जम्मू-कश्मीर की सुरक्षा, पाकिस्तान में प्रशिक्षित आतंकियों का अब भी घुसपैठ कर लेना शुभ संकेत नहीं
जम्मू-कश्मीर में ऐसे तत्व भी हैं जो युवाओं को आतंक के रास्ते पर चलने के लिए उकसाते हैं। एक और जहां ऐसे तत्वों पर नियंत्रण पाना होगा वहीं दूसरी ओर इसके भी जतन करने होंगे कि सीमा पार से आतंकियों की घुसपैठ बंद हो। यह शुभ संकेत नहीं कि पाकिस्तान में प्रशिक्षित हो रहे आतंकी अभी भी घुसपैठ करने में समर्थ हैं।
पुंछ में आतंकी हमले में सेना के चार जवानों के बलिदान के बाद आतंकियों से मिलीभगत के संदेह में पकड़े गए तीन स्थानीय नागरिकों की मौत के कारणों का पता लगाने को लेकर जो कदम उठाए गए, वे आवश्यक थे। इस तरह के मामले भारत विरोधी तत्वों को दुष्प्रचार करने का अवसर प्रदान करने के साथ ही स्थानीय आबादी और सुरक्षा बलों के बीच अविश्वास भी पैदा करते हैं। आतंकवाद से लड़ाई में स्थानीय लोगों का सहयोग प्राप्त करने के लिए इस तरह की घटनाओं की रोकथाम सुनिश्चित करना आवश्यक है।
निःसंदेह इसी के साथ आतंकियों के समर्थकों के खिलाफ कार्रवाई भी जरूरी है। सीमा पार से आए आतंकी जम्मू-कश्मीर में छिपने में इसीलिए सफल रहते हैं, क्योंकि वे किसी न किसी स्तर पर स्थानीय लोगों का सहयोग एवं समर्थन हासिल कर लेते हैं। जम्मू-कश्मीर में आतंकवाद पर पूरी तौर पर लगाम नहीं लग पा रही है तो इसी कारण कि आतंकियों से हमदर्दी रखने अथवा उन्हें शरण देने वालों की पहचान और पकड़ नहीं हो पा रही है।
जम्मू-कश्मीर में ऐसे तत्व भी हैं, जो युवाओं को आतंक के रास्ते पर चलने के लिए उकसाते हैं। एक और जहां ऐसे तत्वों पर नियंत्रण पाना होगा, वहीं दूसरी ओर इसके भी जतन करने होंगे कि सीमा पार से आतंकियों की घुसपैठ बंद हो। यह शुभ संकेत नहीं कि पाकिस्तान में प्रशिक्षित हो रहे आतंकी अभी भी घुसपैठ करने में समर्थ हैं।
पुंछ में सेना के काफिले पर हमले के लिए पाकिस्तान से आए आतंकी जिम्मेदार माने जा रहे हैं। चिंता की बात केवल यह नहीं कि जम्मू संभाग में पाकिस्तानी सीमा से सटे पुंछ और राजौरी के जंगलों में आतंकियों की सक्रियता बढ़ रही है, बल्कि यह भी है कि कश्मीर घाटी में आतंकी जब-तब सुरक्षा बलों के जवानों या फिर आम नागरिकों और विशेष रूप से गैर कश्मीरियों को निशाना बनाते रहते हैं। इसी रविवार को आतंकियों ने बारामुला की एक मस्जिद में अजान दे रहे सेवानिवृत्त एसएसपी की गोली मारकर हत्या कर दी। कश्मीर घाटी में इसके पहले सेवारत पुलिस अधिकारियों को भी निशाना बनाया जा चुका है।
पुंछ में सेना के काफिले पर आतंकियों के हमले के बाद सेना प्रमुख जिस तरह वहां पहुंचे, उससे सुरक्षा स्थिति की गंभीरता का पता चलता है। एक तथ्य यह भी है कि सेना के काफिले को निशाना बनाने वाले आतंकियों की अभी खोजबीन नहीं की जा सकी है। हो सकता है कि वे सीमा पार लौटने में सफल रहे हों।
जो भी हो, पुंछ-राजौरी का इलाका हो या फिर राज्य के अन्य हिस्से, आतंकियों के ठिकानों को नष्ट करने और उनके समर्थकों पर शिकंजा कसने का कोई सघन अभियान छेड़ा जाना चाहिए। जम्मू-कश्मीर की सुरक्षा को लेकर इसलिए और सतर्क रहने की जरूरत है, क्योंकि इजरायल पर हमास के बर्बर आतंकी हमले के बाद पाकिस्तान समेत दुनिया भर के जिहादी संगठनों का दुस्साहस बढ़ा है।