UNSC की आतंकवाद विरोधी समिति की विशेष बैठक में जयशंकर ने पाकिस्तान और चीन को सुनाई खरी-खरी
पाकिस्तान ने मुंबई के भीषण आतंकी हमले के गुनहगारों के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की और विश्व के प्रमुख देशों ने भी भारत से कोरी सहानुभूति जताने के अतिरिक्त और कुछ नहीं किया इसलिए भारतीय विदेश मंत्री ने इन सबको खरी-खरी सुनाकर बिल्कुल सही किया।
मुंबई में संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की आतंकवाद विरोधी समिति की विशेष बैठक में विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने पाकिस्तान में आतंकियों के पनाह पाने का जो विषय उठाया, वह आवश्यक ही नहीं, अनिवार्य था। चूंकि पाकिस्तान ने मुंबई के भीषण आतंकी हमले के गुनहगारों के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की और विश्व के प्रमुख देशों ने भी भारत से कोरी सहानुभूति जताने के अतिरिक्त और कुछ नहीं किया, इसलिए भारतीय विदेश मंत्री ने इन सबको खरी-खरी सुनाकर बिल्कुल सही किया। उन्होंने पाकिस्तान के साथ चीन को भी कठघरे में खड़ा किया।
भले ही इस बैठक में चीनी प्रतिनिधि ने आतंकवाद को खत्म करने की बात कही हो, लेकिन इस समय चीन पाकिस्तान पोषित आतंकी संगठनों का सबसे बड़ा मददगार है। वह जिस तरह संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की ओर से पाकिस्तानी आतंकियों को प्रतिबंधित करने के प्रस्तावों पर अड़ंगा लगाने में लगा हुआ है, उसे देखते हुए यही कहा जा सकता है कि वह आतंकवाद पर चिंता जताने के नाम पर ढोंग कर रहा है। भारत यह नहीं भूल सकता कि चीन जिन पाकिस्तानी आतंकियों की ढाल बना हुआ है, वे सब भारत के लिए खतरा बने हुए हैं। इनमें से एक वह साजिद मीर भी है, जो मुंबई में हमला करने वाले आतंकियों को फोन से निर्देशित कर रहा था।
सुरक्षा परिषद की आतंकवाद विरोधी समिति की विशेष बैठक में साजिद मीर का आडियो सुनाकर भारत ने पाकिस्तान के साथ चीन को बेनकाब अवश्य किया, लेकिन इसमें संदेह है कि इससे इन दोनों देशों की सेहत पर कोई असर पड़ेगा। ये दोनों देश आतंकवाद को लेकर जिन नीतियों पर चल रहे हैं, वे आतंकियों का दुस्साहस बढ़ाने और विश्व समुदाय की आंखों में धूल झोंकने वाली ही हैं। विश्व समुदाय और विशेष रूप से अमेरिका एवं उसके सहयोगी पश्चिमी देशों को पाकिस्तान पर इसके लिए दबाव बनाना ही होगा कि वह मुंबई हमले के गुनहगारों के खिलाफ कठोर कार्रवाई करे।
भारत अमेरिकी विदेश मंत्री के इस संदेश से संतुष्ट नहीं हो सकता कि अमेरिका मुंबई हमलों के पीड़ितों को न्याय दिलाने के लिए प्रतिबद्ध है, क्योंकि सच यही है कि उसने इस मामले में अपेक्षित कदम नहीं उठाए और वह भी तब, जब इस हमले में उसके छह नागरिक भी मारे गए थे।
अमेरिका की प्रतिबद्धता को लेकर इसलिए सवाल उठते हैं, क्योंकि उसने मुंबई हमले की साजिश में शामिल रहे पाकिस्तानी मूल के अमेरिकी नागरिक सैयद दाऊद गिलानी उर्फ डेविड कोलमैन हेडली को भारत के हवाले करने से इन्कार किया था। भले ही मुंबई हमले को 14 वर्ष बीत गए हों, लेकिन भारत इसकी अनदेखी नहीं कर सकता कि इस हमले की साजिश रचने वाले पाकिस्तान में खुलेआम घूम रहे हैं। ऐसे में भारत के लिए यह आवश्यक है कि वह विश्व समुदाय को आईना दिखाता रहे।