इससे सुखद और कुछ नहीं कि नए वर्ष का शुभारंभ भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन यानी इसरो की एक और उपलब्धि से हुआ। इसरो ने ब्लैक होल्स समेत अंतरिक्ष के अन्य रहस्यों के अध्ययन के लिए एक्सपो उपग्रह सफलतापूर्वक लांच करने में सफलता हासिल की। यह अपनी तरह का पहला उपग्रह है। इसरो की सफलताएं भारत को गौरवान्वित करने वाली हैं।

बीते वर्ष इसरो ने अपने चंद्र अभियान के तीसरे चरण के तहत चंद्रयान को चंद्रमा के दक्षिणी छोर पहुंचाने में जो सफलता प्राप्त की, वह एक तरह से अंतरिक्ष में हमारी विश्व विजय थी, क्योंकि भारत इस स्थल पर अपने यान को सफलतापूर्वक ले जाने वाला पहला देश था। इसने पूरे विश्व को चमत्कृत किया था। इसरो शीघ्र ही एक और इतिहास रचने के निकट है, क्योंकि सूर्य का अध्ययन करने के लिए भेजा गया अंतरिक्ष यान आदित्य एल-1 इसी सप्ताह गंतव्य तक पहुंच जाएगा।

इसरो प्रमुख ने हाल में अन्य आगामी अभियानों के बारे में जानकारी देते हुए बताया कि यह वर्ष जहां गगनयान अभियान की तैयारियों का होगा, वहीं 50 से अधिक अंतरिक्ष अभियानों को शुरू करने का भी। इसरो ने अपनी उत्कृष्टता से विश्व में अपनी छाप छोड़ने के साथ देश को प्रतिष्ठा भी प्रदान की है। इसरो की क्षमता का लोहा पूरी दुनिया मान रही है। यह सही समय है कि विज्ञान, तकनीक और शोध से जुड़े हमारे अन्य संस्थान भी इसरो जैसी क्षमता हासिल करने के लिए संकल्पित हों। इस क्रम में वे यह भी ध्यान रखें कि इसरो ने स्वयं के बलबूते महारत हासिल की है।

इसरो सरीखी महारत अन्य संस्थाओं और विशेष रूप से रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन जैसे उन संस्थानों को प्राथमिकता के आधार पर हासिल करनी चाहिए, जिन पर उन्नत आयुध सामग्री बनाने की जिम्मेदारी है। यह सही है कि हिंदुस्तान एयरोनाटिक्स लिमिटेड ने तेजस के रूप में हल्का लड़ाकू विमान बनाने में सफलता प्राप्त की है और कई देशों ने उसे खरीदने में दिलचस्पी भी दिखाई है, लेकिन इस विमान के कई उपकरण आयात करने पड़ रहे हैं।

एक तथ्य यह भी है कि रक्षा सामग्री के निर्यात में वृद्धि होने के बाद भी भारत को बड़े पैमाने पर युद्धक उपकरणों का आयात करना पड़ता है। युद्धक सामग्री के मामले में भारत को जितनी जल्दी संभव हो, आत्मनिर्भर बनना होगा। आत्मनिर्भर और उत्कृष्ट बनने की चुनौती केवल विज्ञान एवं तकनीक से जुड़े संस्थानों के समक्ष ही नहीं है। इस चुनौती को उन सभी संस्थाओं को स्वीकार करना होगा, जो नागरिक जीवन को सुगम और सक्षम बनाने के लिए कार्य करती हैं।

सरकारी संस्थानों के साथ निजी क्षेत्र की संस्थाओं और उद्योग जगत को भी इसरो से सीख लेते हुए यह चुनौती स्वीकार करनी होगी, क्योंकि इससे ही उनके उत्पादों और उनकी ओर से प्रदान की जाने वाली सेवाएं विश्वस्तरीय बन सकती हैं। जब ऐसा होगा, तभी विश्व में उनकी धाक जमेगी और देश तेजी के साथ आगे बढ़ेगा।