महंगाई पर चर्चा, पर विपक्ष कर रहा केवल नारेबाजी की राजनीति
विपक्ष पिछले कुछ दिनों से इस पर बल दे रहा है कि सब कुछ छोड़कर पहले महंगाई पर चर्चा हो। सत्तापक्ष इसके लिए तैयार है लेकिन उसका तर्क है कि वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण जैसे ही कोरोना संक्रमण से मुक्त होती हैं वैसे ही सरकार महंगाई पर चर्चा कराएगी।
संसद के मानसून सत्र में कोई ठोस कामकाज अथवा राष्ट्रीय महत्व के विषयों पर सार्थक चर्चा होने के आसार दिन-प्रतिदिन कम होते जा रहे हैं। पहले जो विपक्ष इस मांग के साथ हंगामा कर रहा था कि अग्निपथ योजना, महंगाई आदि पर चर्चा की जाए, वह अब इस कारण दोनों सदनों की कार्यवाही बाधित कर सकता है कि उसके सदस्यों को हंगामा मचाने के कारण निलंबित क्यों किया गया? जो भी हो, पक्ष-विपक्ष में इस पर कोई सहमति न बन पाना दयनीय है कि किस विषय पर कब और कैसे चर्चा हो?
विपक्ष पिछले कुछ दिनों से इस पर बल दे रहा है कि सब कुछ छोड़कर पहले महंगाई पर चर्चा हो। सत्तापक्ष इसके लिए तैयार है, लेकिन उसका तर्क है कि वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण जैसे ही कोरोना संक्रमण से मुक्त होती हैं, वैसे ही सरकार महंगाई पर चर्चा कराएगी। विपक्ष को यह स्वीकार नहीं। उसकी आपत्ति के अपने कुछ आधार हो सकते हैं, लेकिन क्या यह तर्कसंगत नहीं कि महंगाई पर चर्चा के समय वित्त मंत्री सदन में उपस्थित रहें?
इससे इन्कार नहीं कि महंगाई एक मुद्दा है-न केवल भारत में, बल्कि पूरी दुनिया में। इस मसले पर संसद में चर्चा भी होनी चाहिए, लेकिन विपक्ष की ओर से यह जो कहने की कोशिश की जा रही है कि सरकार जानबूझकर महंगाई बढ़ा रही है, वह नारेबाजी की राजनीति के अतिरिक्त और कुछ नहीं।
जिन अंतरराष्ट्रीय कारणों के चलते महंगाई बढ़ रही है, उनकी अनदेखी नहीं की जा सकती। दुर्भाग्य से विपक्ष न केवल ऐसा ही कर रहा है, बल्कि यह वातावरण बनाने की भी चेष्टा कर रहा है कि केवल भारत में ही महंगाई बढ़ रही है। विपक्ष इस तथ्य से भी मुंह चुरा रहा है कि हाल में विभिन्न उत्पादों और सेवाओं को जीएसटी के दायरे में लाने का जो निर्णय हुआ, उसे उस जीएसटी परिषद ने स्वीकृति दी, जिसमें विपक्ष शासित राज्यों के वित्तमंत्री भी शामिल थे। इस परिषद में सभी फैसले सर्वसम्मति से लिए जाते हैं।
क्या जब जीएसटी परिषद में फैसले लिए जा रहे थे, तब विपक्ष शासित राज्यों के वित्त मंत्री यह नहीं समझ पा रहे थे कि इससे कुछ उत्पाद महंगे होंगे? प्रश्न यह भी है कि क्या विपक्ष यह चाहता है कि भारत सरकार उन परिस्थितियों की अनदेखी कर दे, जिनके चलते श्रीलंका का दीवाला निकल गया और कुछ अन्य देश दीवालिया होने की ओर बढ़ रहे हैं? नि:संदेह विपक्ष को संसद में अपनी बात कहने का अधिकार है, लेकिन इस अधिकार की आड़ में यदि वह केवल हंगामा करेगा तो इससे न तो उसे कुछ हासिल होने वाला है और न ही देश को, क्योंकि आम जनता यह अच्छे से समझती है कि देश-दुनिया के आर्थिक हालात कैसे हैं?