विभिन्न केंद्रीय मंत्रालयों में संयुक्त सचिव, निदेशक और उपसचिव जैसे पदों पर लेटरल एंट्री यानी एक तरह से सीधी भर्ती के माध्यम से 45 विशेषज्ञों की नियुक्ति की प्रक्रिया पर कांग्रेस और कुछ अन्य दलों की ओर से जिस तरह आपत्ति जताई जा रही है, वह यही बताती है कि विरोध के लिए विरोध वाली राजनीति की जा रही है।

यह आश्चर्जनक है कि इस राजनीति की कमान राहुल गांधी अपने हाथ में लेते हुए दिख रहे हैं। कम से कम उन्हें तो इससे बचना चाहिए, क्योंकि मनमोहन सरकार के समय गठित द्वितीय प्रशासनिक सुधार आयोग ने ही प्रशासन में लेटरल एंट्री की सिफारिश की थी। स्पष्ट है कि कांग्रेस एक बार फिर अपने शासन के समय सुधार की दिशा में उठाए गए कदम का विरोध कर रही है।

वह ऐसे ही नकारात्मक रवैये का परिचय आधार की उपयोगिता बढ़ाने के मामले में भी दे चुकी है। राहुल गांधी को यह नहीं भूलना चाहिए कि वित्त सचिव के रूप में मनमोहन सिंह की नियुक्ति लेटरल एंट्री ही थी और वह भी बिना किसी निर्धारित प्रक्रिया के। इसके विपरीत वर्तमान सरकार एक तय प्रक्रिया के तहत लेटरल एंट्री कर रही है। इसी कारण इसकी जिम्मेदारी संघ लोक सेवा आयोग को दी गई है।

राहुल गांधी और कुछ अन्य विपक्षी नेताओं की ओर से यह जो माहौल बनाया जा रहा है कि लेटरल एंट्री के जरिये विभिन्न मंत्रालयों में विशेषज्ञों की नियुक्तियों से आरक्षित वर्गों के हितों को नुकसान होगा, उसका इसलिए कोई औचित्य नहीं, क्योंकि यह कहीं नहीं कहा गया है कि इन वर्गों के लोग आवेदन नहीं कर सकते।

राहुल गांधी किस तरह अपने संकीर्ण राजनीतिक स्वार्थ को पूरा करने के लिए एक झूठा विमर्श खड़ा रहे हैं, इसका पता इससे भी चलता है कि 2019 के लोकसभा चुनाव के समय स्वयं उन्होंने पूर्व सैन्य अधिकारियों को लेटरल एंट्री के जरिये सिविल सेवाओं में शामिल करने का वादा किया था।

लेटरल एंट्री का उद्देश्य है कि जहां कहीं भी कुशल और जानकार लोग हों, उनकी प्रशासन के संचालन में सेवाएं ली जाएं, ताकि सरकारी नीतियों और योजनाओं को प्रभावी ढंग से लागू किया जा सके। विपक्षी दलों को यह भी पता होना चाहिए कि लेटरल एंट्री के जरिये जो नियुक्तियां की जा रही हैं, वे अस्थायी हैं। ये नियुक्तियां केवल तीन वर्ष के लिए हैं और उनमें अधिकतम दो वर्ष की वृद्धि की जा सकती है।

प्रशासन में सुधार की हर पहल को आरक्षण से जोड़ना केवल यही नहीं बताता कि वोट बैंक की सस्ती राजनीति बेलगाम हो रही है, बल्कि यह भी इंगित करता है कि आरक्षण को हर मर्ज की दवा मान लिया गया है। यह ठीक नहीं। भाजपा और साथ ही मोदी सरकार को इसके प्रति सतर्क रहना होगा कि विपक्षी दल उसके खिलाफ झूठा नरेटिव खड़ा कर जनता को गुमराह न करने पाएं। लोकसभा चुनाव में वे ऐसा कर चुके हैं।