प्रधानमंत्री ने बजट के परिप्रेक्ष्य में भारतीय उद्योग परिसंघ यानी सीआईआई के एक सम्मेलन को संबोधित करते हुए यह जो कहा कि देश को विकसित बनाने में उद्योगपतियों की महत्वपूर्ण भूमिका है, उससे कोई असहमत नहीं हो सकता, क्योंकि अनेक देशों का उदाहरण यही बताता है कि उद्योग-धंधे ही किसी देश को प्रगति के पथ पर ले जाते हैं।

इस सम्मेलन में प्रधानमंत्री ने उद्योग जगत को यह भरोसा दिलाया कि उनकी सरकार में राजनीतिक इच्छाशक्ति की कमी नहीं। वास्तव में उनकी सरकार ने आर्थिक और राजनीतिक विषयों में कई बार दृढ़ इच्छाशक्ति का परिचय दिया है और उसके चलते ही पिछले 10 वर्षों में आर्थिक परिदृश्य बदला है।

उन्होंने इस बदले हुए परिदृश्य को विस्तार से रेखांकित करते हुए यह भी बताया कि किस तरह एक समय भारत विश्व की पांच कमजोर अर्थव्यवस्था वाले देशों में गिना जाता था और अब पांचवीं बड़ी अर्थव्यवस्था वाला देश बन गया है, जो तीसरी बड़ी अर्थव्यवस्था बनने की ओर बढ़ रहा है।

इस सबके बाद भी उन्हें इसका आभास होना चाहिए कि भारतीय उद्योग जगत देश को विकसित बनाने के लिए वैसी इच्छाशक्ति का परिचय नहीं दे पा रहा है, जैसी आवश्यक ही नहीं, बल्कि अनिवार्य है। इसके कारणों की पहचान कर प्राथमिकता के आधार पर उनका निवारण किया जाना चाहिए।

केंद्र सरकार अनदेखी नहीं कर सकती कि देश में उतना निजी निवेश नहीं हो रहा है, जितना अपेक्षित है। जो निवेश हो भी रहा है, वह दक्षिण और पश्चिम के राज्यों तक अधिक सीमित है। एक समस्या यह भी है कि भारतीय उद्योग जगत चीनी उद्योगों का मुकाबला करने के बजाय उन पर अपनी निर्भरता कम करने के कोई विशेष उपाय नहीं कर रहा है।

उद्योग-धंधों का विकास केवल इसलिए आवश्यक नहीं है कि विकसित भारत के लक्ष्य की ओर बढ़ा जा सके। यह इसलिए भी आवश्यक है, ताकि चीन के दबदबे को कम करने के साथ ही रोजगार के अवसरों को बढ़ाया जा सके।

यह ठीक है कि प्रधानमंत्री ने युवाओं के कौशल और अनुभव को बढ़ाने के लिए शुरू की गई इंटर्नशिप योजना का उल्लेख किया, लेकिन अभी यह कहना कठिन है कि यह योजना रोजगार के स्थायी अवसर पैदा करने में समर्थ होगी और उससे रोजगार पैदा करने वालों को प्रोत्साहन मिलेगा।

उद्योग जगत ने इस योजना के प्रति कोई बहुत अधिक उत्साह नहीं दिखाया है। प्रधानमंत्री ने एमएसएमई क्षेत्र को सशक्त बनाने के अपने दृष्टिकोण को साझा करते हुए कहा कि उनकी सरकार ने इस क्षेत्र के उद्योगों के सामने आने वाली चुनौतियों का समाधान किया है और उन्हें आवश्यक सुविधाएं प्रदान की हैं।

यह सही है कि एमएसएमई क्षेत्र को आवश्यक कार्यशील पूंजी और कर्ज मिलने की व्यवस्था की गई है, लेकिन इससे अभीष्ट की पूर्ति होती नहीं दिख रही है। एमएसएमई क्षेत्र न तो नवाचार कर पा रहा है और न ही रोजगार के पर्याप्त अवसर पैदा कर पा रहा है।