विदेशी हाथ, सरकार को सुनियोजित दुष्प्रचार की काट के लिए भी होना होगा सक्रिय
अतीत में पश्चिम के ऐसे कुछ संगठनों ने किस तरह भारत के आंतरिक मामलों में दखल देने की कोशिश की है। ऐसे संगठनों से भारतीयों का प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष जुड़ाव कोई दबी-छिपी बात नहीं और न ही यह कि उनका संपर्क–संबंध कुछ राजनीतिक दलों से भी है।
विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और उनकी सरकार के प्रति दुराग्रह से भरी हुई बीबीसी डाक्यूमेंट्री का उल्लेख करते हुए यह जो कहा कि भारत में अभी भले ही चुनाव का माहौल न बना हो, लेकिन लंदन और न्यूयार्क में बनने लगा है, वह एक यथार्थ है। इसका उदाहरण केवल बीबीसी की शरारतपूर्ण डाक्यूमेंट्री ही नहीं, अमेरिकी निवेशक जार्ज सोरोस का भारत में अनुचित हस्तक्षेप के इरादे से लैस कथन भी है। आश्चर्य नहीं कि अदाणी समूह को लेकर आई अमेरिकी रिसर्च फर्म हिंडनबर्ग की रिपोर्ट भी उसी अभियान का हिस्सा हो, जो मोदी सरकार के विरुद्ध भारत के बाहर बनाया जा रहा है।
चूंकि आगामी लोकसभा चुनाव निकट आ रहे हैं, इसलिए इसके भरे-पूरे आसार हैं कि मोदी सरकार को निशाना बनाने और साथ ही भारत को नीचा दिखाने का काम और तीव्र हो सकता है। इसमें पश्चिमी मीडिया के उस हिस्से का भी योगदान होगा, जो पहले से ही मोदी सरकार के प्रति पूर्वाग्रह से ग्रस्त है। वह अपने इस पूर्वाग्रह का प्रदर्शन करता ही रहता है। यह भी तय है कि विदेशी मीडिया और उसकी विभिन्न संस्थाओं की ओर से भारत के बारे में जो दुष्प्रचार किया जाएगा, उसे भारत में भी दोहराया जाएगा। इसमें राजनीतिक दलों, वामपंथी बुद्धिजीवियों के साथ मीडिया के उस हिस्से की भी भूमिका होगी, जो इस मानसिकता से ग्रस्त है कि पश्चिम जो कहे, वही सही। इसकी आशंका इसलिए है, क्योंकि यह किसी से छिपा नहीं कि पहले नागरिकता संशोधन कानून विरोधी आंदोलन और फिर कृषि कानून विरोधी मुहिम को किस तरह विदेश से भी हवा दी गई।
पिछले कुछ समय से पश्चिमी देशों में खालिस्तानी चरमपंथी जिस तरह सिर उठा रहे हैं, उसकी भी अनदेखी नहीं की जानी चाहिए। यह मानने के अच्छे-भले कारण हैं कि खालिस्तानी तत्वों को पश्चिम की वे ताकतें हवा दे रही हैं, जो भारत की छवि मलिन करने का बहाना खोजती रहती हैं। ये वही ताकतें हैं, जो भारत के उभार से सशंकित हैं और उसे आगे बढ़ता हुआ नहीं देखना चाहतीं। इनमें कुछ गैर सरकारी संगठन भी हैं, जिनकी ओर विदेश मंत्री ने संकेत किया।
यह ध्यान रहे कि अतीत में पश्चिम के ऐसे कुछ संगठनों ने किस तरह भारत के आंतरिक मामलों में दखल देने की कोशिश की है। ऐसे संगठनों से भारतीयों का प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष जुड़ाव कोई दबी-छिपी बात नहीं और न ही यह कि उनका संपर्क–संबंध कुछ राजनीतिक दलों से भी है। अब जब सरकार यह अच्छे से जान रही है कि उसके खिलाफ पश्चिमी शक्तियां सक्रिय हो चुकी हैं और आने वाले समय में अपना दुष्प्रचार तेज कर सकती हैं, तब न केवल उसे, बल्कि देश के लोगों को भी सावधान रहना होगा। इसके साथ ही सरकार को अपने खिलाफ किए जा रहे सुनियोजित दुष्प्रचार की काट करने के लिए भी सक्रिय होना होगा।