सहकारिता में नए युग का सूत्रपात, विश्व की सबसे बड़ी अन्न भंडारण योजना शुरू करने की जरूरत
भारत में खेती–किसानी की एक विडंबना यह रही कि यहां जितना जोर उत्पादन पर दिया गया उतना उपज के भंडारण-विपणन-प्रसंस्करण पर नहीं। यही कारण है कि न केवल बड़े पैमाने पर अनाज की बर्बादी होती है बल्कि किसानों को उनकी उपज की वाजिब कीमत भी नहीं मिल पाती है।
रमेश कुमार दुबे: आज देश में 91 प्रतिशत गांव ऐसे हैं, जहां कोई न कोई सहकारी संस्था काम करती है। मोदी सरकार सहकारिता के इस विशाल ढांचे से हर परिवार को जोड़ने में जुटी है, ताकि परिवार की समृद्धि से देश समृद्ध बने। प्रधानमंत्री मोदी ने ‘सहकार से समृद्धि’ का मूल मंत्र दिया है। इसी के तहत जुलाई 2021 में अलग सहकारिता मंत्रालय के गठन के बाद सरकार नई सहकारी नीति तैयार कर रही है। नई राष्ट्रीय सहकारी नीति का मसौदा तैयार करने के लिए पूर्व केंद्रीय मंत्री सुरेश प्रभु की अध्यक्षता में एक समिति का गठन किया गया था। आशा है कि समिति द्वारा सौंपी रिपोर्ट पर विचार-विमर्श के बाद जुलाई तक नई सहकारी नीति घोषित हो जाएगी।
सहकारिता को जन-जन तक पहुंचाने के क्रम में मोदी सरकार प्राथमिक कृषि ऋण समितियों (पैक्स) को 2,000 जन औषधि केंद्र खोलने की अनुमति देने के साथ-साथ सहकारिता क्षेत्र में विश्व की सबसे बड़ी अन्न भंडारण योजना शुरू कर रही है। पैक्स के तहत ग्रामीण क्षेत्रों में जन औषधि केंद्र खुलने से न केवल पैक्स से जुड़े लोगों की आय बढ़ेगी, बल्कि ग्रामीण क्षेत्र में रहने वालों को कम कीमत पर दवाइयां मिल पाएंगी। इनमें से 1,000 जन औषधि केंद्र इस साल अगस्त तक और 1,000 दिसंबर तक खोले जाएंगे। अभी तक 9,400 से अधिक जन औषधि केंद्र खोले जा चुके हैं। इनमें 1,800 प्रकार की दवाइयां और 285 अन्य चिकित्सा उपकरण उपलब्ध हैं। ब्रांडेड दवाइयों की तुलना में जन औषधि केंद्रों पर दवाइयां 50-90 प्रतिशत तक सस्ती हैं।
भारत में खेती–किसानी की एक विडंबना यह रही कि यहां जितना जोर उत्पादन पर दिया गया, उतना उपज के भंडारण-विपणन-प्रसंस्करण पर नहीं। यही कारण है कि न केवल बड़े पैमाने पर अनाज की बर्बादी होती है, बल्कि किसानों को उनकी उपज की वाजिब कीमत भी नहीं मिल पाती है। इस कमी को दूर करने के लिए मोदी सरकार सहकारिता क्षेत्र में विश्व की सबसे बड़ी अन्न भंडारण योजना शुरू कर रही है। एक लाख करोड़ रुपये की इस योजना का मुख्य उद्देश्य देश की खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करना, फसलों के नुकसान को कम करने के साथ-साथ फसलों की खरीद-बिक्री का विकेंद्रित तंत्र स्थापित करना है। अब तक देश की अनाज भंडारण व्यवस्था चुनिंदा फसलों और क्षेत्रों तक ही सिमटी है। उदाहरण के लिए पंजाब में भारतीय खाद्य निगम द्वारा संचालित गोदामों की संख्या 611 है तो ओडिशा में इनकी संख्या 46 और बंगाल में मात्र 30 है। इसी तरह भंडारण व्यवस्था भी गेहूं-धान तक सिमटी है।
