के अनुसार आतंकवादी और आपराधिक संगठन हथियारों, दवाओं, कलाकृतियों और सांस्कृतिक धरोहरों की तस्करी के माध्यम से वित्तपोषण के स्रोत के रूप में अवैध व्यापार से लाभ उठा रहे हैं। उसी वर्ष संयुक्त राष्ट्र ने एक प्रस्ताव जारी कर सदस्यों से नीतिगत उपायों के माध्यम से अंतरराष्ट्रीय आतंकवाद और संगठित अपराध के बीच संबंधों पर ध्यान देने का आग्रह किया था।

हमास के हालिया आतंकी हमले के संदर्भ में दो आतंकी संगठनों की कार्यप्रणाली और उनके डीएनए को भी समझने की जरूरत है। हमास का गठन 1987 में हुआ। 2007 में उसने गाजा पट्टी पर नियंत्रण कर लिया। हथियारों, ईंधन, ड्रग्स के अवैध व्यापार के अलावा मनी लांड्रिंग हमास के लिए धन के प्रमुख स्रोत रहे हैं।

अमेरिकी सरकार द्वारा हमास से जुड़े कई क्रिप्टोकरेंसी खातों को जब्त कर लिया गया है। संगठन अपने क्रिप्टो वालेट पते पर चंदा मांगने के लिए फेसबुक और एक्स जैसे इंटरनेट मीडिया मंच का उपयोग करता है। इस कार्यप्रणाली को अमेरिकी आंतरिक सुरक्षा विभाग की एक रिपोर्ट में उजागर किया गया है। कई विश्लेषकों के अनुसार हमास से जुड़े इन क्रिप्टोकरेंसी खातों की कीमत करोड़ों डालर है। ये खाते आतंकी गतिविधियों के लिए उपयोग किए जाने वाले सभी प्रकार के सामान की खरीद में सहायक हैं।

हिजबुल्ला की स्थापना 1982 में हुई थी। वह वैश्विक सिगरेट तस्करी नेटवर्क और विश्वव्यापी कोकीन व्यापार में शामिल है। मनी लांड्रिंग में भी माहिर है। वैश्विक आतंकवाद और रुझान विश्लेषण केंद्र (जीटीटीएसी) डाटाबेस ने 2018 और 2022 के बीच इजरायल, लेबनान और सीरिया में हिजबुल्ला के 44 हमलों को दर्ज किया है। पिछले कुछ दशकों में अवैध गतिविधियों में हिजबुल्ला की भागीदारी काफी बढ़ी है।

अमेरिका और यूरोप में नशीले पदार्थों की तस्करी को रोकने के लिए 2007 में शुरू की गई एक दशक तक चलने वाली कैसेंड्रा परियोजना के बाद से कोकीन नेटवर्क में इसकी भागीदारी का विस्तार हुआ है। पश्चिम अफ्रीका, यूरोप और दक्षिण अमेरिका में अपनी आपराधिक गतिविधियों के अलावा संगठन के पास पश्चिम एशिया में भी मजबूत ड्रग्स व्यापार नेटवर्क है। यह लेबनान और सीरिया की सीमाओं पर की जाने वाली तस्करी में शामिल है। अवैध व्यापार से हासिल होने वाले मोटे मुनाफे के बिना बड़ी संख्या में गोला-बारूद, जमीन, हवा और समुद्र के जरिये हमले करने वाली सटीक मिसाइलें, ड्रोन, पैराग्लाइडर, स्पीडबोट समेत अन्य वे आधुनिक एवं मारक हथियार हासिल नहीं किए जा सकते, जिनका इस्तेमाल सात अक्टूबर के आतंकी हमले में किया गया।

हिजबुल्ला और हमास ने अपने रणनीतिक और परिचालन फायदे के लिए इंटरनेट मीडिया जैसी नवीनतम सूचना प्रसार तकनीक का भी व्यापक रूप से इस्तेमाल किया है। इन माध्यमों ने उन्हें विभिन्न समूहों के विशिष्ट दृष्टिकोणों के अनुसार अपने प्रोपेगंडा को आगे बढ़ाने का अवसर दिया। ये संगठन इतने ताकतवर हो गए कि विश्व की दिग्गज खुफिया एजेंसियों की आंखों में धूल झोंकने में सफल हुए।

तस्करी और जालसाजी जैसे आतंक और अवैध व्यापार तेजी से बढ़ रहे हैं। उनके वित्तपोषण के विभिन्न स्रोतों पर अंकुश लगाना समय की मांग हो गई है। ऐसा करके ही हम आतंकी घटनाओं की पुनरावृत्ति से बच सकते हैं। इस मामले में हमें भी सतर्क रहना होगा, क्योंकि भारत विरोधी कई आतंकी संगठन भी तस्करी और जालसाजी के जरिये अपना वित्तपोषण कर रहे हैं।

(लेखक तस्करी और जालसाजी गतिविधियों के खिलाफ गठित फिक्की की समिति-कैस्केड के चेयरमैन हैं)