लखनऊ, आशुतोष शुक्ल। सप्ताह बीतते न बीतते उत्तर प्रदेश अचानक गर्म हो गया। एक तरफ तो दिल्ली में पकड़े गए आतंकी की जड़ें बलरामपुर जिले तक फैली मिलीं तो दूसरी ओर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने विधानसभा में सपा व बसपा पर इतना तीखा हमला बोला कि इसकी अपेक्षा विपक्ष तो दूर पक्ष को भी नहीं थी। नारों के मुर्दे खड़े हो गए और जातीय गोलबंदी के किले दरक गए। 

गुरुवार से विधानसभा का तीन दिनों का सत्र आरंभ हुआ। पहला दिन शोक प्रस्तावों में जाना ही था, परंतु उसी रात भाजपा के विधायक जनमेजय सिंह का भी अचानक निधन हो गया, लिहाजा शुक्रवार को भी सदन स्थगित करना पड़ा। तब तय हुआ कि शनिवार को भी सत्र बुला लिया जाए। यह भी तय हुआ कि कोरोना का फैलाव देखते हुए शनिवार को ही मानसून सत्र का समापन भी कर दिया जाए।

शुक्रवार को केवल विधान परिषद चली। दो दिन से सपा, बसपा विधानभवन के बाहर-भीतर प्रदर्शन कर रहे थे। उनका आरोप था कि प्रदेश में कानून व्यवस्था तो बहुत बुरे हाल में है ही, कोरोना से भी सरकार नहीं निपट पा रही। दोनों दलों के कुछ सदस्यों ने ब्राह्मण उत्पीड़न का आरोप भी योगी सरकार पर लगाया था। शनिवार को जवाब देने की बारी मुख्यमंत्री की थी। उन्होंने राम मंदिर पर तो विपक्ष को घेरा ही लेकिन, सबसे धारदार हमला जाति को लेकर किया। योगी वर्षो पहले के नीरज मिश्र हत्याकांड तक पहुंच गए।

कन्नौज का नीरज भाजपा कार्यकर्ता था। उसकी हत्या का आरोप भाजपा ने सपा के नेताओं पर लगाया था। कुछ समय तक सनसनी रही और फिर सब कुछ बिसार दिया गया। सच तो यह है कि यह लोमहर्षक हत्याकांड भाजपा ही भुला चुकी थी लेकिन, पूरा सदन तब सन्न रह गया जब योगी बोले, नीरज मिश्र का कटा हुआ सिर ब्रीफकेस में लखनऊ मंगाने वाले आज ब्राह्मण उत्पीड़न की बात कर रहे हैं। मुख्यमंत्री के भाषण से लोगों को वह वीडियो भी याद आ गया जो नीरज मिश्र की हत्या के बाद वायरल हुआ था। योगी ने बहुजन समाज पार्टी को भी उसके तिलक, तराजू और तलवार वाले नारे की याद दिलाई। यह नारा बसपा के आरंभिक दिनों का है। इसके बाद तो गोमती में बहुत पानी बह गया और बसपा ने भी सर्वसमाज का नारा देकर 2007 में यूपी में सरकार बनाई। तब यह माना गया कि बसपा सरकार बनाने में ब्राह्मणों का काफी योगदान रहा था। इसीलिए योगी का भाषण बसपा को अखर गया और तत्काल ही बसपा प्रमुख मायावती का बयान आ गया कि उनकी पार्टी ने तिलक, तराजू और तलवार की बात कभी नहीं कही थी।

पिछले एक महीने से उत्तर प्रदेश में ब्राह्मणों के भाव अचानक चढ़ गए हैं। हर दल उन्हें पूछने लगा है। सपा बसपा ने जिस तरह से परशुराम की मूíत लगाने की बात कही थी, उसी का जवाब था नीरज मिश्र का सदन में हुआ उल्लेख। योगी रोम और राम की भक्ति पर भी बोले और आप के एक नेता को दिल्ली से आने वाला नमूना भी घोषित कर गए। मुख्यमंत्री का कल का भाषण बता गया कि 2022 की लड़ाई बहुत धारदार होने वाली है और यह शुरू भी हो चुकी है।

समाजवादी पार्टी के विधान परिषद सदस्य सुनील सिंह साजन का विधान परिषद में दिया गया बयान भी सुर्खी बना। उन्होंने आरोप लगाया कि दिवंगत मंत्री चेतन चौहान को संजय गांधी आयुíवज्ञान संस्थान में अच्छा इलाज नहीं मिला। चेतन चौहान कोरोना संक्रमित होने के बाद पीजीआइ में भर्ती कराए गए थे। साजन भी उसी वार्ड में थे। सरकार ने इस आरोप का हालांकि खंडन किया लेकिन, साजन का वीडियो अब भी दौड़ रहा है। उधर कोरोना दिनों दिन विकराल हो रहा है। रोज प्रमुख लोग इसके शिकार बन रहे हैं। लखनऊ इस बीमारी का प्रकोप कुछ अधिक ही ङोल रहा है। यहां सांस के आठ प्रतिशत रोगी इसके शिकार हो गए हैं। लोगों को बस सतर्क रहना है और शनिवार, रविवार का लॉकडाउन उन्हें जैसे झकझोर कर इसकी याद दिला देता है।

अब एक खबर लखनऊ से। मुहर्रम का महीना शुरू हो चुका है। इस पूरे महीने पुराना शहर गम में डूबा रहता है। मजलिसें होती हैं और सबीलें लगती हैं। मजलिसों को सुनने दूसरे शहरों के लोग भी इन दिनों लखनऊ पहुंचते थे लेकिन, इस बार ऐसा कुछ नहीं हो रहा। कोरोना ने लखनऊ के जगप्रसिद्ध मुहर्रम को फीका कर दिया है। न जुलूस हैं और न अजादार।

[संपादक, उत्तर प्रदेश]