जागरण संपादकीय: मुसीबत में मणिपुर, नियंत्रित होती हुई नहीं दिख रही स्थितियां
यह सामान्य बात नहीं कि मणिपुर बीते डेढ़ वर्ष से अराजकता और अशांति से जूझ रहा है। यदि वहां अशांति जारी रही तो अलगाववादी शक्तियों के साथ नशीले पदार्थों के कारोबार में लगे तत्वों का दुस्साहस तो बढ़ेगा ही सामाजिक वैमनस्य को दूर करने में भी मुश्किलें आएंगी। इसके साथ ही अंतरराष्ट्रीय स्तर पर देश की छवि भी खराब होगी।
यह दुर्भाग्यपूर्ण है और चिंताजनक भी कि मणिपुर में स्थितियां नियंत्रित होती हुई नहीं दिख रही हैं। पिछले कुछ दिनों से मणिपुर एक बार फिर अप्रिय कारणों से चर्चा में है। कुछ समय पहले जब मणिपुर के विभिन्न वर्गों के प्रतिनिधियों के बीच संवाद-संपर्क का सिलसिला प्रारंभ किया गया था, तब यह आशा जगी थी कि राज्य में शांति बहाली का मार्ग प्रशस्त होगा, लेकिन अचानक एक के बाद एक ऐसी घटनाएं घटीं, जिनसे हालात बेकाबू होते दिखने लगे।
मणिपुर के हालात किस कदर बिगड़ रहे हैं, इसका पता इससे चलता है कि वहां के कुछ इलाकों में अफस्पा को फिर से प्रभावी किया गया है। इसके साथ ही वहां अर्ध सैनिक बलों की पचास अतिरिक्त कंपनियों को भी भेजा जा रहा है। अशांति और उपद्रव को देखते हुए जिस तरह स्कूल-कालेज बंद करने और इंटरनेट सेवा बाधित करने की नौबत आ रही है, उससे यही प्रकट होता है कि इस राज्य को पटरी पर लाने में समय लग सकता है।
चूंकि मणिपुर में अशांति जारी रहते हुए अच्छा-खासा समय बीत गया है, इसलिए स्थितियां और अधिक जटिल हो गई हैं। पहले वहां केवल मैतेई एवं कुकी समुदाय के बीच ही अविश्वास की खाई गहरी और चौड़ी हुई, फिर नगा समुदाय भी अपनी शिकायतें लेकर सामने आ गया।
चूंकि मणिपुर में भाजपा के नेतृत्व वाली ही सरकार है, इसलिए केंद्र सरकार की यह जिम्मेदारी और अधिक बढ़ जाती है कि वह इस राज्य में उन कारणों का तत्परता से निवारण करे, जिनके चलते वहां अस्थिरता और अशांति व्याप्त है। यदि मणिपुर के अशांत हालात देश को उतना अधिक प्रभावित नहीं करते, जितना अन्य किसी राज्य की बिगड़ती स्थितियां दिल्ली में चिंता और चर्चा का कारण बन जाती हैं, तो इसका यह मतलब नहीं कि वहां के हालात सुधारने को सर्वोच्च प्राथमिकता न दी जाए।
इससे संतुष्ट नहीं हुआ जा सकता कि केंद्रीय गृह मंत्रालय मणिपुर के हालात की लगातार समीक्षा और निगरानी कर रहा है, क्योंकि प्रश्न यह है कि वहां स्थितियां सामान्य होने का नाम क्यों नहीं ले रही हैं? केंद्र सरकार को इसकी अनदेखी नहीं करनी चाहिए कि मणिपुर एक सीमावर्ती राज्य है और म्यांमार से कुकी लोगों की घुसपैठ का सिलसिला खत्म होने का नाम नहीं ले रहा है।
ध्यान रहे कि खुद म्यांमार विद्रोहियों की गतिविधियों से अस्थिरता से जूझ रहा है। ऐसे में भारत सरकार को मणिपुर में शांति स्थापित करने के लिए हर संभव प्रयत्न करने चाहिए। इसके लिए आवश्यक हो तो समूचे राज्य में अफस्पा लागू करने से भी नहीं हिचकना चाहिए।
यह सामान्य बात नहीं कि मणिपुर बीते डेढ़ वर्ष से अराजकता और अशांति से जूझ रहा है। यदि वहां अशांति जारी रही तो अलगाववादी शक्तियों के साथ नशीले पदार्थों के कारोबार में लगे तत्वों का दुस्साहस तो बढ़ेगा ही, सामाजिक वैमनस्य को दूर करने में भी मुश्किलें आएंगी। इसके साथ ही अंतरराष्ट्रीय स्तर पर देश की छवि भी खराब होगी।