मालदीव का मुगालता, मुइज्जू की बीजिंग यात्रा से उठ रहे सवाल
मुइज्जू की बीजिंग यात्रा के मौके पर चीन ने जिस तरह यह सफाई दी कि वह मालदीव को भारत के खिलाफ नहीं उकसा रहा उससे यही पता चलता है कि वह ऐसा ही कर रहा है। यदि वह मोइज्जू के सहारे मालदीव को भारत के खिलाफ अपना मोहरा नहीं बना रहा तो उसे इस तरह की सफाई देने की जरूरत क्या थी?
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की लक्षद्वीप यात्रा के बाद मालदीव के मंत्रियों ने उनके विरुद्ध जैसी अपमानजनक टिप्पणियां कीं, उसके बाद दोनों देशों के संबंधों में खटास पैदा होनी ही थी। वास्तव में यह खटास पैदा होनी तभी शुरू हो गई थी, जब मोहम्मद मुइज्जू ने मालदीव का राष्ट्रपति बनते ही भारत से दूरी बढ़ानी शुरू कर दी थी। चूंकि मुइज्जू ने भारतीय सैनिकों को मालदीव से बाहर करने के मुद्दे पर चुनाव लड़ा था, इसलिए यह तय था कि यदि वह राष्ट्रपति बनते हैं तो चीन की गोद में बैठना पसंद करेंगे। अंततः ऐसा ही हुआ।
उन्होंने भारत से पहले चीन की यात्रा करना तो आवश्यक समझा ही, भारतीय सैनिकों को मालदीव से हटाने पर भी जोर दिया। मालदीव में महज 75 भारतीय सैनिक हैं। ये वहां इसलिए हैं, ताकि भारत की ओर से दिए गए हेलीकाप्टरों का संचालन कर सकें। इसके बाद भी मुइज्जू ने ऐसा दर्शाया, जैसे भारत ने उनके देश में सैनिकों की कोई बड़ी खेप तैनात कर रखी है। चूंकि वह भारत विरोधी भावनाओं को उभार रहे थे, इसलिए उनके सहयोगी भी उसी रास्ते पर चल रहे थे। उनके तीन मंत्रियों ने तब अपनी हदें पार कर दीं, जब भारतीय प्रधानमंत्री लक्षद्वीप की यात्रा पर गए।
भारतीय प्रधानमंत्री ने हाल की अपनी लक्षद्वीप यात्रा में ऐसा कुछ नहीं कहा, जो मालदीव के खिलाफ हो, लेकिन पता नहीं कैसे वहां के तीन तीनों मंत्रियों ने ऐसा ही समझ लिया। उन्होंने भारतीय प्रधानमंत्री के साथ भारत को भी नीचा दिखाने वाली भद्दी टिप्पणियां कीं। स्वाभाविक रूप से भारतीयों ने इसे अपने अपमान के रूप में लिया और पर्यटन के लिए मालदीव न जाने का अभियान छेड़ दिया। चूंकि अन्य देशों के मुकाबले भारत से सबसे अधिक पर्यटक मालदीव जाते हैं, इसलिए मोइज्जू को यह पता चल गया कि उनके पर्यटन उद्योग को बड़ी क्षति पहुंचने वाली है। भले ही उन्होंने अपने तीनों बदजुबान मंत्रियों को निलंबित कर दिया हो, लेकिन इससे क्षति की भरपाई होती नहीं दिखती। इसलिए और भी नहीं, क्योंकि वह अपनी चीनपरस्ती का खुलकर परिचय दे रहे हैं।
मुइज्जू की बीजिंग यात्रा के मौके पर चीन ने जिस तरह यह सफाई दी कि वह मालदीव को भारत के खिलाफ नहीं उकसा रहा, उससे यही पता चलता है कि वह ऐसा ही कर रहा है। यदि वह मोइज्जू के सहारे मालदीव को भारत के खिलाफ अपना मोहरा नहीं बना रहा तो उसे इस तरह की सफाई देने की जरूरत क्या थी? इसके पहले भी मालदीव के शासक अपने संकीर्ण स्वार्थों की पूर्ति के लिए चीन की तरफदारी करते हुए भारत का विरोध करते रहे हैं। मोइज्जू भी ऐसा ही कर रहे हैं, लेकिन उन्हें यह नहीं भूलना चाहिए कि हर तरह के संकट के समय भारत ने ही मालदीव की मदद की है। यदि वह यह समझ रहे हैं कि भारत के बिना उनके देश का काम चल जाएगा तो यह उनका मुगालता ही है।