नई भंडारण योजना के जरिये पांच वर्षों में सात करोड़ टन अतिरिक्त भंडारण क्षमता विकसित होगी। अभी देश की अन्न भंडारण क्षमता 14.5 करोड़ टन है। इस योजना के क्रियान्वयन के बाद कुल भंडारण क्षमता 21.5 करोड़ टन हो जाएगी। यह सहकारी क्षेत्र में दुनिया की सबसे बड़ी अनाज भंडारण योजना है। इस योजना के तहत प्रत्येक ब्लाक में 2,000 टन क्षमता का गोदाम स्थापित किया जाएगा और इसके लिए प्रत्येक पैक्स को वित्तीय सहायता दी जाएगी। इन गोदामों में केवल गेहूं-धान ही नहीं मोटे अनाज और दलहनी-तिलहनी उपज भी भंडारित की जाएंगी। पैक्स केवल गोदाम निर्माण नहीं करेगी, बल्कि भारतीय खाद्य निगम और राज्य एजेंसियों के लिए खरीद का काम भी करेंगी। वास्तव में मोदी सरकार पैक्स को बहुउद्देशीय बना रही है, ताकि वह न केवल उचित दर की दुकान के रूप में कार्य करे, बल्कि प्रसंस्करण इकाइयां स्थापित करे, जिसमें कृषि उपज की जांच, छंटाई और ग्रेडिंग आदि का कार्य शामिल है।
सरकार खेती को गेहूं-धान जैसी चुनिंदा फसलों से बाहर निकालकर बहुफसली बनाना चाहती है। स्थानीय स्तर पर विकेंद्रित खरीद से खाद्यान्न की बर्बादी रुकेगी और खाद्य सुरक्षा को मजबूती मिलेगी। किसान बहुत कम मूल्य पर उपज की आकस्मिक बिक्री नहीं करेगा। किसान अपनी उपज का भंडारण पैक्स द्वारा प्रबंधित गोदाम में कर सकेंगे और अपनी सुविधा से बेच सकेंगे। इस योजना का सबसे बड़ा लाभ यह होगा कि खरीद केंद्रों से गोदाम तक और उसके बाद गोदाम से उचित दर की दुकानों तक खाद्यान्न ले जाने वाले भारी-भरकम खर्च में काफी कमी आएगी। मौजूदा व्यवस्था में धान खरीदकर पंजाब ले जाया जाता है और फिर धान से चावल निकालकर उसकी आपूर्ति बिहार को की जाती है। इससे न केवल ढुलाई लागत बढ़ती है, बल्कि अनाज की बर्बादी भी होती है।
सहकारी संस्थाओं को पारदर्शी बनाने और हर स्तर पर जवाबदेही सुनिश्चित करने के लिए सरकार 63,000 प्राथमिक कृषि ऋण समितियों का कंप्यूटरीकरण कर रही है। इन समितियों से 13 करोड़ किसान जुड़े हैं, जिनमें अधिकांश लघु एवं सीमांत किसान हैं। पांच वर्षों में इन समितियों की संख्या बढ़ाकर तीन लाख करने का लक्ष्य है। इससे हर दूसरे गांव में प्राथमिक कृषि ऋण समितियों की पहुंच हो जाएगी। अमूल की भाति स्वयं सहायता समूह अपनी सोसायटी बनाकर काम कर सकें, इसके लिए मोदी सरकार कानूनी ढांचा बना रही है।
सहकारिता मंत्रालय पैक्स से संबंधित उप-नियम तैयार कर रहा है, ताकि पैक्स की उपयोगिता बढ़े। इसके तहत 25 से अधिक व्यावसायिक गतिविधियां चिह्नित की गई हैं। इनमें ऋण, डेरी, मत्स्य के साथ-साथ गोदामों की स्थापना, खाद्यान्न, उर्वरक, कीटनाशकों की खरीद, पीएनजी-सीएनजी-पेट्रोल-डीजल वितरण, कामन सर्विस सेंटर, उचित दर की दुकान, सामूहिक सिंचाई योजना और सामूहिक ड्रोन जैसी गतिविधियां शामिल हैं। सरकार सभी पैक्स को प्रधानमंत्री किसान समृद्धि केंद्र में बदलेगी। इसके साथ-साथ जैव उर्वरकों के विपणन में पैक्स को भागीदार बनाया जाएगा, ताकि रासायनिक उर्वरकों पर निर्भरता में कमी आए। जैव उर्वरकों का विपणन भी पैक्स के माध्यम से किया जाएगा।
(लेखक लोक नीति विश्लेषक हैं)